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वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक बोले, दम है तो सावरकर की क़िताब से बहादुर शाह ज़फ़र का नाम मिटा कर दिखाइए..!
देश के जाने माने चर्चित गाँधीवादी पत्रकार डॉ राकेश पाठक ने कहा कि आज इतिहास से मुगल काल को हटाने वालों को चुनौती है...दम है तो सावरकर की क़िताब में से मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का नाम मिटा कर दिखाइए। है हिम्मत तो दिखाइए जोश?
विनायक दामोदर सावरकर ने बीसवीं सदी के पहले दशक में एक क़िताब लिखी थी। मराठी में लिखी गई यह क़िताब सन 1857 की क्रांति की महागाथा है। शीर्षक है 'सत्तावनचे स्वातंत्र्य समर'।
सन 1909 में इसका पहला गुप्त संस्करण छपा। अंग्रेज सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये क़िताब इंग्लैंड में रहने के दौरान लिखी गई थी। बड़ी मुश्किलों के बाद छपी थी।
बाद में इसका हिंदी अनुवाद '1857 का स्वातंत्र्य समर' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। सावरकर की इस क़िताब में मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का खूब उल्लेख है।
वैसे भी आज़ादी की पहली लड़ाई 1857 की क्रांति का इतिहास बहादुर शाह के बिना पूरा हो भी नहीं सकता। क्रांतिकारियों ने बूढ़े मुग़ल बादशाह को अपना नेता माना था और मई 1857 में दिल्ली के तख्त पर दुबारा बैठा दिया था।
सावरकर की क़िताब में उसी मुग़ल बादशाह का अलग अलग अध्याय में उल्लेख है। क़िताब में एक अध्याय (प्रकरण 3)है जिसका शीर्षक है 'दिल्ली'।
इस अध्याय में दिल्ली के लाल किले और मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर का रेखाचित्र छपा है।( देखें - पेज 107 )
इस अध्याय में सावरकर ने क्रांति के शुरुआती दिनों में दिल्ली में क्रांतिकारियों की जीत और 11 मई 1857 को बहादुरशाह को हिंदुस्तान के बादशाह बनाए जाने का ज़िक्र किया है। इसमें बादशाह की जयजयकार के साथ उसके दुबारा तख्त पर बैठने को हिंदू मुस्लिम एकता की जीत बताया है।
इसी क़िताब में एक और अध्याय है 'दिल्ली लड़ती है' (पेज 235)। इसमें भी स्वतंत्रता समर का नेतृत्व बहादुर शाह को सौंपने की हिमायत की गई है।
'दिल्ली हारी' शीर्षक वाले अध्याय में सावरकर ने अंग्रेजों के हाथों हुए कत्ले आम का उल्लेख किया है।
बहादुर शाह के साथ गद्दारी करने वाले इलाही बख्श और मुंशी रजब अली को सावरकर ने 'दगाबाज कुत्ते' लिखा है।
इन दोनों ने ही बहादुर शाह की गिरफ्तारी के बाद कैप्टन हडसन को बताया था कि मुगल शहजादे हुमायूं के मकबरे में छुपे हैं।हडसन ने क्रूरता से इन शहजादों को मार डाला।
सावरकर ने लिखा-तैमूर के वंश वृक्ष की वे अंतिम पत्तियां हडसन ने तोड़ डालीं।
आज इतिहास से मुगल काल को हटाने वालों को चुनौती है...दम है तो सावरकर की क़िताब में से मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का नाम मिटा कर दिखाइए.!
है हिम्मत..! बोलिए..