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- धर्म से क्यों पहचाने...
लखीमपुरखीरी में दलित बहनों के साथ बलात्कार और उनकी हत्या के मामले में गुस्सा उबाल ले रहा है। यह गुस्सा स्वागत योग्य होता अगर उसे 'बलात्कार पर गुस्सा' के रूप में दर्ज कराया जाता। दलित बहनों के साथ लगातार घट रही बलात्कार की घटनाओं को रोकने की गरज भी इस गुस्से में नहीं दिखती। यहां दिख रही है मुसलमानों के प्रति नफरत। इस गुस्से में मुसलमानों को अपराधी ठहराने का भाव है। ऐसा क्यों हो रहा है? क्या यह होना चाहिए?
पुलिस ने जिस तरीके से लखीमपुर खीरी में आरोपियों को पकड़ने की 'बहादुरी' दिखाते हुए एक को मौत की नींद सुला दिया, ऐसी 'बहादुरी' बलात्कार के ही किसी दूसरे मामलों में कभी नज़र आयी? नहीं। नज़र आयी तो रिहाई। बिलकिस बानो के बलात्कारियों को गुजरात सरकार ने बख्श दिया। सज़ा माफ़ कर दी। रिहाई के बाद लोगों ने स्वागत में फूल-मालाएं पहनायीं। बलात्कारियों को चंदन-टीका लगाने के बाद मिठाईयां खिलाई गयीं मानो बलात्कार करना गर्व की बात हो।
लखीमपुर खीरी रेप केस इस मायने में अलग है कि इस घटना पर पुलिस का एक्शन सत्ताधारी बीजेपी को 'मुद्दा' देता है। इसे कह सकते हैं कि 'मुद्दा' उपलब्ध कराना ही पुलिस की 'तत्परता' की वजह है। वरना आए दिन दलितों से बलात्कार की घटनाओं पर पुलिस कभी फायरिंग करती नहीं दिखती। उल्टे हाथरस केस को याद करें तो बलात्कार मानने तक से इनकार कर दिया जाता है, दलित बच्ची की लाश जबरन जला दी जाती है और पीड़ित परिवार से ही पूछताछ की जाने लगती है। बलात्कार के आरोपी परिवार का भरपूर बचाव होता है।
धर्म से क्यों पहचाने जाएं बलात्कारी?
'दलित से बलात्कार' बोलने पर आपत्ति उठायी जा रही है। सलाह दी जा रही है कि इस घटना को 'हिन्दू महिला से बलात्कार' बोलें। कहा जा रहा है कि मन बनाकर मुसलमान हिन्दू महिलाओं के खिलाफ ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। बेसिर पैर की बातों का शोर हिन्दू-मुस्लिम के रूप में इसलिए है क्योंकि राजनीति को इसी खुराक की जरूरत है।
बलात्कार की तीन अलग-अलग घटनाओं के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि लखीमपुर खीरी में दो दलित बहनों के साथ बलात्कार की घटना पर इतना शोर क्यों मच रहा है-
घटना नंबर एक : जुलाई 2022 में अयोध्या में झाड़फूंक के बहाने महंतों ने 20 साल की दलित युवती से बलात्कार को अंजाम दिया। क्या किसी का ख़ून खौला? किसी ने यह सवाल उठाया कि मंदिर में ऐसी घटना क्यों घटी? दलित बच्चियों को महंत क्या समझते हैं? क्यों नहीं इस घटना को 'दलित समाज के साथ बदला' के तौर पर लिया गया? क्या दलितों से बदला लेने के लिए मंदिर जैसे पवित्र स्थान का दुरुपयोग खुद महंत कर रहे हैं?
घटना नंबर दो : मथुरा में तीन मौलवी अपनी छात्रा के साथ एक साल तक बलात्कार करते रहे। इसका खुलासा होने के बाद भी इस घटना पर वैसा गुस्सा नज़र नहीं आया जैसा लखीमपुर खीरी मामले में नज़र आ रहा है। क्यों?- क्योंकि बलात्कारी मुसलमान तो थे लेकिन पीड़िता हिन्दू ना थी!
घटना नंबर तीन : 11 सितंबर 2022 को मेरठ में एक डॉक्टर ने 12 साल की दलित मरीज के साथ जबरन हवस पूरी की। डॉक्टर-मरीज का संबंध देवता-उपासक का होता है। मगर, यहां भी समाज के लोगों का खून नहीं खौला। क्यों?- क्योंकि इस मामले में भी हिन्दू-मुस्लिम का एंगल नहीं था। इस मामले में भी राजनीति को खुराक नहीं मिल रही थी।
ये तीनों घटनाएं क्यों नहीं देश में उबाल ला सकीं?
