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अब्दुल के साथ संतोष,जॉन और करतार, झेल रहे हैं महंगाई की मार

Shiv Kumar Mishra
16 Sept 2022 11:58 AM IST
अब्दुल के साथ संतोष,जॉन और करतार, झेल रहे हैं महंगाई की मार
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सैय्यद अली मेहंदी

बात तो अच्छे दिन की थी, बात तो खुशहाली की थी, बात तो काले धन की वापसी की थी और बात तो चीन और पाकिस्तान को धूल चटाने की थी लेकिन इसमें महंगाई ने हर बात को उसकी औकात दिखा दी। दरअसल महंगाई की मार के चलते आम आदमी की कमर टूट गई। अब ना तो यह दिखाई दे रहा है कि कौन कहां है और ना ही यह समझ में आ रहा है कि क्या किया जाए लेकिन सबके दिल में एक अटूट विश्वास है कि देश मजबूत हो रहा है, देश आगे बढ़ रहा है। यही काफी है।

हम महंगाई की मार झेल सकते हैं हम ₹100 लीटर वाला सरसों का तेल ₹200 प्रति लीटर में खरीद सकते हैं, हम ₹38 किलो आटा खरीद सकते हैं। हम ₹195 किलो अरहर की दाल खरीद सकते हैं। हम ₹60 किलो टमाटर भी खरीद कर खा सकते हैं। अपने तौर पर हम बेहद परेशान हो सकते हैं हम अपनी जमा पूंजी दावं पर लगा सकते हैं। हम अपने खर्च को कम करते हुए अब बच्चों की पढ़ाई भी दांव पर लगा देंगे लेकिन हमें यह पता है कि इस महंगाई की मार को जलते हुए हम राष्ट्र को मजबूत कर रहे हैं। हम अडानी का कुकिंग ऑयल खा रहे हैं, हम अंबानी का जिओ चला रहे हैं।

हम एक मोटी रकम खर्च कर रहे हैं लेकिन हम संतुष्ट हैं कि कहीं ना कहीं हमारा देश मजबूत हो रहा है। हम प्रगति नहीं कर पा रहे यह हमारी निजी समस्या है लेकिन देश में प्रगति की अपार संभावनाएं हैं। जिनको कुछ शीर्ष स्तर के व्यापारी कैच कर रहे हैं। दरअसल उनमें काबिलियत है दरअसल उनमें सामर्थ है और उनमें मौके पर चौका मारने की अद्भुत कला भी है। ऐसे में व्यापारी गण कैसे पीछे रह सकते थे( याद रहे यहां बात देश के चुनिंदा शीर्ष पांच व्यापारी घरानों की बात हो रही है) जिनमें एक होड़ लगी है कि एशिया के नंबर वन अमीर की कुर्सी कैसे हासिल की जाए ।

यह तो चलो उनकी निजी दौड़ है लेकिन इस दौड़ की चपेट में 130 करोड़ हिंदुस्तानी आ गए जो रगड़ रहे हैं । जो कि पिस रहे हैं जो कि अपने मुकद्दर को कोस रहे हैं लेकिन बड़ी बात यह है कि आज भी यह तिरंगे को अपनी जान मानते हैं और देश को अपनी शान मानते हैं। अगर थोड़ी सी महंगाई कम हो जाए तो यह देश भक्ति और अधिक बढ़ जाएगी हालांकि देश भक्ति में कोई कमी नहीं है लेकिन कभी-कभी डगमगाने वाली स्थिति आ जाती है क्योंकि जब बच्चे भूख से बिलखते हुए नजर आते हैं और जेब में दूध लाने के भी पैसे ना हो तब कहीं ना कहीं मानवता पर बोझ बढ़ जाता है और इस बोझ के नीचे एक मजलूम बाप दब जाता है।

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