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क्या वाकई जनता और कांग्रेस को जोड़ पाएगी भारत जोड़ो यात्रा
देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ने शायद अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है। धीरे धीरे ही सही लेकिन पिछले कुछ महीनों से पार्टी की गतिविधियों से लग रहा है कि अब कांग्रेस वनवास खत्म करने की फिराक में है। मोदी सरकार की दोनों पारियों के अब तक के आठ साल कांग्रेस ने ऐसे गुजारे हैं जिससे यह एहसास हो गया था कि अब कांग्रेस की राजनीति करने की इच्छा शक्ति ही खत्म हो चुकी है। पिछले दिनों राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने जिस प्रकार दिल्ली में महंगाई और बेरोज़गारी पर हल्ला बोला था उससे एक आशा जगी ती कि देश में सरकार को जगाने के लिए विपक्ष कहीं ना कहीं अभी मौजूद है। खासतौर से प्रियंका ने जिस साहस के साथ सरकारी दबाव का सामना किया उसकी चर्चा जनता में अवश्य हुई थी।
अब कांग्रेस फिर जनता के बीच जाने के लिए एक नया प्रोग्राम लाई है जिसे नाम दिया गया है "भारत जोड़ो यात्रा"। कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार देश में धार्मिक नफरत और ध्रुवीकरण पर आधारित राजनीति से देश को बचाने के लिए भारत जोड़ो यात्रा का कार्यक्रम रखा गया है और यह यात्रा लगभग 3500 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। यात्रा के लक्ष्यों में समाजिक सौहार्द का संदेश देने के साथ-साथ 'संविधान, धर्मनिरपेक्षता और सरकारी संपत्तियों को बचाने' का भी आह्वान किया जाएगा। पार्टी के अनुसार भारत जोड़ो यात्रा को लगभग 150 सिविल सोसायटीज का साथ भी मिलने की बात कही जा रही है। कांग्रेस की भारत 7 सितंबर को शुरू होगी जो अगले पांच महीने तक चलेगी।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक कांग्रेस अपना संदेश लेकर जनता के बीच जा रही है जिसमें उसे बहुत सामाजिक लोगों का साथ भी मिल रहा है। कांग्रेस इस यात्रा के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी की ध्रुवीकरण की राजनीति को भी परास्त कर देना चाहती है। स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने भी कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करते हुए कहा है कि यह यात्रा इस वक्त देश की जरूरत है। इसलिए सभी सिविल सोसायटीज साथ आने का मन बना चुकी हैं। मजदूर किसान शक्ति संगठन की अरुणा राय ने कहा कि राहुल गांधी उसी सिद्धांत पर चल रहे हैं जिसको सिविल सोसायटी मानती है। इसमें संवैधानिक मूल्य, समानता, बहुलवाद शामिल है। इसलिए वह यात्रा का समर्थन करती हैं। भारत जोड़ो यात्रा की खास बात यह भी रहेगी कि इसमें कांग्रेस का झंडा नहीं बल्कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा नज़र आएगा।
देर आयद दुरुस्त आयद पर चलते हुए कांग्रेस ने अपने और देश के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत को जीवित रखने के लिए अगर प्रयास शुरू किए हैं तो इनका समर्थन और स्वागत अवश्य किया जाना चाहिए। लेकिन इसमें सबसे बड़ा सवाल खुद कांग्रेस से किया जाना चाहिए कि क्या कांग्रेस ने खुद को धर्मनिरपेक्षता पर चलने के लिए राजी कर लिया है। कांग्रेस का पिछला इतिहास बताता है कि उसने भाजपा के तुष्टिकरण के आरोप से डरकर सदा नर्म हिंदुत्व का दिखावा करने की कोशिश की है जिसकी वजह से ही देश में सांप्रदायिक नफ़रत का बोलबाला हुआ है। ये बात बिल्कुल सत्य है कि गांधी परिवार के होते हुए ही कांग्रेस का सिकुलर किरदार सुरक्षित है लेकिन उन्हें सदा हिंदुओं की नाराज़गी से डराया जाता रहा है और कांग्रेस को नर्म हिंदुत्व पर चलने पर मजबूर किया जाता रहा है। अभी कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह बघेल ने गौमूत्र खरीद कर राज्य में बांटने की योजना बनाई थी।
दरअसल जब कांग्रेसी सरकारें धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए आगे बढ़ती हैं तब वह यह संदेश देती हैं कि उन्हें भी भाजपा जैसी राजनीति ही करनी है। धार्मिक राजनीति का पेटेंट भाजपा के अलावा किसी के पास नहीं है इसलिए उस प्रतिस्पर्धा में कांग्रेस अवश्य हारती है क्योंकि उसका धर्मनिरपेक्ष समर्थक भी उसे नकलची पार्टी समझकर छोड़ देता है। भाजपा और संघ के लोग जानबूझकर कांग्रेस को धर्मविरोधी घोषित कर उसे उसकी धर्मनिरपेक्षता से बहुत दूर ले जाने की कोशिशें करते रहे हैं। इन सब हरकतों से खुद कांग्रेस को ही लड़ने की आवश्यकता है हालांकि राहुल गांधी ने बड़े साहस के साथ कह दिया है कि कोई अगर साथ नहीं आएगा तो वह अकेला ही चलेंगे। राहुल गांधी की इस बात में दम भी है दर्द भी है क्योंकि नेताओं की एक बड़ी संख्या खुद कांग्रेस को अब राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए इच्छाशक्ति नहीं रखती बल्कि गांधी परिवार को कांग्रेस की राह का रोड़ा साबित कर भाजपा के एजेंडे पर खेलते रहते हैं।
कांग्रेस के गैर गांधी परिवार वाले नेताओं को भाषा और आचरण से खुद को शुद्ध धर्मनिरपेक्षता का ध्वजारोहक बनना चाहिए जिससे देश के धर्मनिरपेक्ष लोगों को सिर्फ कांग्रेस ही अपनी पार्टी नज़र आए। देश में आज भी धर्मनिरपेक्ष लोगों की संख्या ज्यादा है लेकिन वह बिखरे हुए हैं इसलिए बेवज़न होकर सांप्रदायिक शक्तियों के आगे बौने नज़र आ रहे हैं। कांग्रेस के पास फिलहाल बड़ा अवसर है कि खुद को एक मजबूत धर्मनिरपेक्ष विकल्प के तौर पर स्थापित कर देश को जोड़ने और देश को तोड़ने वाली शक्तियों पर कड़ा प्रहार करते हुए मैदान में डट जाए। यदि कांग्रेस इतनी हिम्मत दिखा पाती है तब कहा जा सकता है कि वह सत्ता परिवर्तन करने की ताकत रखती है।