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- भारत में नमाज़ क्यों...
प्रसिद्ध शायर डाक्टर इकबाल ने लिखा था -
सतवते तौहीद कायम जिन नमाज़ों से हुई
वो नमाज़े हिंद में नज़रे बिरहमन हो गई
इस्लाम धर्म में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और किसी भी दशा में ना छुटने वाली इबादत नमाज़ है। इसलामी धारणा के अनुसार किसी भी मुसलमान के लिए यह कल्पना नहीं की जा सकती कि वह नमाज़ ना पढ़े। इस्लाम की मूलभूत किताब कुरान में सबसे ज्यादा अगर किसी इबादत का आदेश है तो वह भी नमाज़ है। पैगंबरे इस्लाम मुहम्मद सल्ल. ने नमाज़ को अपनी आंखों की ठंडक बताया है। इन सब बातों से जाहिर होता है कि नमाज़ जो कि फारसी का शब्द है और उर्दू में भी नमाज़ शब्द ही प्रचलित है कितनी अहमियत रखती है। अरबी में सलात शब्द का इस्तेमाल किया गया है, कुरान में सलात शब्द ही नमाज़ के लिए मिलता है।
इसलामी आदेश के अनुसार नमाज़ दिन में पांच बार उनके सही समय पर पढ़ना अनिवार्य होता है। नमाज़ के लिए उसके समय की अनिवार्यता के चलते ही कहीं भी नमाज़ पढ़ ली जाती है। नमाज़ के लिए सूखी साफ जगह मिल जाना काफी है। इसलिए अक्सर स्टेशनों पर, सड़क के किनारे, पार्क आफिस आदि में कहीं भी लोग नमाज पढ़ते मिल जाते हैं। अब हम देखते हैं कि नमाज़ इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और कुरान में नमाज़ की तारीफ में क्या कहा गया है। कुरान मजीद में एक जगह ईश्वर ने कहा कि "बेशक नमाज़ इंसान को बेहयाई और बुराई से रोकती है"। ये है वो असली मकसद जो नमाज़ के महत्व को दर्शाता है। अब हम अगर कुरान के बताए इस मकसद पर और हमारे भारतीय मुसलमान समाज पर गौर करें तो समझा जा सकता है कि आखिर नमाज़ के खिलाफ क्यों आवाजें उठ रही हैं और इसका जवाब खुद मुसलमान ही दे सकता और सोच सकता है।
हमारे मुस्लिम समाज में नमाज़ की अहमियत और उसकी अनिवार्यता को लेकर कोई लापरवाही नहीं पाई जाती। एक आम मुसलमान नमाज़ को इज्जत भी देता है और शायद खुद कोई पढ़े या ना पढ़े लेकिन नमाज़ पढ़ने वालों को इज्जत जरूर देता है। नमाज़ को पढ़ने पर बड़ा शौर भी रहता है और शायद ही मुसलमानो की कोई महफ़िल, मुहल्ला, गली, कालोनी, गांव हो जहां नमाज़ी मौजूद ना हों। बचपन से मुसलमान समाज में बच्चे को नमाज़ पढ़ना सिखा दिया जाता है और एक नमाज़ी से उम्मीद रखी जाती है कि वह सदाचारी होगा।
कुरान में नमाज़ के बारे में बताई गई यह बात कि नमाज़ बेहयाई और बुराई से दूर रखती है नमाज़ के महत्व का असली आधार है लेकिन बस यही बात मुसलमानो मे नमाज़ के बारे बताई और सुनी नहीं जाती। मुसलमानो मे इतनी चर्चा तो है कि नमाज़ बहुत जरूरी है लेकिन यही चर्चा नहीं है कि नमाज़ बेहयाई और बुराई से रोकने का माध्यम भी है जैसा कुरान ने बताया है। कुछ समय पहले तक नमाज़ पढ़ने वालों को दूसरे धर्मावलंबी भी सम्मान की नज़र से देखते थे, क्या मस्जिदों के दरवाजे पर गैर मुस्लिम बच्चों पर फूंक लगवाने नहीं आते हैं लेकिन अब नमाज़ी को खुद मुसलमान सदाचारी होने की गारंटी नहीं मानते। बस यही कारण है कि आज नमाज़ को जुर्म साबित किया जा रहा है। मैं इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि नफ़रत भी इसमें शामिल हो सकती है लेकिन बड़ा कारण यह है कि नमाज़ी समाज पर वह प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं जो कुरान में नमाज़ का प्रभाव बताया गया है।
क्या खुद मुसलमान इस बात की गवाही दे सकते हैं कि मुस्लिम मुहल्ले, कालोनियां, समाज जिसमें अच्छी खासी तादाद में नमाज़ी भी पाए जाते हैं लेकिन वह मुहल्ले कालोनियां और समाज बुराइयों से पाक साफ हैं। यदि नमाज़ी अपना प्रभाव और अपने जीवन में सदाचार पैदा नहीं कर पा रहे तो फिर इस प्रैक्टिस को आप कुरान के अनुसार बताई गई नमाज़ नहीं कह सकते। नमाज़ पढ़ने पर हो रहे मुकदमे और जेल को सिर्फ नफरत और मुस्लिम दुश्मनी नहीं बताया जा सकता क्योंकि इसी देश में गैर मुस्लिम लोग नमाज़ी को अपनी पंचायतों में फैसला करने वाला, सच्चा और अच्छा आदमी समझते थे। तो ऐसा क्या हुआ कि एकदम नमाज़ से इतनी नफ़रत पैदा हो गई। मुसलमानो को स्वयं विश्लेषण करना चाहिए। मुसलमान नमाज़ के लिए बताए गए कुरान के कुछ आदेशों को खूब मानते हैं लेकिन असली मकसद को बिल्कुल भूल जाते हैं तो क्या मुसलमानो की जिम्मेदारी नहीं है कि नमाज़ को उसके असली कुरान द्वारा बताए गए मकसद के लिए पढ़ा जाए। बेहयाई और बुराई मुक्त समाज का निर्माण किया जाए।
एक आदर्श नमाज़ी समाज की स्थापना की जाए और दूसरे धर्मावलंबियों को यह साबित कर दिखा दिया जाए कि नमाज़ समाज के लिए कल्याणकारी इबादत है। भारतीय मुसलमानो की जिम्मेदारियां पूरी दुनिया के मुसलमानो से बिल्कुल अलग हैं, इनके साथ करोड़ों लोग दूसरे धर्मावलंबी भी रहते हैं जिनके सामने इस्लाम का प्रतिनिधि इन्हें ही बनना है और इस्लाम को दूसरों के सामने पहुंचाने का बड़ा काम इन्हें ही करना है। तमाम नफरतें एकतरफ लेकिन मुसलमानों को अपनी इस्लामी जिम्मेदारी को निभाना होगा। ये दिखावे का मज़हबी चलन छोड़कर असल दीन के अनुसार जीवन गुजारना होगा नहीं तो जिंदगी ऐसे ही तंग होती जाएगी। अल्लामा इक़बाल का लिखा उपरोक्त शेर इसी बात की ओर इशारा करता है कि भारत में नमाज़ बतौर प्रतीकात्मक रह गई है और वह मकसद आंखों से ओझल है जो कुरान ने बताया है।