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वैश्या-- ...तुझे श्मशान नही जाना है, मैं तू दूर ही रहेगी, बाकी कालू और कोठे के लड़के सब करवा देंगे
--वैश्या--
...तुझे श्मशान नही जाना है।मैं तू दूर ही रहेगी।
बाकी कालू और कोठे के लड़के सब करवा देंगे। यह कहते हुये सुषमा निढाल सी मधु को लेकर अस्पताल के बाहर खड़ी गाड़ी में लाकर बैठ गई।
अभी तक आपने पढ़ा,अब आगे।
भाग 11-पूरे रास्ते मधु चुपचाप सड़क की तरफ देखती रही। अब तलक आंखे बरस के रेगिस्तान हो चुकी थीं। श्मशान से सौ फर्लांग दूर वह राजू की जलती चिता में खुद के अरमानों को जलते देख रही थी।
अब चला जाय माही,सब खत्म हो चुका।राजू के चिता कि राख को देखते हुये सुषमा ने कहा।
मधु ने एकबार सुषमा को और एकबार बुझ चुकी चिता को नम आंखों से देखा और बिना कुछ कहे श्मशान से निकलने वाले रास्ते पर कदम बढ़ा दिया।
कोठे पर पहुँचते ही।
देख माही राजू के जाने का दुख सिर्फ तुझे नहीं,यहां सबको है। पहली बार ऐसा हुआ है कि कोठे के किसी ग्राहक के लिये पूरा कोठा परेशान हुआ है। वरना इधर सिरिफ पैसे से मतलब होता है। दीदी ने समझाने के लहजे में कहा ।
जी दीदी मैं समझ रही हूँ, यह कहते हुये मधु अपने कोठरी में जाने लगी।
अरे सुन माही, अभी हफ्ते भर सुषमा तेरे साथ ही सोयेगी। इसका वाले कोठरी में जो नई लड़की आई है न वो रहेगी। दीदी ने मधु के हाल औऱ जज्बात देखते हुए खुद से निर्णय लिया।
ठीक है दीदी वैसे मैं मरने वरने वाली नहीं। जब उस वक्त न मरी तो अब क्या...कुछ लोग मरने के लिये नहीं मर-मर के जीने के लिये पैदा होते हैं। यह कहते हुये मधु कमरे में चली गयी।
समय पंख लगाकर उड़ता रहा,कुछ महीने बाद ।
आईssss उई माँss दीदी मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है। मधु ने तड़फड़ाते हुये आवाज लगाई।
कोठे के सामने एक एम्बुलेंस रुकी और मधु हॉस्पिटल में दाखिल हो चुकी थी।
बधाई हो,आपके यहाँ लड़की हुई है। नर्स ने हॉस्पिटल के गैलरी में बेसब्री से चहलकदमी करते हुये दिदी से कहा।
एकबारगी दीदी के चेहरे पर चमक आई,फिर उतर गयी।
नहीं नहीं यह मैं क्या सोच रही है। यह राजू माही की अमानत है।
उसने नर्स को मिठाई के पैसे दियें और वार्ड की तरफ बढ़ गयी।
क्रमशः....
विनय मौर्या।
बनारस।