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देश में चुनाव के लिये चंदा लेने के पैमाने क्यों अलग है ? किसी के लिये चंदा अमृत तो किसी के लिये विष क्यों है ?
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दीपक शर्मा वरिष्ठ पत्रकार
देश में चुनाव के लिये चंदा लेने के पैमाने क्यों अलग है ? किसी के लिये चंदा अमृत तो किसी के लिये विष क्यों है ?
सब जानते हैं कि कोई भी सेठ चंदा मुफ्त में नहीं देता है।काम के बदले ही ये शुक्राना दिया जाता है जिसे बांड या चंदा और बकौल ED घूस भी कहते हैं।
चंदे का पैमाना इसलिये अलग है क्योंकि एक पार्टी 5 हजार करोड़ डकार लेती और कोई पूछता नही है पर दूसरी पार्टी 45 करोड़ के आरोप में भी तहस नहस कर दी जाती है ।
मसलन बीजेपी ने ₹5272 करोड़ चंदा electoral bond के जरिये लिया। पर न देने वाले का पता है और न ये पता है कि इतनी मोटी रकम किस लिये बीजेपी को दी गई है।
ये bond खालिस घूस है या अनैतिक है इस पर सुप्रीम कोर्ट आजकल सुनवाई कर रहा है।
उधर आम आदमी पार्टी पर भी चंदा लेने का आरोप है। आप पर आरोप है कि उसने 100 करोड़ लिये जिसमें ₹45 करोड़ गोवा चुनाव में खर्च हुए। ये चंदा Electoral Bond से नहीं लिया गया। ED का आरोप है कि ये 100 करोड़ रूपये शराब लॉबी ने आप को हवाला से दिये।
चौंकाने वाली बात ये है कि पैसा देने वाले शराब ठेकेदारों को बेल दे दी गई। बदले में इन ठेकेदारों ने ED के गवाह बनकर नया आरोप लगाया कि हमसे चंदा मांगा गया था । सो हमने दिया ।
लेकिन 100 करोड़ की रकम किसको दी गई और रकम देने के सबूत कहां है ये अब तक पता नही है। इस 100 करोड़ रूपये में 1 रूपया भी अब तक बरामद नहीं हुआ है।
बहरहाल ED का आरोप है कि ये 100 करोड़ रूपये चुनावी चंदी नहीं है बल्कि पार्टी को दी गई रिश्वत हैं। इसलिये भ्रष्टाचार का मामला बनता है।
तो एक तरफ बीजेपी को दिये गये 5272 करोड़ रूपये, जिसके डोनर गोपनीय हैं, क्लीन मनी है । और दूसरी तरफ आप को दिये 100 करोड़ जिसके सबूत नहीं मिले, जिस पैसे की कोई ट्रेल नहीं है, वो रिश्वत का मामला है।
तो एक पार्टी हजारों करोड़ सेठों-ठेकेदारों से लेकर ईमानदारी से सीना चौड़ा कर रही है और दूसरी पार्टी के नेता एक एक कर जेल जा रहे हैं।
एक तरफ मोटा पैसा लेने के लिये bond की स्कीम बनाई जा रही है। सीक्रेट चंदे को लीगल किया जा रहा है । दूसरी तरफ चंदे के आरोप में, बिना बरामदगी के, सिर्फ सरकारी गवाह के बयान पर, एक पार्टी को महाभ्रष्ट बताकर उसे तहस नहस किया जा रहा है ।
अब अगर किसी ने भ्रष्टाचार किया है तो सबूत के आधार पर उसे जरूर सजा मिलनी चाहिये। अगर 100 करोड़ में 30-40करोड़ रूपये भी रिकवर होते हैं या उसके ठोस सबूत मिलते हैं तो आप के नेताओं पर मुकदमा चलना चाहिये।
बहरहाल अब चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को ये तय करना होगा कि गांधी के इस लोकतंत्र में क्या आज चुनाव लड़ने का पैमाना सब पार्टियों के लिये एक है या इस नये दौर में सारा सिस्टम एक पार्टी के लिये है और बाकी के लिये हर रास्ते में कांटे बिछा दिया गये हैं ?