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- सहारा में किसके पैसे...
सहारा ग्रुप को पिछले लगभग 20 साल से फ़ॉलो कर रहा हूँ. फिर भी ग्रुप के कामकाज को कभी ठीक से समझ नहीं पाया. तमाम केस को फ़ॉलो करने के बाद इतना समझ में आया कि सहारा लोगों से पैसे उगाहने का काम करता है. RBI, SEBI ने कई साल लगकर उगाही तो बंद कर दी.इस पर स्थिति कभी स्पष्ट नहीं हुई कि उन पैसों का क्या हुआ? सरकार ने संसद को पिछले साल बताया था कि 13 करोड़ लोगों के एक लाख करोड़ रुपये सहारा में फँसे हुए हैं. अब सरकार ने एक अच्छा काम किया है. सहकारिता मंत्री अमित शाह ने इस हफ़्ते सहारा रिफंड पोर्टल लाँच किया. इस फंड से दस करोड़ लोगों को 5 हज़ार करोड़ रुपये लौटाए जाएँगे. आज हिसाब किताब में चर्चा सहारा ग्रुप के चढ़ने उतरने की.
सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय ख़ुद को मैनेजिंग वर्कर कहते हैं. उनके नाम के आगे सहारा श्री लगता है. सहारा के कर्मचारी एक दूसरे का अभिवादन सहारा प्रणाम से करते आए हैं. सबको यूनिफ़ॉर्म भी पहना पड़ता था. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से रॉय ने 1978 से कारोबार शुरू किया. सब्ज़ी वाले , रिक्शे वाले बैंक में खाता खोल नहीं पाते थे. सहारा के एजेंट हर रोज़ इनसे पैसे लेते थे. एक रुपया भी डिपॉजिट में लिया जाता था. देखते देखते 10- 15 साल में सहारा का काम देश भर में फैल गया. अख़बार निकले, टीवी चैनल खोला, एयरलाइंस, होटल हर जगह सहारा का कारोबार फैलने लगा. भारतीय क्रिकेट टीम सहारा की जर्सी पहनती थी. बॉलीवुड सहारा श्री के इशारे पर नाचता था.
सहारा RNBC यानी रेसिडुल नॉन बैंकिंग कंपनी के लाइसेंस पर काम करती थी. कोलकाता की पियरलेस भी इसी सेक्टर में काम करती थी. इन कंपनियों को NBFC यानी नॉन बैंकिंग कंपनी के मुक़ाबले ज़्यादा छूट मिली हुई थी. इस पर कोई लिमिट नहीं थी कि ये कितना डिपॉजिट जमा कर सकते हैं. सिर्फ़ इतनी शर्त थी कि हर 100 में से 80 रुपये सरकारी बॉन्ड में लगाने हैं ताकि डिपॉजिट सुरक्षित रहें . बाक़ी 20 रुपये कंपनी जहां चाहें वहाँ लगा सकती थी. सहारा ग्रुप पर आरोप लगता रहा कि डिपॉजिट के 20% का इस्तेमाल अनाप-शनाप धंधे में किया . रिज़र्व बैंक ने यही सोर्स बंद कर दिया. सहारा से कहा गया कि डिपॉजिट के पूरे 100 रुपये सरकारी बॉन्ड में लगाने होंगे. 2008 में आकर रिज़र्व बैंक ने सहारा पर नए डिपॉजिट लेने पर रोक लगा दी और 2015 तक सारा कारोबार बंद करने के लिए कह दिया.
सहारा ने पैसे उगाहने के दूसरे रास्ते खोजे और यहीं फँस गया. शेयर बाज़ार में पैसे उगाहने के लिए किसी भी कंपनी को SEBI से अनुमति लेनी होती है. सहारा ने उसे दरकिनार कर बाज़ार से 25 हज़ार करोड़ रुपये उगाह लिए. SEBI सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया. कोर्ट ने सहारा से कहा कि पैसे निवेशकों को वापस लौटाएँ. सहारा श्री को अवमानना के मामले में जेल भेज दिया. सहारा ने 15 हज़ार करोड़ रुपये सेबी के फंड में जमा करा दिए. SEBI लोगों से अपील करता रहा लेकिन पिछले सात आठ साल में 75 हज़ार लोगों ने 138 करोड़ रुपये निकाले. बाक़ी रक़म पड़ी हुई थी. सहकारिता मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट में गया और कहा कि इस फंड से पाँच हज़ार करोड़ रुपये दे दिए जाएँ तो हम सहकारी समिति में लोगों के पैसे लौटा देंगे. कोर्ट मान गया और अब ये पैसे लौटाने का काम शुरू हो गया है.
केंद्र सरकार ने पिछले साल संसद में बताया कि सहारा के 13 करोड़ ग्राहक हैं. इनके 1 लाख करोड़ रुपये फँसे हुए हैं, इनमें से 47 हज़ार करोड़ रुपये सहकारी समितियों में लगे हुए हैं. ये पैसे सहारा ने अलग राज्यों में सहकारी समिति खोल कर जमा किए थे . 19 हज़ार करोड़ रुपये सहारा रियल इस्टेट में फँसे हुए हैं. इस सबके बदले में सहारा ने अब तक 15 हज़ार करोड़ रुपये जमा किए हैं. सरकार के आँकड़े मानें तो 85 हज़ार करोड़ रुपये बकाया है. अभी सिर्फ़ पाँच हज़ार करोड़ रुपये चुकाए जाने हैं.
सहारा के मामले में सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह रही हैं कि डिपॉजिट लेने के लिए कभी कोई सामने नहीं आया .इसके चलते सवाल खड़े होते रहे हैं कि पैसे किसके है? वो लोग कौन है जो अपने पैसे माँगने नहीं आते हैं. सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बताया कि अब तक पाँच लाख लोग सहारा रिफंड पोर्टल में आए हैं. जरा सोचिए, कुल डिपॉजिटर्स की संख्या है 10 करोड़. देखते हैं कि बाक़ी लोग कब सामने आते हैं?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और इंडिया टुडे ग्रुप में मैनेजिंग एडिटर के पद पर कार्यरत है । साभार Hindi Newsletter Hisaab Kitab