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- हम किस पर गर्व करें?-...
यह विचार का विषय है कि हम अपने धर्म, जाति, कुल, दौलत, बल, विद्या-बुद्धि ,पद-प्रतिष्ठा और कीर्ति पर क्यों गर्व करें? जिसे हम लेकर ही नहीं आये और जो दूसरों की कृपा-अनुकूलता पर ही निर्भर है, उस पर क्यों गर्व करें? यह भी कि हम न किसी की गरीबी अथवा दुर्बलता का मजाक उड़ायें, न कपूर की तरह उड़ जाने वाली अमीरी पर अभिमान करें।
यह सच है कि ज्ञान का अभिमान तो अजगर की तरह उसे ही लील जाता है। जरूरत इस बात की है कि मनुष्य केवल लोकोन्मुख मनुष्यता पर गर्व करे, बल्कि उसे अपने अन्तर्मन में महसूस करे और उससे सदैव दीप्त रहे। असलियत में जिसे पाने में अपना कोई योगदान नहीं, उस पर गर्व कैसा और क्यों ? हम स्त्री अथवा पुरुष हैं, ब्राह्मण अथवा शूद्र हैं, इस पर न कभी गर्व करें और न ही यह कभी भी ग्लानि का विषय बनने पाये । इसे लेकर कभी किसी का तिरस्कार तो भूल से भी न करें।
यदि हमें किसी चीज पर गर्व हो और दूसरे को दूसरी चीज पर तो दोनों के अपने-अपने गर्व ग्रावन(पत्थर) की तरह टकराते हैं और चिनगारियाँ पैदा करते हैं, और तो और कभी शोले भी। राजनीति में आपस में टकराते हुए गर्व स्वार्थ के तैलाभ्यंग से सरस हो जाते हैं और उन्हें सहलाकर पदासीन कर दिया जाता है। सत्ता पहले कसम खाती है, फिर खसम (लोकतंत्र) को चबा डालती है। खैर, गर्व करना है तो इस पृथ्वी पर किया जाय, जो माँ की तरह सर्वंसहा बनकर हमारा पोषण करती है।
गर्व पिता की तरह कृपाकन्द बने आकाश की करें, जीवन-प्रकाश देने वाले प्रत्यक्ष देवता सूर्य की करें, शीतल ज्योत्सना विकीर्ण करने वाले पीयूषकर चंद्रमा की करें, प्राणवायु से निःशुल्क जीवन प्रदान करने वाले पवन की करें, अपने ताप से ऊष्मा-ऊर्जा प्रदान करने वाले अग्निदेव और जल देवता बादल पर करें, अपने देश के पर्वतों पर, महासमुद्र और नदियों पर गर्व करें, अपने जंगलों पर गर्व करें (यदि गर्व करने लायक बच गया हो तो), अन्न पैदा करने वाले खेतों पर, किसानों पर, श्रमिकों पर, शिक्षकों पर, वैज्ञानिकों पर, सीमा की रक्षा में लगे जवानों के जज्बे पर, सेवारत स्वास्थ्य की साधना करने वाले चिकित्सक-भगवानों पर गर्व करें। गर्व करें कि आप हमसे प्यार करते हैं, गर्व करें कि हम साथ-साथ हैं और यह कि हम यह भली भांति जान लें कि हमारे पास गर्व करने लायक बहुत कुछ है ।
ना हिन्दू मैं मुसलमाँ और नहीं क्रिस्तान।
चंदा-सूरज नैन दो, देखूँ एक समान।।
कर्म वयन-कवयन करे, सत्संगति दिन-रात।
नाम जीभ हरि, उर बसे, झेले झंझावात।।
जो है काम कबीर का, वही करे नीहार।
राग-द्वेष से मुक्त मन करे सभी से प्यार।।
( लेखक प्रख्यात शिक्षाविद, कवि, साहित्यकार, मुरली मनोहर टाउन पी जी कालेज, बलिया में हिन्दी विभाग में विभागाध्यक्ष हैं व कालजयी काव्य संग्रह "इंद्रधनुष", "गीत गुंजार", महाकवि कालिदास कृत "रघुवंश" महाकाव्य का भावानुवाद "रघुवंश प्रकाश", मेरी कविताओं में "स्त्री" ( स्त्री का जीवन और जीवन में स्त्री), के रचियेता व "बिहारी और घनानंद" काव्य संग्रह के संपादक हैं)