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उल्टी राय-सीधी राय, विनोद राय- विनोद राय!

Shiv Kumar Mishra
16 Feb 2020 5:34 AM GMT
उल्टी राय-सीधी राय, विनोद राय- विनोद राय!
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देश की सबसे बड़ी खबर, जिसे पढ़कर आप समझेंगे पूरा हाल

मनीष सिंह

मेरे गाजीपुर के जन्मे, हार्वर्ड में पढ़े, पूर्व आईएएस और भारत के नियंत्रक एवम महालेखा परीक्षक। भारत की संचित निधि के एकॉउंट जांच कर सन्सद को रिपोर्ट करने का जिम्मा होता है। 2008 में जब राय ने पद पाया, हिंदुस्तान अपने इतिहास के सबसे तेज ग्रोथ की फेज में था। मनमोहन-मोंटेक-प्रणब की तिकड़ी काम पर थी।

और अचानक घपलों की खबर आने लगी। पहले 2G स्पेक्ट्रम और फिर कोयले की खदानों में ऐसे आकाशीय आंकड़े, जिसमे जीरो गिनने में सुबह हो जाये। ये प्रिजम्प्टिव लॉस था। सरकार की गलत नीतियों से खजाने को इतना चूना लगने की संभावना थी। देखते ही देखते आंदोलन खड़ा हो गया। सरकार को काठ मार गया।

ऑडिटर का काम होता है, हिसाब किताब के आंकड़े मिलान करना। योजनाओं के इम्प्लीमेंटेशन में अनियमितता भी उजागर करते हैं। घपलों में सरकारी खजाने का पैसा निकलता है, किसी की जेब मे जाता है। मगर विनोद राय के घोटाले में बताया गया पैसा न किसी को मिला था, न खजाने से गया था। तो फिर खजाने को कौन सी चपत लगी, जिसने बवाल मचा दिया???इस उदाहरण से समझिये।

सोचिये कि जंगल के बीच, बियाबान में कोई मैदान है। इसे एक कालोनी बनाने के लिए एक रुपये ग़ज़ में कई कम्पनियों को बांट दिया गया। शुरुआत में बियाबान में पड़ी जमीन की कीमत कुछ नही थी। कम्पनियों ने पैसा लगाया, शानदार कालोनी बना दी। इसमे एक कंपनी ऐसी थी, जिसने डेवलप तो कुछ किया नही। मगर जब कालोनी बढ़िया बन गयी, तो अपनी जमीन किसी और को हजार रुपये ग़ज़ में बेच दी। कुछ किये बगैर कमा लिया।

विनोद राय आये। पूरा मामला देखा। और ये हिसाब बताया कि जमीन की मार्किट वैल्यू हजार रुपये ग़ज़ थी, मगर सरकार ने तो एक रुपये ग़ज़ में बांट दिया। अब 999 रुपये ग़ज़ के हिसाब से सरकार को लॉस- एक लाख पच्चीस हजार करोड़ का।

जनता ने सोचा, ये पैसा सोनिया गांधी खा गई। या मनमोहन ने बाथरूम की टाइल्स में छुपा दिया। लोगो ने मनमोहन के बाथरूम में झांकना शुरु कर दिया।

अभी इससे निजात हुई नही थी, की कोयला खदान में भी यही थ्योरी ले आये। इस बार घाटा बताया एक लाख पचहत्तर हजार करोड़। इस दौर में जीजाजी और सीडब्ल्यूजी घोटाले भी खबरों में आये। सरकार बदनाम हो गयी। लोग चिल्लाने लगे- पहले लड़े थे गोरों से अब लड़ेंगे चोरों से ।

बहरहाल, हम लड़े। चोर हार गए, डकैत आ गए। कोर्ट में कोयला, टूजी, सीडब्ल्यूजी, जीजाजी कुछ साबित नही हुआ। सब निर्दोष साबित होकर बाहर आ गए। विनोद राय, अच्छी खासी अर्थव्यवस्था को जिस स्पाइरल में डाल कर गए, वह पेंदे में बैठ चुकी है। टेलीकॉम और पावर सेक्टर वहीँ से फिसलना शुरू हुआ। एनपीए वहीं से बनना शुरू हुआ।

एक एकाउंटेंट की गलत राय पूरे धन्धे की वाट लगा सकता हैं। कभी कभी समूचे देश की .. साहब शेषन बनने चले थे, कुछ शेष न बचने दिया। बुढ़ापे में राय साहब बीसीसीआई के प्रेसिडेंट बन गए। यू सी.. बीसीसीआई इज प्रिफेर्ड रिफ्यूज ऑफ स्काउंडरल्स !!

साहब ने किताब लिखी है- "नॉट जस्ट एन एकोउन्टेंट", तत्कालीन मंत्री टेलीकॉम ए राजा भी मानते हैं कि साहब मामूली एकोउन्टेंट नही थे। उन्होंने तो राय साहब को कांट्रेक्ट किलर करार दिया था।

वो शानदार सरकार आज भी बदनाम है। मगर ए राजा चुनकर आज भी संसद में बैठते हैं। कभी कभी स्पीकर की गद्दी पर भी.. राय साहब को पेंशन मिलती ही होगी। देश उनके दिए घाव चाट रहा है।

उल्टी राय- सीधी राय .. !

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