- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- हमसे जुड़ें
- /
- सबका दुख दर्द बांटने...
दर्द तो उनको भी होता है जो सबका दर्द बांटते है, दु:ख मे सबके लिए संघर्ष करते है, उत्साह बढ़ाते है, पर उनके उस जोश एवं हंसते - मुस्कुराते चेहरे के पीछे की खामोशी शायद ही किसी को नज़र आती है! वह इसलिए हंसते हुए अपने अंदर के तुफान को समेटते रहते है ताकि सामने वाले का हौसला नही टूटे!
एक समय ऐसा आता है जब दूसरे की जिंदगी, जरूरतों और खुशियों के लिए अपने अंदर मचे घमासान के बीच उसका अपना दिल एक सीमा के बाद साथ छोड़ देता है, सांसें उखड़ जाती है! उसके जाने के बाद बस एक ही सवाल किया जाता है कि वह तो एकदम फिट थे, मस्तमौला थे, कोई बीमारी भी नही थी, कल ही बात हुआ था उनके बातों से भी ऐसा कुछ नही लगा कि वह किसी चीज को लेकर परेशान थे वगैरह वगैरह!
क्या ऐसे लोगों की परेशानी को जानने का प्रयास भी किया जाता है? मेरा उत्तर है नही! उनसे बस लोग अपने भले के बारे मे ही संबंध रखते है उनके खुद के दु:ख दर्द को बांटने का कोई सोचता भी नही है। समाज से ऐसे नेक व्यक्ति के असमय चले जाने के बाद सांत्वना देकर इतिश्री करने वाले उसके जाने के कुछ दिनों के बाद ही उसके नाम और काम को भूलकर आगे बढ़ जाते है।
उसका परिवार कैसे जीवन बिता रहा है, उसके परिवार के सामने आजीविका की क्या चुनौतियां है, किसी को उसकी चिंता नही है, उनको भी नही, जिनके लिए उसने संघर्ष किया था। हम और आप अब एक ऐसे हृदय-विहीन समाज के अंदर प्रवेश कर चुके है जिसमें केवल लाभ के आधार पर संबंध और संवेदनाओं का प्रसार हो रहा है। जबतक लाभ है, आपकी प्रासंगिकता है, लाभ समाप्त, संबंध और प्रासंगिकता समाप्त। आंखें आपको खोलकर रखना है कि आपके आसपास कैसे लोग है और जीवन के किस मोड़ तक आपके साथ चल सकतें है।
डा. रविन्द्र प्रताप सिंह सह- संयोजक, समग्र चिंतन, प्रज्ञा प्रवाह, अवध प्रान्त