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भूत-प्रेत के अस्तित्व पर हमेशा से बहस होती रही है और आगे भी होती रहेगी लेकिन इतना तो सच है कि वे हजारों सालों से हमारी सोच के हिस्सा रहे हैं। यह और बात है कि हमारी सोच के बहुत बड़े हिस्से पर अंधविश्वास हावी है, वरना यह विश्वास अवैज्ञानिक भी नहीं है। सोचने की बात है कि मरने के बाद देह मिट्टी में मिल जाती है, लेकिन हमारे भीतर तमाम बुद्धि-विवेक के साथ जो संचालक ऊर्जा मौजूद है वह कहां जाती होगी ? ऊर्जा का विनाश नहीं होता। इसी विदेह ऊर्जा को हम चेतना, भूत या प्रेत कहते रहे हैं। अब विज्ञान भी मानने लगा है कि हमारी चेतना देह के नष्ट होने के बाद भी अपनी बुद्धिमत्ता के साथ सृष्टि में मौजूद रहती है। स्वर्ग और नर्क तो कल्पनाएं हैं। विदेह ऊर्जाएं पृथ्वी के वातावरण में ही हैं। शायद अपने लिए नई देह की तलाश में। एक तरह से हम सब अपने पूर्वजों की ऊर्जाओं या प्रेतों से घिरे हुए हैं। परामनोवैज्ञानिकों की मान्यता और कुछ लोगों के ऐसे अनुभव भी रहे हैं कि अदृश्य चेतनाएं हमसे संवाद करना चाहती हैं। ऐसा करने के लिए वे हमारे अचेतन मष्तिष्क से खेलती हैं। यह मानसिक संदेश टेलीपैथी जैसा कुछ होता है जिसे हम सुनते तो हैं, लेकिन भ्रम मानकर अनसुना कर देते हैं। पता नहीं कितना सच है, लेकिन योगियों का दावा है कि ध्यान के माध्यम से चेतना का स्तर बदलकर इन विदेह ऊर्जाओं से संवाद किया जा सकता है।
पृथ्वी के वातावरण में मौजूद ये ऊर्जाएं खतरनाक नहीं होतीं। वे उतनी ही अच्छी या बुरी होती हैं जितनी वे अपनी देह में रही हैं। अच्छी ऊर्जाएं आसपास हों तो उनका प्रभाव सकारात्मक होता है। नकारात्मक ऊर्जाओं की उपस्थिति हमारे दिलोदिमाग में नकारात्मकता का संचार करती हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। भूत-प्रेतों द्वारा हत्या, हिंसा और उत्पात की बातें लोककथाओं, काल्पनिक साहित्य, सिनेमा और बेहूदे टीवी सीरियलों की देन हैं। कुछ लोग प्रेत ऊर्जाओं को देखने के दावे भी करते हैं, लेकिन सच यह है कि ऊर्जा को सिर्फ महसूस किया जा सकता हैं। हां, आप अत्यधिक डरे हुए हों तो आपको प्रेत दिखाई दे जा सकते हैं। इसे मतिभ्रम कहते हैं। यह वैसा ही है जैसे भक्ति के अतिरेक में लोगों को देवी-देवताओं के दर्शन हो जाते हैं।
प्रेत हमारी ही ऊर्जाएं हैं। मरने के बाद हम सबको प्रेत ही होना है। आमतौर पर हम मृत्यु और प्रेतों पर बात करने से डरते हैं। ज़रूरी है कि अंधविश्वासों को एक तरफ रखकर प्रेत ऊर्जाओं के बारे में खुले दिमाग से बातें होनी चाहिए। वैज्ञानिक चेतना का अर्थ बिना जांचे-परखे किसी भी चीज़ को खारिज़ कर देना नहीं होता। अंधविश्वास गलत है तो अंधअविश्वास कैसे सही हो सकता है ?
( ध्रुव गुप्ता - पूर्व आईपीएस )