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- बीजेपी को सत्ता से...
आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर क्या बीजेपी को चुनौती देने जा रही है? यह सवाल आम आदमी पार्टी के लिए सुखद है क्योंकि ऐसे सवालों से उसका महत्व राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता है। वहीं, कांग्रेस के लिए यही सवाल चिंता का विषय है क्योंकि अगर आम आदमी पार्टी बीजेपी का विकल्प बनती दिखेगी तो उसकी स्थिति क्या बद से बदतर होने वाली है? बीजेपी के लिए बहुत सहूलियत हो जाती है जब जनता भ्रम में रहे कि आम आदमी पार्टी या कांग्रेस में से वास्तव में कौन उसे चुनौती देने वाली है। लिहाजा उपरोक्त सवाल को परखना बहुत जरूरी हो जाता है।
दिल्ली और पंजाब से अलग गोवा जीवंत उदाहरण है। गोवा में बीजेपी की सरकार थी। आम आदमी पार्टी लंबे समय से सक्रिय भी थी और ऐसा दावा भी था कि 'कमजोर कांग्रेस' के मुकाबले वही विकल्प है। टीएमसी से तालमेल के बाद तो यह दावा डंके की चोट पर किया जा रहा था। कथित सर्वे भी इसकी तस्दीक बारंबार कर रहे थे। मगर, चुनाव नतीजों ने बताया कि बीजेपी को कांग्रेस ही टक्कर देती दिखी।
यह कहा जा सकता है कि गोवा में आम आदमी पार्टी के कुनबे ने बीजेपी को सत्ता में बनाए रखने में मदद की। मगर, कहा यह भी जा सकता है कि आम आदमी पार्टी की सियासत ने 'कमजोर कांग्रेस' को मजबूत कर दिखाया। उत्तराखण्ड से भी समान किस्म का संदेश निकलता नजर आता है।
'कमजोर' कांग्रेस को मजबूती देगी आप?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि दिल्ली की सियासत में आम आदमी पार्टी को बेचैन करने में जुटी बीजेपी को करारा जवाब दे रही है टीम केजरीवाल। आरोप का जवाब आरोप से। डिप्टी सीएम पर हमले का जवाब लेफ्टिनेंट गवर्नर पर हमले से। घोटाले के आरोप का जवाब घोटाले से। हां, सीबीआई और ईडी का जवाब वह इसी तरीके से नहीं दे सकती- यह वास्तविकता है और विवशता भी, जिसके लिए आम आदमी पार्टी दोषी नहीं है।
"विधायकों को खरीदने के लिए 600 से ज्यादा करोड़ रुपये बीजेपी ने कहां से जुटाए?" "दही, घी, दूध पर जीएसटी लगाकर सरकार गिराने के लिए जरूरी रकम जुटाती है सरकार।"- इस किस्म के नैरेटिव से लगातार बीजेपी पर हमला करने में सफल हो रही है बीजेपी। मगर, क्या इसका राजनीतिक फायदा अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ले सकेगी? या फिर 'कमजोर कांग्रेस' को राष्ट्रीय सियासत में मजबूत बनाने का यह काम करने वाली है?
आंदोलन टीम केजरीवाल ने किया, फायदा बीजेपी को मिला
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन टीम केजरीवाल ने ही चलाया था। देश में 432 सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ी थी। वाराणसी में नरेंद्र मोदी को चुनौती देने का काम कांग्रेस ने नहीं, स्वयं अरविन्द केजरीवाल ने किया था। इसके बावजूद परिणाम क्या रहा? आम आदमी पार्टी 432 सीटों में से 414 पर जमानत तक नहीं बचा सकी। वाराणसी, चंडीगढ़ और चंद्रपुर (महाराष्ट्र) की लोकसभा सीटों के अलावा पंजाब की 8 और दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर यानी कुल 18 सीटों पर ही पार्टी की जमानत बची थी। इनमें से पंजाब में पार्टी ने चार लोकसभा सीटें जीती थीं। कहने का अर्थ यह है कि मेहनत आम आदमी पार्टी ने की, कांग्रेस सत्ता से बाहर भी हुई। मगर, फायदा बीजेपी को मिल गया।
2014 के बाद 2022 में आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। न तब राष्ट्रीय पार्टी थी आप, न अब है। फर्क सिर्फ और सिर्फ पंजाब का है जहां कांग्रेस से सत्ता छीन कर आम आदमी पार्टी ने सरकार बनायी है। वहां भी उपचुनाव में यह पार्टी मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की लोकसभा सीट नहीं बचा पाती है। लोकसभा चुनाव को अगर राष्ट्रीय महत्व का मानें तो यह आप के लिए चिंताजनक बात है। महाराष्ट्र और गोवा या फिर कर्नाटक जैसे राज्यों में 2014 में भी आप संभावनाएं देख रही थी लेकिन वहां भी बीते 8 साल में अपनी स्थिति पार्टी मजबूत नहीं कर पायी है।
2014 में आप ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया, 2022 में कांग्रेस को होगा फायदा?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो आम आदमी पार्टी 2014 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में कामयाब रही लेकिन सत्ता में बीजेपी को बिठा गयी, वही आम आदमी पार्टी क्या एक बार फिर केंद्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में कांग्रेस की मदद करती नहीं दिखेगी?
