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हिन्दी का प्रयोग राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है : शारिक रब्बानी
__ हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं का जन्म भारत में ही हुआ है और इन दोनों भाषाओ को सगी बहनें कहा जाता है। परंतु हिन्दी हमारे देश की राजभाषा है।राष्ट्र की जनता स्थानीय और तत्कालिक हितों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की विभिन्न भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग करने लगती हैं तो वही "राष्ट्र भाषा कहलाने" लगती है। और यही राष्ट्र भाषा लोगों को सामाजिक व साँस्कृतिक स्तर पर देश में जोड़ने का काम करती है।
हिन्दी हमारी राज भाषा तथा हिन्दी का प्रयोग राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है। हिंदी , प्रेम, मानवता व भाईचारा सिखाती है। सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, रहीम, रसखान आदि इसी भाषा के सहयोगी रहे हैं और बहुत से उर्दू कवियों और सूफियों ने भी इस भाषा को महत्व दिया है। हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है।
जिसके लिए हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यिकार बोहरा जी, राजेंद्र सिंह व अन्य साहित्यिकारों ने कड़ी मेहनत की थी तथा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिन्दी स्वाधीनता सेनानियों के सम्पर्क की भाषा भी रही है।
सन् 1918 में हिन्दी साहित्य सममेलन के दौरान हमारे देश के राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने भी हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने की पहल की थी और महात्मा गांधी ने हिन्दी को जनमानस की भाषा बताया था। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सन् 1828 में कहा था कि, इस समग्र देश की एकता के लिए हिन्दी अनिवार्य है। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती गुजराती भाषी थे तथा गुजराती व संस्कृत के अच्छे जानकार थे। हिन्दी का उन्हें कामचलाऊ ज्ञान था।
परंतु अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए तथा देश की एकता को मजबूत करने के उद्देश्य से उन्होंने अपना धार्मिक और साहित्य हिंदी में प्रकाशित कराया।
उनका कहना था कि हिन्दी के द्बारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। महर्षि अरविन्द घोष ने कहा था कि, लोग अपनी अपनी भाषा की रक्षा करते हुए सामान्य भाषा के रूप मे हिन्दी को ग्रहण करें।
एक साहित्यकार के रूप में मेरा सुझाव है कि देश के सभी इलाकों एवं समाज मे हिन्दी का प्रचार प्रसार व प्रयोग होना चाहिए। सभी भारतीयों को अपने घर क्षेत्र व समाज की भाषा के अलावा हिंदी भाषा अवश्य सीखनी चाहिए।
उर्दू व अन्य सभी देश मे बोली जाने वाली भाषाओं के कवियो और साहित्यकारो को अपनी रचनाओं और लेखो को हिन्दी में भी प्रकाशित और अनुवादित कराने की पहल करनी चाहिए।तथा हिन्दी साहित्य से भी जुड़़े रहना चाहिए ,साथ ही हिन्दी साहित्यकारो व कवियों से भी सम्बन्ध रखना चाहिए और बहु भाषीय साहित्यिक गोष्ठियों व कार्यक्रमो को बढावा देना चाहिए। राष्ट्र भाषा का सम्मान करना चाहिए।जिससे हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी देश मैं सदैव फले और फूले। राष्ट्रीय एकता की बेहतरीन मिसाल भी कायम रहे।
___ शारिक रब्बानी (वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार)
नानपारा, बहराईच (उत्तर प्रदेश)