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- किसमें यह हिम्मत है जो...
किसमें यह हिम्मत है जो पूंछ सके मोदी सरकार से यह सवाल?
बीजेपी ने मोदी राज के 6 साल में अपनी पार्टी के 600 से ज्यादा आलीशान बहुमंजिला दफ्तर बनवाए....विश्व रिकॉर्ड तोड़ने वाले स्टैचू बनवाए...... लेकिन आज अगर कोरोना की महामारी व्यापक हुई तो उससे निपटने के लिए जरूरी अस्पताल इन छह सालों में कितने बने ? क्या यह सवाल आज मोदी जी से नहीं पूछा जाना चाहिए?
मीडिया तो ऐसे चुभने वाले सवाल 2014 से ही पूछना और जनता को प्रधानमंत्री की कारगुजारियां बताना बंद कर चुका है ... शायद उसे यकीन रहा होगा कि कोरोना जैसी हर महामारी को बाबा रामदेव के नुस्खे ठीक ही कर देंगे.... तो क्या करना है देश वासियों को अस्पताल, इलाज, अनुसंधान केन्द्र, मास्क, सैनिटाइजर, टेस्टिंग फैसिलिटी, बेड, आइसोलेशन सेंटर या डॉक्टरों को सुरक्षा सूट देकर।
बहरहाल, Girish Malviya जी द्वारा शेयर की गई इस पोस्ट को पढ़िए और घरों में दुबके रहिए। क्योंकि कोरोना के वायरस ने धर लिया तो जांच करवाने से लेकर आइसोलेशन सेंटर जाने तक देश की सारी स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत सामने आ जाएगी ....
मित्र कृष्णकांत लिखते है .
'बीजेपी ने नोटबंदी के बाद दो साल के अंदर अपने लिए 600 से अधिक नए बहुमंज़िला कार्यालय बनवाये थे. देश भर में 135 करोड़ लोगों के लिए कितने अस्पताल बने? बच्चों के लिए कितने स्कूल बने? युवाओं के लिए कितने विश्वविद्यालय बने? यह सवाल पूछने वालों को देशद्रोही की श्रेणी में रखा गया था.
आज भी कोई खुलकर नहीं कह पा रहा है कि देश में न पर्याप्त अस्पताल हैं, न डॉक्टर हैं, न बिस्तर. ग्रामीण भारत की मात्र 0.03 फीसदी आबादी को अगर जरूरत पड़ जाए तो इतनी आबादी के लिए भी अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध नहीं हैं.
बीजेपी के नये और भव्य कार्यालयों में दिल्ली का आलीशान पार्टी मुख्यालय भी शामिल है. तब रवीश कुमार ने बीजेपी को बहुमंज़िला जनता पार्टी लिखा था. मीडिया ने इसकी चर्चा नहीं की, न ही ये सवाल पूछना ठीक समझा गया कि सैकड़ों बहुमंजिला कार्यालय कैसे बनवाए गए, पैसा कहां से आया? न ये ही सवाल पूछा गया कि अपने कार्यालय तो बनवा लिए, अस्पताल कितने बनवाए?
यह उसी दौर की बात है जब यूपी के गोरखपुर में आक्सीजन की कमी से दर्जनों बच्चे मर गए थे.
रवीश कुमार ने 30 मार्च, 2019 को लिखा था कि बीजेपी ने 6 अप्रैल को यूपी में 51 नए दफ़्तरों का उद्घाटन किया. सभी 71 ज़िलों में नया दफ्तर बना. एनडीटीवी ने प्राइम टाइम में फ़ैज़ाबाद, मथुरा, श्रावस्ती, बुलंदशहर, मेरठ, फिरोज़ाबाद के नए कार्यालयों की तस्वीर दिखाई थी. सभी नई ख़रीदी हुई ज़मीन पर बने थे.
भव्य राम मंदिर बनाने के नारे के बीच भव्य कार्यालय बन गए. मंदिर चुनाव का इंतजार कर रहा है.
