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अमर्त्य कोई नहीं है, सब मारे जाएंगे, त्रिवेदी भी, गुरुवा भी, ज़हर सबने फैलाया है कमोबेश, कीमत भी सब चुकाएंगे, आप भी और हम भी!
दुनिया में लोग दो तरह से मरते हैं। एक, दूसरे के ज़हर से। दो, अपने ज़हर से।जिन्हें चिदंबरम की गिरफ्तारी में राजनीतिक प्रतिशोध दिख रहा है, उन्हें चुप मार कर इंतजार करना चाहिए। कभी तो होगा जो ज़हर इतना फैलेगा, कि काटने वाला खुद उसका शिकार हो जाएगा। भस्मासुर का पाठ याद रखिए। अमर्त्य कोई नहीं है। सब मारे जाएंगे। त्रिवेदी भी। गुरुवा भी। ज़हर सबने फैलाया है कमोबेश। कीमत भी सब चुकाएंगे। आप भी। हम भी।
यूपीए के दौर में चिदंबरम के तनखैया रहे एक संपादक और एक रिपोर्टर पर शायद किसी का ध्यान नहीं गया इस बीच। कभी दोनों एक ही समूह में थे। आज भी दोनों एक ही जगह काम कर रहे हैं। दोनों ने चिदंबरम की दी हुई स्टोरी प्लांट करने का धर्म दस साल निभाया। एक स्कैंडल भी हुआ बीच में। कहानियां बहुत हैं...
बहरहाल, चिदंबरम के तनखैया संपादक ने बीते बारह घंटे से एक भी ट्वीट नहीं किया है। सिरे से गायब हैं। उनकी रिपोर्टर ने जितने भी ट्वीट किए हैं इस बीच, सब में एक मौलिक दर्द झलक रहा है। उन्हें इस बात का दर्द हो रहा है कि पूरा मीडिया रविदास मंदिर पर हुए आंदोलन, चंद्रशेखर की गिरफ्तारी और लाठीचार्ज को अनदेखा कर चिदंबरम पर फोकस क्यों किए हुए है।
काश कोई पूछ लेता कि मैडम, आज तक आपने सड़क पर हुए किसी भी आंदोलन की कोई भी रिपोर्ट तो छोड़ दें, सूचना भी दी है अपने प्रोफाइल पर? यह जनवाद कहां से फूटता है? यह धुआं कहां से उठता है?