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- तब हिम्मत नहीं थी तो...
तब हिम्मत नहीं थी तो सब कुछ सहना पड़ता था, अब हिम्मत है सामने वाले की बोलती बंद है
तरन्नुम नाज
जब मैं लगभग 14-15 साल की थी ये तब की बात है. मैं एक किराने की दुकान से कुछ सामान ले रही थी. लिस्ट लम्बी थी इसलिए वक़्त लग रहा था. मैंने अचानक नोटिस किया कि एक लड़के ने मोबाइल मेरी तरफ़ किया हुआ है. मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे वो मेरी पिक ले रहा है या वीडियो बना रहा है. मैं बचपन से ही मुखर रही हूँ लेकिन उस वक़्त मुझे झिझक महसूस हो रही थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या कार्रवाई करूँ. तभी मुझे एक परिचित दिखाई दी जिन्हें मैं बाजी कहती थी. मैंने उनसे कहा कि मुझे लग रहा इस लड़के ने मेरी वीडियो बनाई है या फ़ोटो लिया है. वो उस लड़के को अच्छे से जानती थी, वो उसके पास गयी और फ़ोटोज़ डिलीट करवाया. उसे डाँटा कि ये मेरी बहन है अबसे ऐसा मत करना.
मेरी तरफ़ से इससे ज़्यादा कोई रिएक्शन नहीं था. बाजी नहीं आई होतीं तो शायद मैं सामान लेकर घर चली जाती और इसी फ़िक्र में घुलती रहती कि कहीं उसने फ़ोटोज़ तो नही ले ली.. कही वो उनका मिस यूज़ न करे..
आज जब इस बारे में सोचती हूँ तो लगता है कि मैं इतना क्यों झिझकी. उसे फौरन खुद ही लताड़ना था या घर में उसकी शिकायत करनी थी. उसे तगड़ा सबक सिखाना था.
ख़ैर...
2 साल पहले की बात है जब मैं 23 साल की थी. वही लड़का जिसने मेरी तस्वीरें ली थी(उस लड़के का नाम मोहन है.) मेरे साथ कुछ दिनों से हूटिंग कर रहा था. मतलब.. जब भी बाज़ार जाती तो कमेंटबाजी करता. बाइक लेकर आगे पीछे करता. सलामवालेकुम कह के निकल जाता. ऐसा उसने 3-4 बार ही किया था. एक दिन मैं पापा की दुकान से लौट रही थी कि अगले मोड़ पर ये भी पैदल आता हुआ दिखा. इसने मेरी तरफ़ देख के सलाम किया.. मैं उसके पास ही जाकर खड़ी हो गयी. उस जगह ख़ूब भीड़-भाड़ थी. (छोटे शहरों में लड़के-लड़की का बाज़ार में खड़े होकर बात करना असामान्य होता है. लड़कों की हूटिंगबाजी ज़रूर सामान्य बात होती है सबके लिए, मान्यता मिली हुई है तभी इनके हौसले बढ़े हुए हैं)
सबकी नज़रें हमारी तरफ़ ही आकर टिक गयी. कुछ लोगों के क़दम भी चलते-चलते रुक गए. सबने वो तमाशा देखा. वहीं खड़े होकर ऐसी लताड़ लगाई मैंने उस लड़के को.. जितनी भड़ास थी सब निकाल दिया. वो तो एकदम हक्का-बक्का रह गया. अगर वो बहस करता तो उसकी कुटाई भी ज़रूर करती लेकिन मेरा ये रौद्र रूप देख कर वो चुपचाप वहाँ से निकल गया. मैं बता नहीं सकती, उसे उस भरी बाज़ार में ज़लील कर के कितना हल्का महसूस किया था मैंने.
आज भी कभी बाज़ार जाना हुआ.. अगर उससे आमना-सामना होता है तो वो नज़र झुका कर निकल जाता है.
कितना फ़र्क़ है ना उस 15 साल की और इस 23 साल की नाज़ में?
