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- बाबरी मस्जिद के नीचे...
मो जाहिद
इतिहास की चिन्ता करने वालों और व्हाट्सऐप्प ज्ञान से इतिहास को सुधारने वालों के इतिहास में यह भी दर्ज रहना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का फैसला और फैसला देने वाले मुख्य न्यायाधीश के रिटायर होने पर राज्यसभा में मनोनयन का 'संबंध / कारण' तो ढूंढ़ा ही जाएगा।
बाबरी मस्जिद मामले में मुसलमान पक्ष सदैव कहता रहा कि वह उच्चतम न्यायालय का जो भी फैसला होगा वह मानेगा। उसके पक्ष में होगा तब भी मानेगा उसके विरोध में हुआ तब भी मानेगा।
अर्थात उसे उच्चतम न्यायालय पर पूरा भरोसा था। होना भी चाहिए।
वहीं भगवा पक्ष सदैव यह कहता रहा कि उसे "मंदिर" के अतिरिक्त कुछ भी मंज़ूर नहीं , उसके नेता खुलेआम उच्चतम न्यायालय को यह चेतावनी देते रहे कि धार्मिक आस्था का मामला सर्वोच्च न्यायालय तय नहीं कर सकती।
अर्थात उसे उच्चतम न्यायालय पर बिल्कुल भरोसा नहीं था , जो कि गलत था।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस देश के किसी शांतिप्रिय , न्यायप्रिय और तथाकथित सेकुलर लोगों ने भगवा पक्ष के इस प्रतिक्रिया की ना तो निंदा की और ना ही उनको गलत कहा।
मुसलमान यहीं गच्चा खा गया।
जिस उच्चतम न्यायालय पर उसे बेहद भरोसा था उसी का मुख्य न्यायधीश संसद की एक सीट और एक महिला के देह पर सेट हो गया और बाबरी मस्जिद की ज़मीन पर भगवा पक्ष के सभी दावे और दलीलों को नकारते हुए , उनके सभी दावों को झूठा सिद्ध करते हुए बाबरी मस्जिद की ज़मीन उसी भगवा पक्ष को दे गया।
मुसलमान अपने वादे के अनुसार उच्चतम न्यायालय के प्रति सम्मान दिखाते हुए खामोशी से उस फैसले को स्विकार करके बैठ गया। ठीक भी है , उच्चतम न्यायालय का सम्मान मुसलमान नहीं करेगा तो कौन करेगा ?
मुसलमान सदैव ही देश की व्यवस्थाओं पर भरोसा किया और उन व्यवस्थाओं ने सदैव ही मुसलमानों को धोखा दिया , यह एक कटु सत्य है।
कभी कभी सोचता हूँ कि मुसलमान भी भगवा पक्ष की तरह यह बयान देते रहते और टीवी पर चिघाड़ते रहते कि वह मस्जिद से इतर उच्चतम न्यायालय का कोई फैसला नहीं मानेंगे तो क्या होता ? उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर ही सवाल उठाते कि यह मेरे धर्म और मस्जिद का मामला है जो सारी दुनिया के सामने ढहाई गयी और उच्चतम न्यायालय को इसमें दखल ना दे , तब क्या होता ?
मुझे लगता है कि तब शायद उच्चतम न्यायालय मुसलमानों के पक्ष को लेकर अधिक दबाव में होता और ऐसा ब्लंडर फैसला देने के पहले 10 बार सोचता।
मुसलमानों का उच्चतम न्यायालय के प्रति किया गया यही विश्वास उसे मिले धोखे का कारण बना। और जो उच्चतम न्यायालय यह फैसला देता है कि "बाबर ने कोई मंदिर नहीं तोड़ा" , "बाबरी मस्जिद के नीचे कोई मंदिर नहीं" , "बाबरी मस्जिद कोई मंदिर तोड़ कर नहीं बनाई गयी" , वही उच्चतम न्यायालय केवल आस्था के आधार पर मस्जिद की ज़मीन भगवा गिरोह को दे देती है।
कहने का अर्थ यह है कि "भगवा" पक्ष की यह रणनीति सही थी कि वह उच्चतम न्यायालय का फैसला तभी मानेगा जब कि ज़मीन उसे दी जाए। और उच्चतम न्यायालय अपने फैसले को ना मानने के डर और दबाव में एक ऐसा फैसला दे गया जिसका भविष्य में ऐसा ऐसा पोस्टमार्टम होगा कि उच्चतम न्यायालय की साख पर आँच आ जाएगी।
खैर , मुसलमानों ने समझदारी दिखाई और कम से कम इतिहास में उस पर यह इल्ज़ाम कभी नहीं लगेगा कि उच्चतम न्यायालय के सम्मान के विरुद्ध कोई बात कही या उसके निर्णय को ना मानने का ऐलान किया।
पर अब मंदिर बनाने की प्रक्रिया में उसकी इस भावना को कुरेदा जा रहा है , मुसलमानों ने सब्र कर लिया , उच्चतम न्यायालय का फैसला मान लिया , वह देख कर सब्र कर लिया कि उच्चतम न्यायालय ज़िन्दा मक्खी निगल रहा है और मुसलमानों को भी ज़िन्दा मक्खी निगलने का आदेश दे रहा है , उसी आदेश का सम्मान करते हुए मुसलमानों ने भी ज़िन्दा मक्खी निगल लिया।
तो चुपचाप मंदिर बना लो ना भाई , पर नहीं , रोज़ की खुदाई और रोज़ की खिच खिच कि खुदाई और समतलीकरण में मंदिर के अवशेष मिल रहे हैं , मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने का प्रमाण मिल रहा है।
यह उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना है , जब उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दे दिया कि मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनी , बाबर ने कोई मंदिर नहीं तोड़ा और मस्जिद के नीचे किसी मंदिर के अवशेष नहीं हैं तो फिर रोज़ रोज़ उच्चतम न्यायालय के फैसले के उलट दावे करने का क्या मतलब है ?
