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केंद्र में बैठी मोदी सरकार ही ऑक्सीजन की कमी से हुई हर एक मौत की पूरी तरह से जिम्मेदार है !
गिरीश मालवीय
जब से कोरोना की शुरुआत हुई है हम सब जानते हैं कि ऑक्सीजन थेरेपी ही इस बीमारी के इलाज का पहला चरण है .....मेडिकल ऑक्सीजन एक आवश्यक दवा है जिसे WHO द्वारा साल 2015 में जारी की गई अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया था
कल एक डॉक्टर का बयान पढ़ रहा था, उनका कहना है कि ब्लड थिनर, रेमडेसिविर या कोई भी दवा देने से पहले हम ऑक्सीजन ही देते हैं. सामान्यतः आक्सीजन 97-98 प्रतिशत होती है. शरीर में ऑक्सीजन कुछ देर के लिए 90-88 भी है तो व्यक्ति कुछ समय तक तो बर्दाश्त कर सकता है लेकिन अगर ऑक्सीजन लेवल इससे नीचे जाता है तो जान बचने की संभावना कम होती जाती है. ऐसे में ऑक्सीजन सबसे पहली दवा है."
पिछले साल मार्च में शुरू हुए कोरोना संकट के बाद भी देश में मेडिकल ऑक्सीजन का स्टॉक बनाए रखने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की गई. साल 2020 में लॉकडाउन के एक हफ्ते बाद सेंटर फॉर प्लानिंग द्वारा 11 अफसरो के एक समूह एम्पावर्ड ग्रुप 6 (ईजी-6) ने शुरू से ही इस बारे में अलर्ट किया था। ...... 1 अप्रैल, 2020 को दूसरी बैठक के दौरान इस ग्रुप ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर चिंता जताई थी। उनकी मीटिंग के मिनट्स में कहा गया था, "आने वाले दिनों में भारत को ऑक्सीजन सप्लाई में किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। इससे निपटने के लिए सीआईआई इंडियन गैस एसोसिएशन के साथ सहयोग करेगा और ऑक्सीजन सप्लाई की किल्लत को कम करेगा।"
इसके अलावा उस वक्त स्वास्थ्य पर संसदीय स्थायी समिति ने भी मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता का मसला उठाया था। सरकार से कहा था कि वह पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन के उत्पादन को बढ़ावा दे, ताकि अस्पतालों में मांग के हिसाब से उसकी पूर्ति सुनिश्चित कराई जा सके।
लेकिन सरकार ने लॉक डाउन तो लगा दिया पर ऑक्सीजन की बढ़ती हुई कमी को पूरा करने के कभी कोई गंभीर प्रयास नही किये, .....सितंबर 2020 के मध्य में जब देश मे कोरोना मरीजो की संख्या 1 लाख के आंकड़े को छूने के बहुत करीब पुहंच गई थी तब भी सरकारी और निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन की खपत अचानक दो से तीन गुना तक बढ़ गई थी ओर ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के प्लांट में उसका उत्पादन मांग के अनुरूप नहीं कर पा रही थी हालांकि अप्रेल 2020 से सितंबर 2020 के छह महीनों में यह उद्योग प्रति दिन 750 टन से बढ़कर 2,700 टन प्रतिदिन उत्पादन कर अपनी कैपेसिटी को चार गुना तक बढ़ा चुका लेकिन यह उस वक्त भी पर्याप्त नही था
सितंबर में भी पिछले मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने अपने यहां आयी ऑक्सीजन की कमी की सूचना दी है, उस वक्त भी इस कारण से मौते हुई थी. ऐसे ही जागरण जैसे अखबार ने भी सितम्बर के मध्य में उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी को।लेकर चेताया था, वह लिख रहा था.....'ऑक्सीजन के बढ़ते दाम और अब पर्याप्त उपलब्धता न होने से कोरोना वायरस के संक्रमण का इलाज करवा रहे मरीजों की जान सांसत में है। सरकारी और निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन की खपत अचानक दो से तीन गुना तक बढ़ गई है जबकि ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के प्लांट में उसका उत्पादन मांग के अनुरूप नहीं हो पा रहा है।'
