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हिन्दू धर्म के त्योहारों से पहले कोर्ट के आदेश, हमारी आज़ादी कहाँ है?
रोहित सरदाना
10 Oct 2017 12:33 PM GMT
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दीपावली आ गयी है. अदालत का आदेश भी आ गया है. दिल्ली और आस पास पटाखे नहीं बिकेंगे. प्रदूषण होता है. होता ही है, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन प्रदूषण तो डीज़ल वाली गाड़ियों से भी होता है. जिनपर रोक लगाने की कोई भी मुहिम कार लॉबी के दबाव में दम तोड़ जाती है.
न्याय की देवी की आँख पे पट्टी बंधी रहती है. उसे कुछ दिखायी नहीं देता. लिहाज़ा फ़ैसला तर्कों और सुनी गयी दलीलों के आधार पे होता है. लेकिन जल्लीकट्टू के घायल बैलों की चीख़ पुकार सुन लेने वाली देवी, बक़रीद पर बलि चढ़ने वाले बकरों की करूण पुकार क्यों नहीं सुन पाती?
दलीलों को तराज़ू पर तौलने वाली इंसाफ़ की देवी को दही हांडी के उत्सव में बच्चों को लगने वाली चोट तो महसूस होती है, लेकिन मुहर्रम के जुलूसों में ख़ून बहाते लोगों पे उसका दिल क्यों नहीं पसीजता ?
होली आते ही पानी बर्बाद ना करने की क़समें देने वाले लोग आइपीएल के मैच तो चाव से देख आते हैं जिसके चौव्वन मैच हरी घास पे खेले जाएँ इसके लिए अरबों लीटर पानी बहा दिया जाता है.
देश में कहीं दुर्गा पूजा मनाने के लिए अदालत से दख़ल माँगना पड़ रहा है. कहीं सरस्वती पूजा मनाने के लिए. ऐसे में लोग ये सवाल तो पूछेंगे ही कि संविधान ने तो सबको अपना अपना धर्म मानने और तीज त्यौहार मनाने की छूट दी थी, हमारी आज़ादी कहाँ है?
रोहित सरदाना की फेसबुक से
रोहित सरदाना
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