मुसलमानों ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को दिल पर पत्थर रख कर स्विकार्य कर लिया है , मस्जिद की ज़मीन पर अपना दावा छोड़ दिया तो या तो चुपचाप मंदिर बनवा लो भाई और नहीं तो खुदाई चल ही रही है , यह फैसला भी हो जाने दो कि जो अवशेष निकल रहे हैं वह क्या प्रमाणित करते हैं।
उच्चतम न्यायालय में उसके फैसले के खिलाफ रीव्यू पेटीशन दाखिल करिए कि वह अपने इस फैसले को पलटे कि "मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं था और ना ही मंदिर तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनाई गयी"।
फिर यूनेस्को और तमाम अंतर्राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग की निगरानी में पूरी खुदाई करके यह तय किया जाय कि मस्जिद की ज़मीन के नीचे से क्या निकल रहा है और उसका क्या अर्थ है।
क्या मंदिर निर्माण कर रहा भगवा पक्ष ऐसा करेगा ?
माफ करिएगा , वह भी जानता है कि सब नंगे हो जाएँगे , उसे तो बस उच्चतम न्यायालय के आदेश को झुठलाना है कि "मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं था और ना ही मंदिर तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनाई गयी"। और वह यही कर रहा है जिससे उसके झूठ पर फैलाया ज़हर कम ना हो।
और नहीं तो चलिए उच्चतम न्यायालय के पास , दाखिल करिए रीव्यू पेटीशन और तब मुसलमान उसमें पक्ष नहीं होगा बल्कि तब एक पक्ष होगा बौद्ध धर्म के लोग , और फिर आएँगी अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सीज और अन्य देशों का दखल।
दिख रहे साक्ष्य साफ साफ गवाही दे रहे हैं कि अयोध्या अशोक सम्राट के समय बसाई गयी बौद्ध नगरी "साकेत" को उजाड़ कर बनाई गयी है। और उसी उजाड़ने के अवशेष पूरी अयोध्या के नीचे हैं।
चलिए करिए खुदाई , सिर्फ़ बाबरी मस्जिद की ज़मीन के नीचे ही क्युँ ? पूरी अयोध्या के नीचे की खुदाई कराईए।
मोदी सरकार द्वारा 2019 में ही पद्मश्री से सम्मानित कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दिलीप कुमार चक्रबर्ती ने तो अपनी पुस्तक "आर्कियोलाॅजिकल ज्योग्राफी आॅफ दि गंगा प्लेन " में स्पष्ट लिखा है कि अयोध्या के सरयू तट पर नागेश्वरनाथ मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित है, वह अशोक स्तंभ के शीर्ष पर मौजूद उल्टे कमल पर स्थापित है। अपनी पुस्तक में साफ लिखा है कि अयोध्या में नागेश्वरनाथ मंदिर का शिवलिंग अशोक स्तंभ के शीर्ष भाग पर स्थापित है। मतलब कि अयोध्या में सम्राट अशोक गए थे और बौद्ध स्थल होने के नाते स्तंभ खड़ा कराए थे, जिस पर आज शिवलिंग स्थापित है।
यह मोदी सरकार द्वारा पुरस्कृत एक प्रोफेसर कह रहा है। वामन मेश्राम , चंद्ररशेखर रावण और खुद मोदी सरकार के मंत्री रामदास अठावले बोल रहा है कि वहाँ मंदिर की जगह बौद्ध धर्म स्थल बने।
बाकी पुष्यमित्र शुंग पर ज़रा रिसर्च हो जाए तो सारा सच दुनिया के सामने आ जाएगा कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर के अवशेष के उपर नहीं बल्कि पूरी अयोध्या ही बौद्ध नगरी साकेत के अवशेष के ऊपर बनी है। और जो अवशेष निकल रहे हैं वह स्तूप के हैं , बौद्ध भवनों के हैं।
चलो उच्चतम न्यायालय , या फिर उच्चतम न्यायालय के आदेश को मानकर चुपचाप मंदिर बना लो , उस पुरूषोत्तम राम का जो निर्विवाद थे , इतने कि ज़रा से विवाद पर अपनी प्राण प्रिय गर्भवती पत्नी त्याग दिए।
बना लो उनके नाम का एक विवादित मंदिर