ओर उसी सितंबर के मध्य में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन लोकसभा में अपनी पीठ ठोक रहे थे कि सरकार के फैसलों से करीब 37-38 हजार लोगों की संक्रमण से मौत को टाला गया है उन्होंने इसी के साथ यह जानकारी भी दी थी कि कोविड 19 के मामलों के 5.8 प्रतिशत मामलों में ऑक्सीजन थेरेपी की जरूरत होती है।.... यानी उन्हें यह बिल्कुल अच्छी तरह से अंदाजा था कि अगर कोविड की दूसरी -तीसरी लहर आती है तो उन्हें कितनी मेडिकल आक्सीजन की आवश्यकता होगी
आपको याद होगा कि कुछ दिनों पहले पिछले वित्तवर्ष 20-21 की तीन तिमाहियों में आक्सीजन निर्यात की खबर मनी कंट्रोल वेबसाइट ने दी थी लेकिन उस वेबसाइट पर इतना अधिक दबाव डाला गया कि उसे यह रिपोर्ट वापस लेना पड़ी .........PIB की फैक्ट चेक टीम ने यह बताया कि यह मेडिकल ऑक्सीजन नही बल्कि औद्योगिक ऑक्सीजन थी ... …..जबकि जानकारों का यह कहना है कि दोनों तरह के ऑक्सीजन बनाने की प्रक्रिया एक ही है. दोनों में एक ही तत्व का इस्तेमाल होता है जिसे एक्सपोर्ट कर दिया गया
इंडिया टूडे ग्रुप ने इस बारे में लिखा है कि यदि सरकार इसके लिए तैयारी करती तो निर्यात करने की जगह करने की जगह मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता था. ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैसेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एआईआईजीएमए) के अध्यक्ष साकेत टिकू ने कहा कि वह औद्योगिक ऑक्सीजन के उत्पादन को चिकित्सा आपूर्ति के लिए डाइवर्ट करने में सक्षम थे. क्योकि दोनों प्रकार के ऑक्सीजन कमोबेश एक जैसे हैं.
अप्रेल 2021 में देशभर के 40 अस्पतालों के डेटा का आंकलन करने से पता चलता है कि पिछले साल सितंबर-नवंबर के बीच जितने मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ रही थी, उससे इस समय सिर्फ 13.4 फीसदी ज्यादा पड़ रही है। नेशनल क्लिनिकल रजिस्ट्री फॉर कोविड-19 का डेटा बताता है कि पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में सांस लेने में तकलीफ सिम्पटोमेटिक मरीजों में सबसे प्रमुख लक्षण है। अस्पताल में भर्ती 47.5 फीसदी मरीजों में इसबार यह समस्या देखी जा रही है, जो कि पिछले साल सिर्फ 41.7 फीसदी थी.....
यानी कि हर तरह के शोध किये जा रहे थे.... सरकार को बार बार हैल्थ एक्सपर्ट चेता रहे थे कि ऑक्सीजन की कमी पड़ सकती है लेकिन उन्होंने अस्पतालों में आक्सीजन सप्लाई बढ़ाने के लिए कोई भी कदम भी नही उठाए.
कल एंकर रुबिका लियाकत ( जिसमे जरा सी भी लियाकत नही है ) ने एक बहस में एक पैनलिस्ट से कहा कि क्या चाहते हैं प्रधानमंत्री खुद ऑक्सिजन सिलिंडर लेकर अस्पताल पहुंच जाएं ?.....बिल्कुल उन्हें पुहंच जाना चाहिए!...रुबिका जी, उन्हें एक एक मरीज के पास ऑक्सीजन का सिलेंडर कंधे पर डालकर ले जाना चाहिए .....आखिरकार इन तमाम मौतो की जिम्मेदारी उन्ही की ही है