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तो वह एग्ज़िट पोल था ही नहीं या नियमों को तोड़ कर बनाया गया खेल
19 मई को सभी चैनलों ने आपको बेचा कि एग्ज़िट पोल दिखा रहे हैं। आपने भी एग्ज़िट पोल समझ कर देखा। लेकिन चुनाव आयोग का नियम कहता है कि चुनाव के दौरान आप एग्ज़िट पोल कर ही नहीं सकते हैं। इसके प्रसारन और प्रकाशन पर भी पाबंदी है। जब आप एग्ज़िट पोल नहीं कर सकते हैं तो जो दिखाया वो क्या था।
चुनाव आयोग ने मीडिया के लिए एक हैंडबुक बनाया है। उसमें सेक्शन 3.6 में जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के बारे में बताया गया है। इस सेक्शन में साफ साफ लिखा है कि अगर चुनाव एक चरण का है तो चुनाव प्रक्रिया शुरू होने और खत्म होने के आधे घंटे बाद तक एग्ज़िट पोल नहीं किया जा सकता। किया भी नहीं जा सकता और न ही इसे दिखाया जा सकता है।
अगर चुनाव कई चरणों में है तो जिस दिन चुनाव शुरू होता है उस दिन से लेकर आखिरी चरण के मतदान के समाप्त होने के आधे घंटे बाद तक एग्ज़िट पोल किया ही नहीं जा सकता है. न आप एग्ज़िट पोल कर सकते हैं और न ही इसे दिखा सकते हैं। यानी पहले चरण के मतदान समाप्त होने के बाद एग्ज़िट पोल नहीं किया जा सकता है।
सेंटर फॉर अकाउंटिब्लिटी एंड सिस्टमिक चेंज नाम की संस्था ने चुनाव आयोग को बताया है कि कई एजेंसियों ने एग्ज़िट पोल की जो प्रक्रिया अपनाई है वो गुमराह करने वाली है। इन सबके खिलाफ एफ आई आर दर्ज होनी चाहिए।
इंडिया टु़डे की साइट पर एक्सिस माई इंडिया के सर्वे की प्रक्रिया के बारे में लिखा हुआ है। इसमें एग्ज़िट पोल और पोस्ट पोल सर्वे में अंतर बताया गया है। कहा गया है कि आम तौर एग्ज़िट पोल ही कहा जाता है वैसे जो उन्होंने किया है वो पोस्ट पोल सर्वे है। एग्ज़िट पोल में पोलिंग बूथ के बाहर ही मतदाता से पूछा जाता है। चुनाव आयोग के अनुसार पोलिंग बूथ के बाहर डेटा संग्रह नहीं हो सकता है।
एक तरह से पोस्ट-पोल सर्वे का प्रसारण हुआ मगर मीडिया ने लिखा कि एग्ज़िट पोल दिखाया जा रहा है। चुनाव आयोग चाहता तो उस दिन ट्विट कर लोगों को इस कानून की जानकारी दे सकता था। बता सकता था कि मीडिया एग्ज़िट पोल का इस्तमाल नहीं कर सकता है और अपने दर्शकों को साफ करे कि वह एग्जिट पोल नहीं दिखा रहा है।
इंडिया टुडे ने अपनी वेबसाइट पर एग्ज़िट पोल को लेकर सवाल जवाब प्रसारण के दो दिन बाद पोस्ट किया है। 21 मई को पोस्ट किया है जबकि एग्ज़िट पोल 19 मई को दिखाया गया था।
करोड़ों लोग एग्ज़िट पोल देखकर जा चुके हैं। अब इस तरह के स्पष्टीकरण उन लोगों तक पहुंच नहीं पाएंगे। मैं यह दावे से नहीं कह सकता कि एग्ज़िट पोल प्रसारण के दौरान ये सारे अंतर दर्शकों को बताए गए या नहीं।
विराग गुप्ता ने अपने नोटिस में IPSOS नाम की सर्वे एजेंसी के बयान का हवाला दिया है कि उसने कहा है कि मतदान केंद के बाहर मतदाताओं का चुनाव किया गया था। मतदान केंद्र से बाहर आ रहे हर तीसरे मतदाता से राय ली गई। सर्वे सातों चरण के मतदान के दिन किए गए।
अब ऐसा हुआ है तो यह चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार फ्राड है। यह किया ही नहीं जा सकता है। CASC ने कहा है कि जिन चैनलों ने एग्जिट पोल का दावा किया है उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। संस्था ने जांच की मांग की है।
रवीश कुमार
रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।