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Special Story : आज़ादी मिलने के छठे दिन 'लाट साहबों' का वेतन 'क़तर' दिया गया था,
शिवनाथ झा
नई दिल्ली : बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि भारत के लाट साहबों (राज्यपालों) को स्वतंत्रता प्राप्ति की तारीख के महज 144 घंटों के अंदर, यानी 15 अगस्त, 1947 के छठे दिवस भारतीय प्रशासन का पहला डंडा उन पर पड़ा और वेतन की राशि में कटौती ही नहीं, छपट दी गई थी। लेकिन तत्कालीन लाट साहबों ने अपने केंद्र के शासनाध्यक्षों के प्रति, अधिनियमों के प्रति चूं तक नहीं किये।
वजह था भारत आज़ाद हो गया था। देश का प्रत्येक नागरिक स्वाधीन भारत में सांस लेना प्रारम्भ किया था। लोगों की जिंदगी एक नए सिरे से प्रारम्भ हुई थी। अगर आज किसी भी लाट साहबों का तनख़ाह, या यूँ कहें कि किसी भी सरकारी कर्मचारी का तनख़ाह इस कदर छपट दिया जाय तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर होने में समय नहीं लगेगा।
21 अगस्त, 1947 को भारत के पत्र सूचना कार्यालय द्वारा निर्गत दस्तावेज (बीएनवी/आरआरए 490-21-8-47) के अनुसार तत्कालीन सरकार 'इण्डिया (प्रोविजनल कांस्टीच्यूशन) ऑर्डर' के तहत यह निर्णय ली थी कि भारत के दो लाट साहबों (बम्बई और मद्रास) को छोड़कर सभी प्रांतों के लाट साहबों की तनख़ाह में 'समानता' लाई जाय, यानी, उस समय जिन्हे सबसे कम तनखाह मिलता था, उनके बराबर सबों की तनखाह की जाय।
दस्तावेज के अनुसार, उस समय लाट साहबों का वेतन प्रति वर्ष 66,000/- रुपये से 1,20,000 रुपये तक था। मसलन, मद्रास, बम्बई, बंगाल और यूनाइटेड प्रोविंस के लाट सभों को प्रति वर्ष 1,20,000/- वेतन मिलता था, जबकि पंजाब और बिहार के लाट साहबों को 1,00,000/- रूपये प्रति वर्ष तनखाह मिलता था। इसी तरह सेंट्रल प्रोविंस के लाट साहब को 72,000/ प्रति वर्ष और असम तथा उड़ीसा के लाट साहबों को 66,000/- रुपये प्रति वर्ष वेतन मिलता था।
दस्तावेज के अनुसार, "The India (Provisional Constitution) Order brings down the salaries of all Governors uniformly to the lowest level, namely, Rs. 66,000/- per annum, but exempts the present incumbents of two Governorships (Bombay and Madras) who are staying on."
इतना ही नहीं, दस्तावेज में आगे भी लिखा गया कि "Since the salaries of Governors are not free of income-tax the effective net salary of a Governor after 15th August is about Rs. 3,000/- a month." आज भारत के राज्यपालों का वेतन 3,50,000/- रुपये प्रतिमाह है। यानी सन 1947 की तुलना में आज़ादी के 75 वर्ष बाद सौ गुना से भी अधिक की वृद्धि हुई है। अन्य सुविधाओं की तो बात ही नहीं करें।
बहरहाल, संविधान के अनुच्छेद 153 में राज्यपाल का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि, प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। लेकिन सातवें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में यह जोड़ा गया कि एक व्यक्ति एक ही समय दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल भी रह सकता है, जिस तरह से हम वर्तमान में देखते हैं कि कुछ राज्यपाल दो राज्यों के राज्यपाल भी होते हैं। राज्यपाल की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। भारत का राष्ट्रपति राज्यपाल की नियुक्ति 5 वर्षों की अवधि के लिए की जाती है। कोई भी व्यक्ति भारत देश का नागरिक हो, न्यूनतम उम्र 35 वर्ष का हो, राज्यपाल पद पर चुने जाने के समय किसी भी लाभ के पद पर नहीं हो और राज्यपाल पद पर चयनित होने के लिए उसे राज्य विधान सभा के सदस्य की सभी योग्यताओं को पूरा करता हो। 1982 के राजपाल (अनुमोदन भत्ते और विशेषाधिकार) अधिनियम के अनुसार 5 साल की कार्यकाल अवधि के दौरान उनकी सुविधाओं में कोई कटौती नहीं की जा सकती है।