आज मैं इन मसलों पर मुखर होकर बात कर लेती हूँ. कोई मुझे घूर कर देखे या अपशब्द कहे तो फ़ौरन उसका जवाब देने की हिम्मत रखती हूँ. लेकिन एक वक़्त था, जब मुझमें झिझक थी. बहुत दब्बू तो नहीं थी. कुछ बातें घर वालों से शेयर कर लेती थी लेकिन बहुत कुछ शेयर नहीं कर पाती थी.
अगर कोई लड़की 10 साल पहले की आपबीती बताये तो आप उसे ये कह कर ख़ारिज़ नहीं कर सकते कि तब क्यों नहीं ऐक्शन लिया. अब बोलने से क्या फ़ायदा. जिस समाज में लड़कियों के ऐक्शन लेने पर उन्हें ही चुप रहने की सलाह दी जाती है, वहाँ ऐक्शन लेना इतना आसान होता है क्या? हज़ारों लड़कियाँ ऐसी हैं जो बलात्कार होने के बाद भी चुप रह जाती हैं... जानते हैं क्यों?? क्योंकि हमारा समाज उन्हें मजबूर करता है. वही समाज जहाँ हर हाल में लड़कियाँ ही दोषी होती हैं. फ़िर आप इस तरह की बातें कैसे कह सकते हैं कि तब ऐक्शन क्यों नहीं लिया? शायद उस वक़्त वो इतनी मज़बूत न रही हो. शायद कोई और दबाव रहा हो.
क्या आप जानते हैं जब कोई लड़की किसी भी तरह के यौन शोषण का शिकार होती है तो वो उसे आख़िरी साँस तक नहीं भूलती? किसी 40 साल की औरत को आज भी यह बात अच्छे से याद होगी कि जब वो 7 साल की थी तो एक अंकल ने उसे गोद में बैठाने के बहाने उसे बैड टच का अहसास करवाया था. एक लड़की सालों बाद भी यह नही भूलती कि भीड़ के बहाने उसे एक लड़का बुरी तरह से छू कर निकल गया था. ऐसी हज़ारों लड़कियाँ हैं जिन्हें भीड़-भाड़ देख कर घबराहट होने लगती है, अपने इन्हीं अनुभवों में कारण. लड़कियां कभी नहीं भूलतीं.. कुछ नहीं भूलतीं.... लड़कियाँ तो घूरती हुई बालात्कारी नज़रों को भी नहीं भूल पातीं.. इतनी नाज़ुक होती हैं कि उनकी रूह उन गन्दी नज़रों से ही छलनी हो जाती है.
मेरी एक दोस्त जिसे कॉलेज आते-जाते रास्ते में एक लड़का घूरता था.. वो सिर्फ़ इस वजह से कई दिनों तक डिप्रेशन में रही क्योंकि उसे उसका घूरना पसन्द नहीं था. फ़िर आप किस अधिकार से ऐसा कह सकते हैं कि कोई अपनी आपबीती न बताये? क्योंकि आप की नज़र में इसका कोई फ़ायदा नहीं. फ़ायदा है. एक लड़की जिसने बहुत से बुरे अहसास अपने मन में दबा रखे हैं, उन्हें कह कर वो हल्का होना चाहती है.. तो इससे बेहतर बात और कुछ नही हो सकती. ज़रूरी नहीं जस्टिस के लिए ही कोई अपनी आपबीती कहे. कुछ अहसास मवाद जैसे होते हैं. उनका बह जाना ही बेहतर है. तो उसे बह जाने दीजिये.
यही है हमारे समाज का असली चेहरा. दिखाइए आइना . बताइये अपनी आप बीती. तैयार कीजिये आने वाली पीढ़ी को. बचाइये उन बच्चियों को इन सब से जो इस आग में झुलसने वाली है।
(तरन्नुम नाज की फेसबुक वॉल से साभार)