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- यू पी एस सी का परीक्षा...
शुक्रवार को संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा का परिणाम क्या निकला बिहार अपने पूरे बिहारीपन के रंग में नजर आने लगा. टी वी चैनलो और अखबारो की बात कौन करे शोशल मीडिया पर हर जगह बिहार ही बिहार नजर आ रहा था.
एक बिहारी सब पर भारी नारों के साथ हर बिहारी चाहे किसी भी उम्र के हों वो खुद को टापर शुभम , प्रवीण और सत्यम समझ रहे थे. आखिर समझते भी क्यो नही आखिर बिहार का बेटा जो है.
बिहार के बेटे के बारे में अगर बिहारी ना समझे तो आखिर कौन समझे? आप बार - बार पूछेगे कि आखिर मै बिहारी क्यो बोल रहा हूं? उस बिहार के बारें में जहा का अतीत भले समृद्ध रहा हो लेकिन वर्तमान तो डरावना है. खासकर शिक्षा के क्षेत्र में जहां लाखो छात्र हर साळ मैट्रिक में फेल करते है तो लाखों का एडमिशन इंटर में नही होता . जो कुछ बच जाते है डिग्री तक जाते - जाते दम घुटने लगता है और जो किसी कारण से एम ए, पी एच डी कर लेते हैं तो वित्त रहित की चक्की में पिस कर दम तोड़ देते है.
यानि 11 करोड़ का आबादी मे कोई शुभम निकला तो हम उन लाखों छात्रो को भूल जाते है जो बेरोजगारी का दंश झेल पलायन कर रहे या ठेकेदारो के शोषण का शिकार हो रहे है. बिहारी का मतलब भोलापन , गवंई , वह व्यक्ति जो अभाव मे भी मस्त है भले जीवन उसका पस्त है. वह व्यक्ति जो अकेले किसी भी संकट से जूझ सकता है लेकिन संकट के कारण ही मौत को गले लगा सकता है. चाहे वह आई ए एस ( तात्कालीन डी एम बक्सर ) वह बिहारी जो दूसरे को पी एम बना सकता हो लेकिन बिहार के किसी नेता को आगे बढने से रोक सकता है.
वह बिहारी जो बड़े - बड़े शहरो मे अपनी पीठ पर भारी बोझ उठा सकता हो लेकिन परिवार का बोझ नही उठा सकता और बीबी बच्चे को अकेला छोड़ परदेश में रहने को मजबूर हो यही तो बिहारी पन है और क्या है.
खैर अब आते है मूल प्रश्न पर . क्या यू पी एस सी में टापर हो जाने से बिहार की किस्मत बदलती है. लोग कहेगें बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना . यह भी कोई सवाल है जश्न के मौके पर मातम की बात करना . मैं ऐसा इसलिये कर रहा कि मीडिया में यू पी एस सी के परिणाम आने के बाद सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होनें हम बिहारियो की हंसी उडायी हांलाकि वे भी बिहारी ही थे. तब मुझे लगा कि इसकी पड़ताल होनी चाहिये. आपने सहरसा जिले के वन गांव महिषी का नाम जरूर सुना होगा. हालांकि मैं खुद वन गांव गया हूं लेकिन वन गांव की वर्तमान स्थिति के बारे में मैने अपने सहरसा रिपोर्टर शौकत को फोन लगाया . मेरी जानकारी के अनुसार बिहार में वनगांव ही एक ऐसा गांव है जहां सबसे अधिक आई ए एस और आई पी एस है.लेकिन मुझे जो जानकारी मिली उसके मुताबिक काफी निराशा हुई. यानि वनगांव भी बिहार के औसत गांव से ज्यादा कुछ नही. टूटी सड़के , जल जमाव की समस्या तो है ही ना कोई बेहतर स्कूल और ना ही कोई तकनीकी महाविद्यालय इस गांव को अब तक नसीब हुआ है. यानि देश - विदेश में अपने ज्ञान का परचम लहराने वाले मेधावी अधिकारियो का गांव बेहतर नही हो पाया. इतना ही नही अधिंकांश बड़े अधिकारियो ने तो गांव ही छोड़ दिया. तो फिर सवाल उठता है कि आखिर यह जश्न क्यो?
खैर ये तो एक गांव की कहानी है. लेकिन देश में सबसे ज्यादा आई ए एस देने वाले बाले अधिकांश अधिकारियो में से कितने आई ए एस या आई पी एस का नाम लोग जानते हैं. या खासकर युवा पीढ़ी जानती है. वजह साफ है इन्होनें अपने राज्य के या गांव के लिये ऐसा कुछ नही किया जिसके चलते उन्हें याद किया जा सके.
बिहार का दुर्भाग्य भी रहा कि चाहें राजनेता हों या अधिकारी उन्होनें बिहार की सूरत बदलने की या तो कोशिश नही की या फिर उन्हें सफलता नही मिली. कुछ अपवाद को छोड़कर . यानि पहले मुख्यमंत्री डा0 श्री कृष्ण सिंह , लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को छोड़कर . श्री बाबू ने अपने कर्म क्षेत्र बेगूसराय को दूसरा कलकत्ता बनाना चाहा लेकिन सफल नही पाये. लालू प्रसाद ने अपने गांव फुलवरिया से लेकर अपने दोनो लोक सभा क्षेत्र सारण और मधेपुरा में रेल मंत्री के रूप में कुछ प्रयास किया इसमें भाग्यशाली नीतीश कुमार रहे जिन्होनें अपने गांव के अलावे अपने क्षेत्र बाढ़ और नालंदा का तो विकास किया ही बिहार में भी कई योजनाओ को धरती पर उतारा.
आई एस के रूप में भी किशोर कुणाल एन के सिहं , व्यास जी , राजकुमार सिंह , के के पाठक , अंजनी सिंह, प्रत्यय अमृत अभयानंद,विकास वैभव जैसे अनेक अधिकारी (हर सभी का नाम लेना संभव नही) हुए जिन्हें आप कह सकते है कि इन्होनें समाज को बहुत कुछ दिया है. लेकिन ऐसे अधिकारी उंगली पर गिनने लायक है. जबकि नेताओ की अपेक्षा अधिकारियो को अधिक वक्त मिलता है जनता की सेवा करने का.
लेकिन अब सवाल उठता है कि क्या इस निराशा के कारण हम जश्न मनाना छोड़ दे. बिल्कुल नही. आज के टापर का जिस तरह से इस्तकबाल बिहार की जनता ने किया है हम उ्मीद करते है कि शुभम , प्रवीण और सत्यम की जबाबदेही बढ़ गयी है. वजह अब सोशल मीडिया का जमाना है और जिस जनता ने उनको सिर पर चढाया है वह उनकी पोल ना खोल दे.आखिर हम तो ठहरे ठेठ बिहारी.फिलहाल यू पी एस सी में सफल भी युवाओं को बधाई.
- अज्ञात