मजबूत तर्क यह है कि आम आदमी पार्टी ने देश के किसी भी हिस्से में बीजेपी से लड़कर सत्ता हासिल नहीं की है। जहां कहीं भी बीजेपी से मुकाबला हुआ है, आम आदमी पार्टी लड़ती नज़र नहीं आयी है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी आप बीजेपी से टक्कर ले सकेगी- ऐसा दावे से बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। संभव है कि इन दोनों प्रदेशों में वह 'कमजोर कांग्रेस' को मजबूत बना दे।
बीजेपी से लड़कर आम आदमी पार्टी कभी नहीं जीतती, वह हमेशा कांग्रेस से लड़कर आगे बढ़ती है- इस तर्क की काट में 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे का जिक्र किया जा सकता है। इस चुनाव में कांग्रेस शून्य हो गयी और बीजेपी को 8 सीटें मिलीं थीं। आम आदमी पार्टी ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वोट प्रतिशत के हिसाब से भी बीजेपी को 38.5 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन, बीजेपी को इससे पहले 2015 के विधानसभा चुनाव में भी 32.3 प्रतिशत वोट मिले थे और सीटें 3 थीं। लेकिन, ये चुनाव नतीजे यह बताते हैं कि बीजेपी का प्रदर्शन लगभग जस का तस है। मामूली रूप से उसे फायदा हुआ है।
जहां 2013 और 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को स्पष्ट रूप से शिकस्त दी थी, वहीं 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अपनी स्थिति को बचाए रखा। यह अवश्य कहा जा सकता है कि बीजेपी ने भी इतना दम नहीं दिखलाया है कि वह आम आदमी पार्टी से उसकी सरकार छीन कर दिखा सके। हालांकि लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी 7 सीटों पर कब्जा करते हुए बीजेपी ने यह जरूर दिखलाया है कि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में आम आदमी पार्टी उसके सामने कहीं नहीं टिकती।
गुजरात-हिमाचल पर है सबकी नज़र
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के नतीजे इस धारणा को बदलते हैं या नहीं कि आम आदमी पार्टी देश के किसी भी प्रदेश में बीजेपी को टक्कर नहीं देती है-यह देखने वाली बात होगी। स्थानीय निकाय में अपनी उपस्थिति दिखला देना बिल्कुल अलग बात है और विधानसभा या लोकसभा चुनाव में प्रदेश या राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प के तौर पर खुद को खड़ा करना बिल्कुल ही अलग बात होती है।
पंजाब में कांग्रेस का विकल्प कौन?- का जवाब लेकर आम आदमी पार्टी उपस्थिति हुई। मगर, गुजरात और हिमाचल में इसी सवाल का जवाब क्या आम आदमी पार्टी बन सकेगी?- यह बड़ा सवाल है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, झारखण्ड जैसे प्रदेशों में आम आदमी पार्टी ने कभी बीजेपी को चुनौती देने के बारे में सोचा तक नहीं। उत्तर प्रदेश में 2022 में दम दिखाने को निकली आप, लेकिन दुम दबाकर चुनाव मैदान में छिपकर बैठ गयी।
आप से लड़ते दिखना भी है बीजेपी की रणनीति!
फिर भी अगर मीडिया में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी को विकल्प बताया जा रहा है तो यह सोची समझी रणनीति अधिक लगती है। दिल्ली में बीजेपी और आम आदमी पार्टी जिस तरीके से आए दिन लड़ती दिख रही है वह भी उसी रणनीति के आधार पर तैयार की गयी स्क्रिप्ट ज्यादा लगती है। बीजेपी अपने विरोध में एक छद्म ध्रुव खड़ा करने की कोशिश में है और आम आदमी पार्टी से रोजाना वाली लड़ाई उसी रणनीति का हिस्सा है। ऐसा करके कांग्रेस के गिर्द जो वास्तविक चुनौती पैदा हो सकती है उस बारे में मतदाताओँ में भ्रम पैदा करने की रणनीति स्पष्ट नज़र आती है।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे आम आदमी पार्टी के लिए अगर उत्तराखण्ड से अलग होते हैं और वह वास्तव में विकल्प के रूप में खड़ी नज़र आती है तो राष्ट्रीय राजनीति में भी इसका असर पड़ना तय है। चूकि वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी बीजेपी को चुनौती दे, इसलिए नतीजे भी पूर्ववत रहने वाले हैं। यानी बीजेपी को आम आदमी पार्टी से टक्कर नहीं मिलेगी और बीजेपी का विकल्प देने की जिम्मेदारी कांग्रेस की ही रहने वाली है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं.
Prem Kumar
प्रेम कुमार देश के जाने-माने टीवी पैनलिस्ट हैं। 4 हजार से ज्यादा टीवी डिबेट का हिस्सा रहे हैं। हजारों आर्टिकिल्स विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म पर प्रकाशित हो चुके हैं। 26 साल के पत्रकारीय जीवन में प्रेम कुमार ने देश के नामचीन चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। वे पत्रकारिता के शिक्षक भी रहे हैं।