क्यों नहीं समाज को झकझोर सकीं? क्यों नहीं महिलाओँ में पुरुषों के खिलाफ गुस्सा भड़का? बलात्कार महिलाओँ के खिलाफ पुरुषों की दबंगई होती है, आपराधिक होती है जो पुलिस समेत पूरे सामाजिक व्यवस्था को चुनौती दे रही होती है। इस रूप में समाज इन घटनाओं को देख क्यों नहीं पा रहा है? अगर नहीं देख पा रहा है तो दलित बच्चियों-महिलाओं के साथ बलात्कार की इन घटनाओं में वे 'सच्चे हिन्दू' क्यों नहीं उबल पा रहे हैं जो लखीमपुर खीरी की घटना में उबलते दिख रहे हैं? क्या इसलिए कि इन मामलों में हिन्दू-मुस्लिम का एंगल नहीं है?
क्या 'हिन्दू महिला' से बलात्कार है लखीमपुर की घटना?
लखीमपुर खीरी में बलात्कार की घटना को 'दलित महिला से बलात्कार' के बजाए 'हिन्दू महिला से बलात्कार' क्यों कहा जाए? क्या इसलिए कि बलात्कारी मुस्लिम हैं? दलित होने के कारण महिलाओं की बेबसी का फायदा उठाने की छूट क्या दबंग सवर्ण वर्ग को दे दी गयी है और क्या इसलिए इसकी चर्चा तक नहीं की जा रही है?
बलात्कार में धर्म का एंगल देख रहे लोग वास्तव में दलित, आदिवासी और दबे-कुचले महिलाओं से हो रही ज्यादतियों की पर्देदारी में लगे हैं। पीड़ितों में इस वर्ग की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। यह चिंता का विषय क्यों नहीं होना चाहिए? थोड़ी देर के लिए अगर जाति के कारण बलात्कार की शिकार होने के दावों पर हम विराम भी लगा दें तो क्या महिलाओं के साथ पुरुषों की ज्यादती के रूप में भी इन घटनाओं को हम देख पा रहे हैं?
21 साल में आबादी बढ़ी 40 फीसदी, रेप बढ़े सौ फीसदी से ज्यादा
1999 में हिन्दुस्तान की आबादी 1 अरब पार हुई थी। जनसंख्या 1 अरब 04 करोड़ 55 लाख 54 पहुंच गयी थी। तब बलात्कार की घटनाएं 15,468 दर्ज की गयी थीं। 2021 में अनुमानित जनसंख्या हो चुकी है 1 अरब 40 करोड़ 75 लाख 63 हजार 842 (मैक्रोट्रेंड्स.नेट.इन के आंकड़े) और बलात्कार की घटनाओं का आंकड़ा 31,677 पहुंच चुका है। (एनसीआरबी के आंकड़े)
बीते 22 सालों में आबादी 40 फीसदी बढ़ी और बलात्कार बढ़े 104 फीसदी से ज्यादा। बोलचाल की भाषा में जनसंख्या तो डेढ़ गुनी भी नहीं हुई लेकिन बलात्कार के मामले दुगुने से ज्यादा हो गये। ये आंकडे रिपोर्ट किए गये मामलों के आधार पर हैं।
महिलाओँ पर पुरुषों का सितम! खोज रहे हैं हम धर्म!
क्या ये आंकड़े चिंताजनक नहीं हैं? इन आंकड़ों में क्या हम एक धर्म से दूसरे धर्म से बदला ढूंढ़ सकते हैं। ज्यादातर मामलों में पुरुष बनकर महिला से बलात्कार हो रहे हैं। अगर चंद घटनाओँ में मुसलमान हिन्दू महिलाओँ से बदला ले रहे हैं तो ज्यादातर घटनाओं में हिन्दू पुरुष किनसे बदला ले रहे हैं? क्या हम बलात्कारियों को भी धर्म के आधार पर बख्श देंगे?
गुजरात दंगे के दौरान बिलकिस बानों के सामने उनकी बेटी व परिजनों की हत्या, सामूहिक बलात्कार के बाद लंबे ट्रायल के बाद अदालत से बलात्कारियों को सज़ा मिलती है। फिर उन बलात्कारियों को न सिर्फ माफ कर दिया जाता है बल्कि उनकी आरती उतारी जाती है, उन्हें चंदन लगाया जाता है, फूल-मालाएं पहनायी जाती हैं और उनका अभिनन्दन किया जाता है। जिन लोगों ने इन बलात्कारियों को हिन्दू माना और बिलकिस बानो को बलात्कार की शिकार महिला मानने के बजाए मुसलमान माना- क्या वे लोग ये नहीं कह रहे हैं कि बलात्कारी होना हिन्दुओं का अधिकार है? ऐसी सोच ही देश को रसातल में ले जा रही है।
Prem Kumar
प्रेम कुमार देश के जाने-माने टीवी पैनलिस्ट हैं। 4 हजार से ज्यादा टीवी डिबेट का हिस्सा रहे हैं। हजारों आर्टिकिल्स विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म पर प्रकाशित हो चुके हैं। 26 साल के पत्रकारीय जीवन में प्रेम कुमार ने देश के नामचीन चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। वे पत्रकारिता के शिक्षक भी रहे हैं।