2015 में लाइव मिंट की एक ख़बर छपी कि बीजेपी दो साल के भीतर 630 ज़िलों में नए कार्यालय बनाएगी. 280 ज़िलों में ही उसके अपने मुख्यालय थे. बाकी किराये के कमरे में चल रहे थे या नहीं थे. दो साल के भीतर इस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया.
2014 के चुनाव में एम्स जैसे कई अस्पतालों का वादा था, आज तक वादा ही है. मुझे नहीं याद है कि पिछले छह सालों में कहीं किसी राष्ट्रीय स्तर के अस्पताल की शुरुआत हुई हो.
"दिल्ली में जब भाजपा का मुख्यालय बना तो कोई नहीं जान सका कि इसकी लागत कितनी आई. 2 एकड़ ज़मीन में 7 मंज़िला इमारत का दफ्तर बन कर तैयार हो गया और उसे भीतर से किसी ने देखा तक नहीं. मतलब मीडिया ने अंदर से उसकी भव्यता दर्शकों और बीजेपी के ही कार्यकर्ताओं को नहीं दिखाया. इस मुख्यालय में 3-3 मंज़िला इमारतों के दो और ब्लॉक हैं. किसी चैनल ने उसकी रिपोर्टिंग न की. इजाज़त भी नहीं मिली होगी."
"मध्य प्रदेश के 51 ज़िलों में नए दफ़्तर बने. छत्तीसगढ़ में 27 ज़िलों में नए कार्यालय बने. सिर्फ तीन राज़्यों में ही बहुमंज़िला कार्यालयों की गिनती सौ से अधिक है. बीजेपी के भीतर एक किस्म की रियल स्टेट कंपनी चल रही है. यही सब बीजेपी के कार्यकर्ता और समर्थकों को जानना चाहिए. नोटबंदी से ठीक पहले बीजेपी ने देश के कई ज़िलों में ज़मीन ख़रीदी थी. बिहार में कई ज़िलों में नगद पैसे देकर ज़मीनें ख़रीदी गईं थीं."
क्या यह नहीं जानना चाहिए कि बीजेपी के पास कहां से इतने पैसे आए? बीजेपी देश की समस्याओं से निपटने के लिए कभी आरबीआई से वसूलती है, कभी जनता से वसूलती है. कोरोना आपदा आई है तो प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय राहत कोष के बावजूद नया कोष बना दिया है और पैसे दान करने की अपील कर रहे हैं, जबकि अभी प्राथमिक स्तर की भी व्यवस्थाएं नहीं की गई हैं.
अगर सरकार का खजाना इस तरह खाली है तो सरकार में बैठी पार्टी ने सैकड़ों दफ्तर कैसे बनवा लिए? वह पैसा कहां से आया था? कार्यालय बना तो बना, कितने राज्यों में भाजपा ने अस्पताल बनवाए? कितने स्कूल बने? कितने विश्वविद्यालय बने?
जहां एक अस्पताल बनना नामुमकिन रहा, वहां 600 से अधिक मुख्यालय कैसे बने होंगे? आप कहेंगे कि कॉरपोरेट चंदे का 90 प्रतिशत तक बीजेपी को ही मिला. तो हर महीने जो दर्जनों रैलियां होती रही हैं उनके खर्चे भी ध्यान में रखें. 50-50 करोड़ की रैलियां चर्चा में रही हैं.
इस बारे में मीडिया में बहुत कम छापा गया. रवीश कुमार ने लिखा था "आप किसी ऐसी पार्टी के बारे में जानते हैं जिसने दो साल से कम समय के भीतर सैंकड़ों नए कार्यालय बना लिए हों? भारत में एक राजनीतिक दल इन दो सालों के दौरान कई सौ बहुमंज़िला कार्यालय बना रहा था, इसकी न तो पर्याप्त ख़बरें हैं और न ही विश्लेषण. कई सौ मुख्यालय की तस्वीरें एक जगह रखकर देखिए, आपको राजनीति का नया नहीं वो चेहरा दिखेगा जिसके बारे में आप कम जानते हैं."
जनता से कहा गया है कि 'सबका साथ, सबका विकास' लेकिन हो रहा है 'सबका साथ, हमारा विकास'.
लेखक अश्वनी कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार है