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- Dhruv Rathi के वीडियो...
Dhruv Rathi के वीडियो पर आखिर क्यों लगा ये आरोप, प्रोपेगेंडा फिल्म नहीं, यूट्यूबर फैला रहा है?
Neeraj Badhwar
The Kerala Story को प्रोपेगेंडा फिल्म बताने वाले यूट्यूबर का अभी एक वीडियो देखा। बहुत सारे लोग ये कहकर वीडियो शेयर कर रहे हैं कि इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है। मगर मुझे ऐसा नहीं लगता। सच तो ये है कि ये वीडियो बड़ी चालाकी से एक बड़ी समस्या को प्रोपेगेंडा बताने की साज़िश कर रहा है। यूं तो किसी और की बात पर अपने तर्क देना वक्त और प्रतिभा की बर्बादी है मगर कभी-कभी बौद्धिक आतंकवाद से निपटने के लिए इस तरह के प्रयास करने भी पड़ते हैं इसलिए थोड़ी ऊर्जा खपानी पड़ रही है।
-अपने वीडियो में यूट्यूबर का सारा ज़ोर इस बात पर है कि फिल्म के ट्रेलर में इसे 32000 लड़कियों की कहानी बताया गया मगर ये तो 3 ही लड़कियों की कहानी है। मेरा मानना है कि ये फिल्म 3 या 6 लड़कियों की कहानी नहीं, बल्कि राज्य में हजारों की तादाद में हो रहे कन्वर्ज़न की कहानी भी है और हज़ारों की तादाद में हो रहे उन कंवर्जन की वजह से ही इन 3 या इन जैसी बाकी लड़कियों की कहानी भी महत्वपूर्ण हो जाती है जो लव जिहाद के नाम पर आईएस में शामिल होने देश से बाहर भेज दी गईं।
इससे पहले कि मैं कन्वर्ज़न के असल मुद्दे पर आऊं हम 3 या 32 की इस बहस को भी देख लेते हैं। मैं पूछता हूं कि जब बीफ मामले में अखलाक की दुखद मौत को पूरे देश में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार बताया गया। जब कठुआ में मुस्लिम बच्ची से हुए रेप के बाद पूरे हिंदू धर्म को रेपिस्ट बताया गया। उससे जुड़े हज़ारों कार्टून शेयर किए गए, क्या तब ये सवाल पूछा गया कि कि भाई एक-आध मामले के आधार पर आप पूरी हिंदू कम्युनिटी को कैसे टारगेट कर सकते हैं। इसके अलावा जब-तब Intolerance के सच्चे झूठे मामले सामने आए आपने उन मामलों को आगे रखकर इस देश में एक पूरी की पूरी कौम को ही पीड़ित बताने की कोशिश की। तब किसी ने सवाल नहीं किया कि भाई इतने बड़े देश में जहां एक कौम की करोड़ों की आबादी है। वहां आप 2-4, 5-10 मामलों को आगे रखकर एक Narrative कैसे सेट कर सकते हैं। और अगर उन सब मामलों पर नैरेटिव सेट किया जा सकता है तो फिर 4-5 लड़कियों की इस खौफनाक कहानी के ज़रिए मज़हबी कट्टरपंथियों द्वारा चलाए जा रहे किसी रैकेट का भंडाफोड़ क्यों नहीं हो सकता? क्या ऐसा करने पर यूएन ने रोक लगा रखी है?
