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- लाल क़िले का सच
26 जनवरी के दिन दीप सिद्धू ने जब लाल क़िले के नीचे खड़े होकर 'राज करेगा खालसा' का नारा बुलंद करके अपने एक चेले के हाथ में भगवा झंडा सौंप कर क़िले की गुम्मद पर चढ़ने को कहा, मीडिया के ज़्यादातर लोग वहां मौजूद नहीं थे। सिद्धू के दूसरे चेले ने पूरे परिदृश्य की वीडियो बनाकर वायरल किया और कुछ ही देर में वहाँ पहुंचे मीडिया कर्मियों को सौंप भी दिया। सोशल मीडिया के एक हिस्से में कुछ देर के लिए यह हवा उड़ी कि लाल क़िले से राष्ट्रीय झंडा उतार किसानों ने अपना सिख धर्म का झंडा लहरा दिया है। टीवी चैनलों में अपनी जगह पर फहरते तिरंगे ने इसे गलत साबित कर दिया।
कौन है यह दीप सिद्धू? 6 महीने पुराने पंजाब के किसान आंदोलन से इसका कोई वास्ता है? क्या मौजूदा किसान आंदोलन बहुजातीय/बहुधार्मिक किसानों की राष्ट्रीय चेतना का एक विराट राजनीतिक कुम्भ है या किसी सम्प्रदायिक और संकीर्ण भावना का छुटमुट प्रतीक?
पंजाब के 32 किसान संगठनों से अलग राह पर चलने वाली 'किसान मज़दूर संघर्ष समिति' और 'भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) आउटर रिंग रोड पर चलने की अपनी मांग पर अडिग थे तभी कार्यक्रम से ठीक एक दिन पहले सिंघू बॉर्डर की परिधि पर फेंक दिया गया मुख़्तसर (पंजाब) निवासी पंजाबी फिल्मों के 'बी' ग्रेड अभिनेता दीप सिंधू मंच पर प्रकट हुआ और उसने चीख-चीख कर आउटर रिंग रोड और लाल क़िले तक पहुँचने का नारा लगाया। उसके साथ गैंगस्टर से सामाजिक कार्यकर्ता बन गया लाखा सिधाना भी शामिल था।
पिछले महीने ही पंजाब के सभी 32 किसान संगठनों ने दीप और लाखा को सांप्रदायिक मानते हुए उन्हें "आंदोलन का शत्रु" घोषित कर दिया था। 26 नवम्बर को जब किसान आंदोलन दिल्ली की देहलीज तक पहुँच गया था तब दीप सिद्धू ने एक पंजाबी टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में इन किसान नेताओं को ऐसा "कम्युनिस्ट क़साई" बताया "जिन्हें अपनी औलादों को भी बलि का बकरा बनाने में क़तई संकोच नहीं।" अभी 2 हफ़्ता पहले उसने ''एसकेएम' (संयुक्त किसान मोर्चा)के समक्ष खुद को शामिल किये जाने की दर्ख्वास्त दी थी जिसे उन्होंने रद्दी की टोकरी में फेंक दिया।
बीते सोमवार उनके साथ पन्नू के नेतृत्व वाले संगठन सरीके कुछ अन्य लोग भी शामिल हो गए। सोमवार-मंगलवार की रात उन्होंने अपनी योजना को सरंजाम दिया। मंगलवार की सुबह कोई 50 ट्रेक्टरों में ये लोग निकल भागे।
2019 के लोकसभा चुनाव में दीप सिद्धू न सिर्फ़ भाजपा का प्रचारक था बल्कि सनी दियोल का मुख्य चुनाव एजेंट भी था। मंगलवार की शाम जब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के साथ उसकी पुरानी तस्वीरें सोशल मीडिया में दौड़ने लगीं तो सनी दियोल ने विज्ञप्ति जारी करके उससे नाता तोड़ने की घोषणा की। इसके बावजूद भाजपा 'विक्रम' बनने के इस देशव्यापी प्रचार से कहाँ बच सकी जिसके कन्धों पर दीप सिद्धू जैसा 'बैताल' लदा था।
अराजकता के इस समूचे प्रकरण से 'एसकेएम' नेतृत्व को भी अपराध मुक्त नहीं किया जा सकता। इतने बड़े आंदोलन की लीडरी करते वक़त उन्हें सोमवार की रात के षड्यंत्र की खबर क्यों न हुई? थी तो उन्होंने इस बात को रात में ही मीडिया और प्रशासन के संज्ञान में क्यों न डाल दी और क्यों रात में ही अपनी 'रेंक एन्ड फ़ाइल' (पांतों) को इस षड्यंत्र को रोके जाने के लिए तैयार नहीं किया? आखिर लाल क़िले पर गढ़े गए झूठ के भीतर का सच साबित करने की ज़िम्मेदारी तो उन्हों की थी।