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नारी व माँ पर शारिक रब्बानी की नज्में : पढ़ो तो दिल छू जाएं
फोटो : वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार शारिक रब्बानी
उर्दू व हिन्दी साहित्य में बहुत से शायरों और कवियों ने नारी और माँ पर रचनाऐं लिखी हैं। इन्ही में से एक महत्वपूर्ण नाम शारिक रब्बानी का भी है। भारत और नेपाल दोनो ही देशों में लोकप्रिय वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार हैंं। नानपारा, जिला बहराईच के अतिरिक्त भोपाल से भी करीबी ताललुक रखते हैं। मानवतावादी दृष्टिकोण रखते हैं तथा महिला स्वतंत्रता व महिला अधिकारों के भी समर्थक हैंं।
प्रस्तुत है उनकी नारी व माँ पर लिखी दो नज्में..
नारी :
मर्दों की इज्जत नारी है
घर की जीनत नारी है।
नारी की है शान दोबाला
सबके घर में नारी है।
नारी खुशी का सरमाया है
लायके मिदहत नारी है।
प्यारी बेटी नारी है
बहू भी मेरी नारी है।
बहन हमारी नारी है
बीवी अपनी नारी है।
माँ ने सबको जन्म दिया है
कद्र के काबिल नारी है।
नारी क्या है सबको पता है
नस्ल का जरिया नारी है ।
नारी को मत मारा जाये
मिस्ले हव्वा नारी है।
मरदो जन का एक है रूतबा
रहमतों बरकत नारी है।
नारी का सम्मान हो
"शारिक" तोहफ-ए-कुदरत नारी है।
मां :
मां की अज़मत को बयां कैसे करूं
मां की रिफअत को अयां कैसे करूं।
मां का रूतबा देखिए क्या खूब है
मां की तो हर इक अदा महबूब है।
मां का मुझपर किस कदर अहसान है
ज़िन्दगी मां पर मेरी कुर्बान है।
नौ महीने पेट में रखा मुझे
जब हुए पैदा तो फ़िर पाला मुझे।
दुख सहा ज़ाहिर न की रंजो मलाल
हर तरह मेरा किया है देखभाल ।
नर्म बिस्तर पे सुलाती थी मुझे
दूध के कतरे पिलाती थी मुझे।
लोरियां देती थी मुझको सुबहो शाम
मेरे खातिर करती थी सब एहतेमाम ।
जो थी हाजत जो थी ख्वाहिश मार दी
मुझपे अपनी सारी खुशियां वार दी।
मुझको हासिल जो हुई ये शान है
मेरी मां का बिलयकीं फैज़ान है।
उल्फ्ते मां मुझपे लाज़िम है बहुत
खिदमत-ए-मां मुझपे लाज़िम है बहुत ।
मां की लेना चाहिए हर दम दुआ
मुस्तफ़ा सल्ले अला ने है कहा।
मां के जेरे पा है जन्नत देखिए
मां की कितनी है यह अज़मत देखिए।
बा खुदा कुरबां है उन पर जा मेरी
साथ में रहती है "शारिक" मां मेरी।