यूट्यूबर खुद वीडियो में हज़ारों की तादाद में हो रहे कन्वर्ज़न की बात करता है मगर ये भी कहता है कि ये Forced कन्वर्जन थोड़ा ही है। भाई मसला Forced या Unforced Conversion का है ही नहीं, मसला कन्वर्ज़न का है। एक कौम जहां खुद अपना मज़हब छोड़ देने पर मौत की सज़ा है। जब वो खुद धर्म छोड़ देने को इतना बड़ा अपराध मानती है तो वो किस हक से, किस नेक मकसद के चलते दूसरों से उनका धर्म छुड़वा रही है। दूसरों से उनका धर्म छुड़वाकर उन्हें जैसे-तैसे अपने धर्म में शामिल करना ये बताता है कि आप धार्मिक श्रेष्ठता बोध से ग्रसित हैं। और आज सारी लड़ाई इसी धार्मिक श्रेष्ठता बोध की है। और कोई भी कौम अगर इसी तरह की Religious Superiority की शिकार है तो उसकी तो वैसे भी किसी Secular Values में कोई आस्था नहीं हो सकती। तो फिर ये गंगा-जमना संस्कृति और भाईयों की तरह साथ रहने के नारे कहां से आ गए। इनके क्या मायने रह गए।
आप कहते हैं कि जी, इस तरह के कंवर्ज़न तो प्यार के नाम पर हो रहे हैं। मगर ये कौनसा प्यार है भाई, जहा कौम से सिर्फ लड़के ही दूसरे धर्म की लड़कियों से प्यार करने निकल रहे हैं। प्यार एक सहज चीज़ है। लड़के-लड़कियों दोनों को हो सकता है। मगर एक तरफ से सिर्फ लड़के ही ऐसा प्यार करने निकले हैं और प्यार के बाद शादी के नाम पर कन्वर्ज़न भी कर रहे हैं तो बाबू मोशाय ये प्यार नहीं मज़हबी मिशन है।
अगर प्यार सहज है तो फिर ये सहजता एक कौम की लड़कियों को उपलब्ध क्यों नहीं। और अगर शादी के लिए लड़की का मज़हब बदलना इतना ही ज़रूरी है तो फिर ऐसा कैसे है कि आपकी तरफ की लड़की को प्यार हो जाए तो भी शादी के लिए लड़का ही अपना धर्म बदले! मध्यप्रदेश में रिवर्स लव जिहाद के ऐसे कितने मामले आए जहां एक मज़हब की लड़की से शादी करने के लिए लड़कों के धर्म बदलवाए गए और बाद में खुलासा हुआ कि ये सब लव जिहाद के अंतर्गत ही था।
यूट्यबूर वीडियो में कहता है कि Forced Conversion कोई कैसे कर सकता है। वो लड़कियां क्या इतनी बेवकूफ हैं। उनमें खुद की अक्ल नहीं है क्या। बहुत बढ़िया किया आपने ये खुद की अक्ल वाली बात बोलकर। वही सवाल आपसे पूछा जा सकता है कि ये हर दिन जो लाखों की तादाद में जनता फिल्म देखने जा रही है क्या इसमें अक्ल नहीं है? क्या ये भी प्रोपेगेंडा की शिकार है? क्या इसे कोई भी बेवकूफ बना सकता है? मैं हमेशा कहता हूं। फिर दोहराता हूं। आप धर्म के नाम पर झूठी बात बोलकर किसी को बरगला ही नहीं सकते। कोई भी इंसान किसी भी दावे को, तर्क को तभी ग्रहण करता है जब उसके पास उससे जुड़ा First Hand Experience न हो। जो भी लोग कट्टरता की इन बातों को सच मानकर फिल्म देख रहे हैं। देखने के बाद उसे और सच्चा मानते हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके पास खुद इससे जुड़े अनुभव हैं। वो अनुभव जो उन्होंने समाज में रहते हुए हासिल किए हैं। अब आपके हिसाब से कन्वर्ट होने वाली लड़कियां तो बेवकूफ नहीं हो सकती लेकिन लाखों लोग जो इस तरह के तजुर्बे लेकर बैठे हैं वो मूर्ख हैं,तो बताने की ज़रूरत नहीं है कि असल मूर्ख कौन है।
इसी तरह की सोच रखने वाले लोगों को कश्मीर फाइल्स भी प्रोपेगेंडा लगी थी। फिल्म देखकर देश-विदेश में आंसू बहाने वाले हज़ारों कश्मीर पंडित भी झूठे लगे थे। इनके हिसाब से 30 साल पहले लाखों की तादाद में कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़कर सिर्फ इसलिए निकल गए ताकि 2022 में उन पर कोई प्रोपेगेंडा फिल्म बनाकर एक कौम को बदनाम कर सके? क्या वो सब लोग भी एक पार्टी के एजेंट थे? कब तक यूं डिनायल मोड़ में जीते रहोगे भाई।
