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- यूपी की सियासत में...
यूपी की सियासत में आयेंगा बड़ा मोड़, गवाह बन रही राम नगरी अयोध्या
यूपी की राजनीति में अब नया मोड़ आना शुरु हो गया है और उस मोड़ का गवाह बन रही है राम नगरी अयोध्या। मायावती की बहुजन समाज पार्टी से लेकर अखिलेश की समाजवादी पार्टी तक के नेता अब अयोध्या का रुख कर लिया है। बीते सप्ताह शुक्रवार को बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने यूपी में ब्राह्मणों को लुभाने के लिए प्रबुद्ध सम्मेलन की शुरुआत अयोध्या से ही की।
बीएसपी ने भी अब अयोध्या के धार्मिक और सामाजिक महत्व को समझने की कोशिश शुरू कर दी है। प्रबुद्ध सम्मेलन में जय श्री राम के नारों की भी गूंज सुनाई दी। साफ था कि बीएसपी का सम्मेलन ही अयोध्या में नहीं हो रहा है बल्कि वह यहां के परिवेश में भी खुद को ढला हुआ दिखाने का प्रयास कर रही है।
इसके बाद रविवार को बारी थी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की। वह अयोध्या पहुंचे और विकास कार्य की चल रही परियोजनाओं को जायजा लिया। यही नहीं सोमवार को एक बार फिर से यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश चंद्र शर्मा पहुंचे और सरकारी अधिकारियों से बात करके विकास कार्यों का जायजा लिया।
बीते साढ़े चार सालों में सीएम योगी आदित्यनाथ ने 20 बार अयोध्या का दौरा किया है। इससे पता चलता है कि बीजेपी के लिए अयोध्या कितनी अहम है। यही नहीं सियासी हलकों में अब इस बात की भी चर्चा है कि 2022 में सीएम योगी आदित्यनाथ यहीं से विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। शायद यही वजह है कि अब दूसरी पार्टियों ने भी अयोध्या का रुख किया है और वे यह जताना चाहती हैं कि वे इससे अछूती नहीं हैं।
बीजेपी सरकार अयोध्या को नए विकसित शहर के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश में है। अयोध्या में नए इंटरनेशनल एयरपोर्ट, वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन और रामायण सर्किट के तहत अन्य कई प्रोजेक्ट्स को बीजेपी सरकार ने अपने दौर में आगे बढ़ाया है। यही नहीं जून में खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में यूपी सरकार की ओर से किए गए विकास कार्यों की समीक्षा की थी।
समाजवादी पार्टी भी अब अयोध्या पर फोकस कर रही है। समाजवादी पार्टी के नेता और अयोध्या के पूर्व विधायक पवन पांडेय ने कहा, 'संसद के सत्र के बाद हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पूरे राज्य का दौरा शुरू करेंगे और अयोध्या भी आएंगे।' यहां तक कि पिछले दिनों समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी ने राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से की गई लैंड डील में भी गड़बड़ी का आरोप लगाया था।
अहम बात यह है कि समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी जिस मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के बिना कभी सत्ता तक नहीं पहुंच सकीं, आजकल वह इनके मामले में पूरी तरह मौन हैं।कांग्रेस मतों का गणित तो नहीं समझा रही, लेकिन प्रियंका वाड्रा भी अपने दौरों में मठ-मंदिरों में आशीर्वाद से परहेज नहीं कर रहीं। हालांकि, प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में संगठन की गैर मौजूदगी और भाजपा को हराने के लिए सभी से गठबंधन का विकल्प खुला रखकर वास्तविकता को एक तरह से सहज भाव से स्वीकार लिया है कि उनकी पार्टी लड़ाई में है ही नहीं। कुछ राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह विपक्ष की भाजपा के वोटों में सेंधमारी की रणनीति है, तो दूसरा वर्ग मान रहा है कि यह सत्ता पक्ष द्वारा बिछाए जाल में विपक्ष के आसानी से लगातार फंसते जाने का एक और प्रमाण है।
बतादें कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने और पीएम मोदी की लीडरशिप में बीजेपी के इस तरह से छाने से पहले अयोध्या गैर-भाजपा दलों के लिए अछूती सी थी। अयोध्या जाकर रैली करना या फिर राम मंदिर, हनुमानगढ़ी जैसे स्थानों के दर्शन करने से राजनीतिक दल बचते थे। लेकिन अब यूपी की सियासत में बड़ा मोड़ आया है जहा सपा बसपा और भाजपा अपना चुनावी दौर की शंखनाद यहां से ही करने को सोच रहे है।