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- घर में घुस कर मारने...
घर में घुस कर मारने वाले बयान पर इतना बेचैनी क्यों? अरे भाई, वो तो बाथरूम में घुस कर कब का देख आए!
हम लोग असहिष्णु तो हैं ही, भुलक्कड़ भी हैं। घर में घुस कर मारने वाले बयान पर इतना बेचैन क्यों होना? अरे भाई, वो तो बाथरूम में घुस कर कब का देख आए थे कि मनमोहन सिंह क्या पहन कर शावर में नहाते हैं। जो व्यक्ति किसी के घर के बाथरूम में घुस कर झांक आवे, वो घर में घुस कर मारने की बात कह दे तो कौन सी अतिशयोक्ति? ऐसा आदमी तो आपकी रसोई में घुस कर, चूल्हा जलाकर, पकौड़ा छान कर, चाय बना कर, खा पी कर, सब हजम कर चुपचाप झोले में सब भर के फकीरों की तरह सरक लेगा और आपको खबर तक नहीं लगेगी। इसे घुड़की मत समझिए। प्रामाणिक बात है।
वैसे, ये इतने काबिल हैं कि घर में घुसने की भी इन्हें ज़रूरत नहीं है। याद करिए नोटबंदी- बिना घर में घुसे इन्होंने सारा पोगलिया धन खखोर लिया था। तकिए के नीचे, भगवान के पीछे, कोई टांड पर गुल्लक में, चिंदी चिंदी बचा कर रखा था बरसों से औरतों ने अपने गाढ़े वक़्त के लिए। एक झटके में सब साफ़, वो भी बिना सेंध लगाए! बिना घुसे!
अपने यहां सेंधमारी कला हुआ करती थी। हाथ की सफाई कौशल था। ये संपेरों का देश था। यहां जादू टोना करने वाले का समाज में एक रसूख था। समय के साथ हम लोग ओझा गोनिया जादूगर का सामाजिक महत्व भूलते गए, जो लोगों के दुखों को हरने के बजाय उसे हर लेने का माहौल बना कर ही दिल को हल्का कर देते थे। ऐसे ऐसे कलाकार कि सोना चांदी का आभूषण साफ करने के नाम पर उसका पानी उतार लेते थे और हवा तक नहीं लगती थी। वो तो पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान ने सबका दिमाग खराब कर दिया वरना ये धरती वीरों से खाली नहीं होती।
इतने लंबे समय बाद एक नजूमी आया है जिसका खुद का कोई घर वर नहीं है। वो दूसरे के घर में घुसने को बेताब है। खुद इसकी घोषणा कर रहा है। एक हम हैं कि उसकी भाषा की निंदा किए जा रहे हैं। भाषा क्या चीज है? नीयत देखिए साहेब की। उनका स्वागत करिए। दिल से बोलिए- जाओ, घुस के मार के आओ। शुभास्ते पंथान:। हमारा क्या है, वो घुस के मार के आएं या मरा के, हमें तो जय जय करना ही बदा है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है