यूट्यूबर ने आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए बड़ी चालाकी से एक दो स्टेटमेंट पढ़कर मामला रफा दफा कर दिया। मगर उसने ये नहीं बताया कि किस तरह 2021 में केरल के प्रमुख कैथोलिक बिशप Joseph Kallarangatt ने कहा था कि अगर कोई इंसान कहता है कि केरल में लव जेहाद जैसी कोई चीज़ नहीं है तो वो सच्चाई से मुंह मोड़ रहा है। बिशिप ने बताया था कि किस तरह केरल में लव जिहाद और नारकोटिक्स जिहाद के नाम पर गैर मुस्लिम युवाओं का टारगेट किया जा रहा है।
2015 में केरल की कैथोलिक बिशप काउंसिल के मुखपत्र Jagrath में छपी रिपोर्ट में बताया गया कि किस तरह 2005 से
2012 के बीच 4 हज़ार क्रिश्चियन लड़कियों को कन्वर्ट किया गया।
खुद केरल एसटीएफ ने हज़ारों हिंदू और क्रिश्चियन लड़कियों के कन्वर्ज़न के आंकड़े पेश किए। केरल हाईकोर्ट ने शादी के नाम पर रहे कन्वर्ज़न में एक खास पैटर्न की तरफ इशारा किया।
और तो और केरल में मौजूद दुनिया की दूसरे सबसे बड़ी सिरो मालाबार चर्च, जी हां दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कैथोलिक चर्च ने क्रिश्चियन लड़कियों के कन्वर्जन पर अपनी चिंता जताई थी।
अब या तो यूट्यूबर को ये आंकड़े मिले नहीं या वो बड़ी चालाकी से इसे इग्नोर कर गया। उसी तरह जैसे वो ये भी इग्नोर कर गया कि फिल्म के जिस मुख्य किरदार ने लड़की को लव जिहाद के मामले में फंसाया था फिल्म के आखिर में लिखा आया था कि वो आज भी केरल में पित्ज़ा शॉप चला रहा है। तर्क तो ये भी दिया जा सकता है कि जिस इंसान का अपराध इतना बड़ा था कि उस पर फिल्म बन गई जब वो आज भी केरल में खुलेआम घूम रहा है, अपना काम धंधा चला रहा है तो कन्वर्ज़न के लव जिहाद के बाकी मामलों में पुलिस किसी की क्या ही सुनवाई कर रही होगी? और जब सुनवाई ही नहीं हो रही तो ये आंकड़ा 3 या 32 हज़ार ये कौन तय करेगा?
देने के लिए और हज़ारों तर्क हैं। गिनाने के लिए और बीसियों बातें हैं। मगर Secularism की सारी डिबेट में सबसे बड़ा ढकोसला पता क्या है। आप जिस Secularism के पक्षधर हो। व्यावहारिक ज़िंदगी में आप उसी के सबसे बड़े दुश्मन हो। आप कट्टरता के विरोधी तो हो, मगर जानते ही नहीं कि कट्टरता है क्या? उसका सबसे बड़ा गुनहगार कौन है?
जो भी इंसान या कौम ये कहता है कि उसके जाने सच के अलावा, उसके धर्म में बताए सच के अलावा दूसरा और कोई सच नहीं वो कट्टर है। हो सकता है कि किसी ने एक धार्मिक किताब में जीवन का अंतिम सच देख लिया हो तो ये भी संभव है कि दूसरा कोई वर्ग एक नेता को अपना अंतिम सच मानता हो। अगर नेता की हर बात को अंतिम सच मानने वाला अंधभक्त है तो खुद से पूछिए आपके और उसके अंधेपन में क्या फर्क है। बस चॉइस का फर्क है। अंधापन तो सेम ही है। सवाल यही है कि जिस वक्त आप अपने जाने सच को ही जीवन इकलौता सच मानने लगते हैं तो आप कट्टर हो जाते हैं। दकियानूसी हो जाते हैं। सड़ने लगते हैं। दूसरों से कटने लगते हैं। श्रेष्ठता बोध पाल लेते हैं। फिर चाहे वो एक किताब का सच हो या एक राजनेता का बताया सच। आपको उसके अलावा सच का दूसरा कोई वर्ज़न दिखाई नहीं देता।
अगर आप सच में समाज में फैली कट्टरता से चिंतित हैं तो ये पता लगाइए कि वो कौन है जो धार्मिक श्रेष्ठता की इस ग्रंथी से ग्रसित है। कट्टरता की सारी बहस इसी ग्रंथी में छिपी है। आप उसे खोल लीजिए सारे राज खुद-ब ख-द खुल जाएंगे। वरना आंकड़ों की बाज़ीगरी करते हुए दूसरों के कुकर्मों पर वैसे ही गंदे पोछे लगाते रहेंगे जैसे आज तक लगाते रहे हैं।