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कोरोना के बारे मे कुछ चिंतनीय पहलू, विचारक के एन गोविन्दाचार्य ने कहीं ये बड़ी बातें
बीजेपी के पूर्व नेता और विचारक के एन गोविन्दाचार्य ने कोरोना को लेकर एक बड़ी बात कही. उन्होंने ये सब बात आज अपने फेसबुक पर लिखी है. आप अब उनके लिखे लेख को पढिये और समझिये कोरोना की बात.
#आजकल_कोरोना_के_जन्मस्थान_को_लेकर_भारी_विवाद_है| रूस, चीन, अमेरिका के ऊपर उँगलियाँ उठ रही है| कोई #प्रकृतिजन्य मान रहा है तो कोई मानव का कारस्तानी मान रहा है| इस विवाद के विस्फोट ने #विश्व_स्वास्थ्य_संगठन को भी हिलाकर रख दिया है|
विश्व की आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था को कोरोना के कारण भारी नुकसान और तनाव झेलना पड़ रहा है|
हमारे कुछ मित्रों का मानना है कि #बाजारवादी ताकतों का यह एक और खेल है| #वैक्सीन बेचने के उद्देश्य से उपयुक्त वातावरण बनाना, सरकारों को मजबूर करना, #न्यायपालिका के निर्णय को अपने पक्ष मे लाने के लिये बाजारवाद द्वारा ऐसे हथकण्डे अपनाया जाना बाजारवादी ताकतों की रणनीति का हिस्सा है| एक बार तो मेरे मित्र ने एच. आई. वी. एड्स के सन्दर्भ मे बताया कि भारत में 2 करोड़ लोगों को #एचआईवी एड्स से संक्रमित होने का खतरा है| 1980 से 2000 तक के काल में हुई हलचलों, एलिसा टेस्ट की व्यवस्था के लिये दबाव, स्वास्थ्य व्यवस्था के पटल से वह सारी बहस कहा गुम हो गई|आदि का उल्लेख करते है|
#NACO या विश्व के स्तर पर काम कर रहे संगठनों को प्रभावित करने के वाकयात हुए थे| मणिपुर के एच.आई.वी./एड्स के आंकड़ों पर संदेह जताया गया जो बाद मे सही भी पाया गया| उसी प्रकार मुंबई के कमाठीपुरा के सेक्स वर्कर के एच.आई.वी./एड्स ग्रस्त होने के आंकडें गलत पाये गये| उसी प्रकार एच.आई.वी. अनिवार्यतः एड्स का रूप लेता यह प्रस्थापना भी गलत पाई गई| पूरे मुद्दे के लिये #परिवार_कल्याण_विभाग के पैसों का आबंटन किया गया था| #एलिसा_टेस्ट के पैमाने का अचूक मानने के बारे मे संदेह व्यक्त गया| अभी भी बहस जारी है कि एच.आई.वी./एड्स के आपसी संबंध क्या है? कोई वायरस है भी या नहीं| हमारे मित्रों ने कॉस्मेटिक और सेक्स इंडस्ट्री मे लगे विदेशी ताकतों को इन बातों का सूत्रधार बताया|
कोरोना के बारे मे कहा गया ठंडें मुल्कों में ज्यादा, गरम मुल्कों मे कम है| पर अब तो भारत समेत गरम मुल्कों मे भी फैला है| गर्मी बढ़ेगी तो कोरोना का प्रकोप कम हो जायेगा ऐसा कहा गया था| वह भी गलत निकला| एक जिम्मेदार सरकारी आदमी ने तो कहा था 15 मई के बाद ढलान पर आ जायेंगी स्थितियां| पर हुआ उल्टा| भारत मे कोरोना का असमान विस्तार है| उत्तर दक्षिण, पश्चिम, पूर्व मे कही ज्यादा, कहीं कम फैलाव है|
इतना शायद जरुर है कि 25 बड़े शहरों में ज्यादा हैं और को-मोर्बिडिटी का भी योगदान रहता है|
तमिलनाडू में डायबेटिस ज्यादा है| गुजरात मे हाई प्रेशर, ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन, गरिष्ठ भोजन आदि शहरों मे ज्यादा है| #पश्चिमी_दुनिया के साथ ज्यादा संपर्क गुजरात के लोगों का रहा है| उसका कुछ असर खान-पान, रहन-सहन पर भी पड़ा होगा|
कोरोना के बारे मे भुगत रहे है सभी लोग यह तो सच है| #आर्थिक_विषमता की मार अलग से है| भारत के प्रवासी मजदूर और असंगठित क्षेत्र के #स्वरोजगारिये, ये छोटे व्यापारी विशेष परेशान है| तात्कालिक रूप से भी वे सामान्य जीवनयापन के लिये परेशान है| भारत के लगभग 140 करोड़ में 30 करोड़ 10 हजार रु. माहवारी कमाई से ऊपर वाले होंगे| शेष 100 करोड़ तो #रोजमर्रा की जिन्दगी की जरूरतों को पूरा करने के लिये जूझ रहे हैं| अब तो प्रवासी मजदूर मे से लगभग 70% वापस आये होंगे| अब वे क्या करें? #प्रवासी बनकर गये ही इसलिये थे कि गाँव मे ईमान की रोटी और इज्जत की जिन्दगी मिलना कठिन था|
वापस आने पर एक सप्ताह मानसिक राहत रहेगी| उसके बाद तो जीविका खोजना है| आगे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, #मनोवैज्ञानिक समस्याएँ तो टकरायेगी ही| उनका तात्कालिक, मध्यकालिक, और दीर्घकालिक समाधान खोजना होगा|
यह केवल भुक्तभोगियों की नहीं, हम सब देशवासियों की समस्या है| सभी लोग विचार विमर्श करे, यह प्रयास की पहली सीढ़ी होगी| तात्कालिक रूप से हर तरह की राहत चाहिये| #मध्यकालिक स्तर पर ईमान की रोटी, इज्जत की जिन्दगी का जुगाड़ है| और दीर्घकालिक रूप से प्रकृति केन्द्रिक विकास और #विकेन्द्रित व्यवस्था के माध्यम से सुखी संतुष्ट जीवन मिले| इतना #लक्ष्य तो समझ मे आता है| आगे की आप सब बतायें|