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आईएएस के पद का नीति निर्माण और शासन में प्रभाव क्या कम हो रहा है?

Shiv Kumar Mishra
31 March 2022 5:53 PM IST
आईएएस के पद का नीति निर्माण और शासन में प्रभाव क्या कम हो रहा है?
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सुशासन की धुरी माने जाने वाले आईएएस के पद का नीति निर्माण और शासन में प्रभाव क्या कम हो रहा है? यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है, क्योंकि आईएएस के 1500 पद देश के राज्यों में रिक्त हैं|

रिक्त पदों की कमी की पूर्ति के लिए लेटरल एंट्री के माध्यम से तकनीकी विशेषज्ञों को लाने की शुरुआत की गई है| राजनीतिक शासन के प्रमुखों के सचिवालय और आईएएस के पदों पर OSD के रूप में प्राइवेट पर्सन, मनपसंद रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट और डेपुटेशन पर अधिकारी लाकर काम चलाया जा रहा है|

भारत सरकार के स्तर पर आईएएस अधिकारियों की कमी का मामला पिछले दिनों काफी चर्चा में आया था| केंद्रीय डेपुटेशन रिजर्व के लिए राज्यों द्वारा अधिकारियों की पदस्थापना में हीला हवाली को देखते हुए, भारत सरकार ने सेवा नियमों में संशोधन प्रस्तावित किया था| इन संशोधनों का गैर भाजपा शासित राज्यों द्वारा विरोध किया गया था| केवल केंद्रीय शासन स्तर पर ही नहीं बल्कि राज्य के स्तर पर भी आईएएस अधिकारियों की कमी दिखाई पड़ रही है|

मध्य प्रदेश का ही उदाहरण लें तो पता चलता है कि प्रदेश में आईएएस के लिए स्वीकृत हर पांचवा पद रिक्त है| भारत सरकार द्वारा मध्य प्रदेश के भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग का परीक्षण 2016 में किया गया था| इसके तहत मध्य प्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल 439 पद निर्धारित किए गए हैं| इनमें सीधी भर्ती के 306 तथा पदोन्नति या चयन द्वारा नियुक्ति के लिए 133 पद स्वीकृत किए गए हैं| सीधी भर्ती के 250 तथा पदोन्नति के 97 इस प्रकार कुल 347 अधिकारी कार्यरत हैं| सूबे में आईएएस के 92 पद रिक्त हैं|

प्रशासन के लीडर इस संवर्ग के इतनी बड़ी संख्या में पद रिक्त होना कहीं ना कहीं कामकाज और प्रशासन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा होगा| एक और महत्वपूर्ण सवाल है कि संवर्ग के अंतर्गत नई नियुक्तियां हो नहीं रही हैं और हर साल सेवानिवृत्ति बढ़ती जा रही है|

केंद्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय सेवा की नियुक्ति, प्रतिनियुक्ति और गुणवत्ता में सुधार के लिए नए सिरे से प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा| वर्ष 2012 में देश में आईएएस कैडर की समीक्षा के उपरांत 180 अधिकारियों की वार्षिक भर्ती तय की गई थी| वार्षिक भर्ती की इस संख्या में वृद्धि आवश्यक है, बिना इस वृद्धि के आईएएस अफसरों की कमी दूर नहीं हो सकती|

आईएएस कैडर में अधिकारियों की कमी के कारण कई पदों पर दूसरे कैडर के अधिकारी कार्य कर रहे हैं| मध्यप्रदेश में भी एग्रो जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में आईआरएस अधिकारी को कमान सौंपी गई है|

शासन के सिस्टम का नियंत्रण राज्यों में मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा किया जाता है| इसकी सक्रियता, प्रभावशीलता का प्रशासन को गतिशील बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहता है| मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री सचिवालय में पिछले कार्यकाल में तीन प्रमुख सचिव पदस्थ रहे थे जबकि वर्तमान में एक प्रमुख सचिव ही कार्यरत है| इसी प्रकार आईएएस संवर्ग के सचिव, अपर सचिव और उपसचिव स्तर के अधिकारियों की उपलब्धता भी सचिवालय में कम हुई है| एक और विशेष बात जो प्रशासनिक क्षेत्र में प्रकाश में आई है| उसमें महत्वपूर्ण पोजीशंस पर प्रायवेट व्यक्ति ओएसडी या अन्य भूमिका में प्रभावी बने हुए हैं| यह सारी स्थिति शायद इसलिए हो सकती है क्योंकि आईएएस कैडर में अधिकारियों का अभाव है| क्योंकि पद रिक्त हैं इसलिए अत्यावश्यक स्थानों पर ही उपलब्ध अधिकारियों को लगाया जाना स्वाभाविक है|

गुड गवर्नेंस की आशा और विश्वास शायद अभी पूरा नहीं हुआ है| अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी मूलतः प्रशासन का नेतृत्व करते हैं उनकी लीडरशिप में ही प्रशासन का पूरा अमला गवर्नमेंट की भूमिका को अंजाम देता है| निचले स्तर के शासकीय अमले में तो खामियां प्रकाश में आती रहती हैं, लेकिन अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के मामले में भी कई कारनामें ऐसे उजागर हुए हैं जिनसे इन सेवाओं के प्रति विश्वास प्रभावित हुआ है| ऐसा लगता है देश की नौकरशाही मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता के संकट से भी जूझ रही है|सिस्टम रूल आफ लॉ के अंतर्गत चले उसमें राजनीतिक हस्तक्षेप न्यूनतम हो यह भी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रशासनिक सुधार और प्रक्रियाओं को सरल बनाने की ईमानदार कोशिशें शुरू की हैं| मिशन कर्मयोगी, क्षमता निर्माण आयोग जैसी हाल की भारत सरकार की पहल इसी दिशा में एक कोशिश है, इस विचार को भी अमल में लाना आवश्यक है कि सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभाशाली को पुरस्कृत किया जा सके| जिससे कि युवा अधिकारियों को औसत दर्जे में फिसलने से रोका जा सके| "अंडर-परफार्मर्स" को समय से पहले सेवानिवृत्त किया जाना चाहिए, ताकि वे शासन को नीचे की तरफ ना ले जा सकें|

वर्तमान में औसत दर्जे और अधिकारियों की कमी के बीच प्रतिभाशाली अधिकारियों को बहुत अधिक काम दिया जाता है| ये टिकाऊ रास्ता नहीं है| अखिल भारतीय सेवाओं में सुनिश्चित पदोन्नति के कारण कैडर की संरचना प्रभावित होती है| उदाहरण के लिए कमोबेश हर राज्य में देखा जा सकता है कि एसीएस पीएस तथा पुलिस में डीजीपी, एडीजीपी स्तर के अधिकारियों की संख्या अधिक है| यह शीर्ष भारीपन शासन में समुचित योगदान नहीं दे रहा है|

जो अखिल भारतीय सेवाएं पूरे देश में प्रशासन का आधार स्तंभ है| उनकी संरचना, गुणवत्ता और मात्रा पर ही पर्याप्त ध्यान नहीं रखा जाएगा तो फिर संपूर्ण प्रशासन निश्चित ही प्रभावित होगा| अफसरों की संख्या और नौकरशाही की कमी को ठीक करने में राजनीति की महत्वपूर्ण भूमिका है| प्रशासन की शिथिलता को कम करने के लिए इस दिशा में तेजी से प्रभावी प्रयास करने की जरूरत है|

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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