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- ''ले ला फोटो आखिरी...
''ले ला फोटो आखिरी बार... अगली बार अइबा त कुल खतम हो जाई, कुछ न मिली'' , टूटते वनारस की तस्वीर
बनारस में दस तारीख की सुबह मैं संकटमोचन की ओर जा रहा था। नज़रें सड़क की दाहिनी तरफ टिकी हुई कुछ तलाश रही थीं। दुर्गाकुण्ड बीत गया। जो देखना चाह रहा था, दिखा नहीं। फिर शाम को दोबारा उधर से वापस निकला। नज़र बाईं ओर टिकी रही। भेलूपुर चौराहा आ गया, लेकिन हाथ खाली। थोड़ा बेचैन होते हुए मैंने पूछ ही डाला- ये मुड़ीकट्टा बाबा कहां गए? पंकज भाई ने कहा- यहीं तो थे। ड्राइवर ने भी यही कहा। तीसरी बार ग्यारह तारीख को वापसी में खूब ध्यान लगाए रहा। सड़क किनारे मुड़ीकट्टा बाबा दिख गए। मैंने गाड़ी रुकवाई, सिर झुकाया और एक तस्वीर उतार ली। दिन भर विश्वनाथ गली के इर्द-गिर्द घूमने के बाद जो डर मन में समाया था, थोड़ा हलका हुआ।
उस सुबह जब नीलकंठ महादेव के पास दीवार पर सटे धरोहर बचाओ समिति के परचों की मैं तस्वीर उतार रहा था, तब एक पानवाले ने देखकर टिप्पणी की थी- ''ले ला फोटो आखिरी बार... अगली बार अइबा त कुल खतम हो जाई, कुछ न मिली।'' सुनकर दिल धक् से रह गया था। ज्ञानवापी मस्जिद के सामने जो विशाल गड्ढा बना दिया गया है, उसमें जाने कितने विग्रह समा गए हैं। दुर्मुख विनायक अकेले खड़े हैं। त्रिसंध्या विनायक पर तलवार लटक रही है। गोयनका लाइब्रेरी आखिरी सांसें गिन रही है। जहां देवकीनंदन खत्री ने 'चंद्रकांता' लिखी, जहां लालबहादुर शास्त्री बरसों रहे, वे सारे मकान गिरा दिए जाएंगे। मौत से पहले का एक विचित्र सन्नाटा है जो उमस और कीच भरी काशी की ठंडी गलियों में बेतरह चीख रहा है। मैं उसे महसूस कर सकता था। इतनी बेचैनी कभी नहीं हुई थी बनारस में।
सुभाषजी की बरसों पुरानी मिठाई की दुकान तोड़ी जा चुकी है। वे दूसरी जगह बैठ रहे हैं। यहां से भी जाने का फ़रमान आ गया है। मैंने पूछा- अब कहां जाएंगे। बोले- जहां बाबा ले जाएं। मैंने कहा- ये सब बाबा का किया धरा है? बोले- बाबा के संगे भूत-पिचास भी त रहेलन...। भूत-पिशाचों का डेरा एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों तक पसरा है। पुण्य कमाने दूर-दूर से आए लोग लोग गैलन में गंगाजल लेकर यात्रा नहीं कर पा रहे हैं। उसे निकलवा दिया जा रहा है सुरक्षा के नाम पर। काशी ने ऐसा अधर्म पहले कभी नहीं देखा था। लोग अपने गुस्से को जज़्ब किए हुए हैं। आज बनारस पर प्रेतों की छाया है। लोगों के चेहरे से हंसी गायब है। मैं लौट कर भीतर से सहमा हुआ हूं। मुड़ीकट्टा बाबा का इतिहास काशी में खुद को दुहरा रहा है। लग रहा है किसी ने एक झटके में मूड़ी काट ली हो।