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- ईडी से विपक्ष मजबूत...
आखिरकार शिवसेना के अतिमुखर और भाजपा को उसी लहजे में जवाब देने वाले नेता संजय राऊत को ईडी द्वारा हिरासत में ले लिया गया है और संभव है कि लेख प्रकाशित होने तक गिरफ्तारी हो जाए। भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद ईडी जिस प्रकार ताबड़तोड़ कार्रवाई विपक्षी नेताओं के खिलाफ कर रही है उससे जाहिरी तौर पर यह लगता था कि इससे विपक्ष बेदम होकर भाजपा के सामने नतमस्तक हो जाएगा लेकिन अब जब सभी बड़े नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक भी ईडी के हाथ बेहिचक होकर पहुंचे जा रहे हैं तब यह कहना अब मुश्किल है कि इससे विपक्ष या गैर भाजपाई दल बेदम होकर नतमस्तक करेंगे।
नितिन गड़करी की एक वीडियो जिसमें वह प्रधानमंत्री की आलोचना करते नज़र आ रहे हैं उनके साथ वीडियो में किनारे लगा दिए गए भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद भी मौजूद हैं। ये वीडियो और कुछ दिनों पहले नीतीश गड़करी का बयान जिसमें गांधीवादी सियासत की तारीफ थी और केंद्र सरकार में नंबर दो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर में पंडित नेहरू की आलोचना करने से मना कर दिया था। सत्ताधारी पार्टी की अंदरूनी कमजोरियां सत्ता की चमक में छिप जाती हैं लेकिन भाजपा के अंदर भी खिचड़ी पक जरूर रही है।
ईडी की इन कार्रवाइयों की आलोचना तो हो रही है और उसके अधिकार व तौर तरीकों पर उंगली उठाई जा रही है लेकिन फिर भी ईडी अपना काम लगातार जारी रखे हुए है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शुरुआत में तो लग रहा था कि ईडी से राजनीतिक दल डरते रहेंगे लेकिन अगर ऐसे ही नेता ईडी का शिकार होते रहे तो धीरे धीरे भाजपा के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन ईडी पीड़ितों का जमा हो जाएगा जो भाजपा के लिए बड़ा और नया दर्देसर बन जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव सिर्फ विपक्ष की कमजोरी के कारण जीतना चाहती है क्योंकि उसके परंपरागत राजनीतिक हथियार हिंदुत्व को अब वो इतनी धार नहीं दे सकती कि बड़ी कामयाबी हासिल कर सके भाजपा के चाणक्य गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा चुनाव 2024 में 400 सीटों का लक्ष्य निर्धारित कर चुके हैं उसके लिए तो कुछ अलग तिगड़म भाजपा को लगानी होगी। नुपुर शर्मा प्रकरण के बाद भाजपा खुद अब ज्यादा सांप्रदायिक माहौल बना कर या हिन्दू मुस्लिम शौर मचाने से बच रही है, पिछड़े मुसलमानो के बहाने भाजपा अब मुसलमानो मे पैठ बना कर दुनिया को सिकुलर चेहरा दिखाना चाहती है जो उसके हिंदूवादी छवि के बिल्कुल विपरीत है।
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ बने माहौल से देश का बंटवारा हो सकता है। ऐसे बयान अब देश विदेश में काफी सुनने को मिल रहे हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों खासतौर से मुसलमानो के खिलाफ घटनाओं में इजाफा हुआ है। इस छवि को बदलना भारत सरकार की की मजबूरी बन गई है। उसके सामने असमंजस की स्थिति है कि अपनी पहचान बन चुके एजेंडा से कैसे दामन बचाए। अब अगर वह ईडी के जरिए चुनौती दे सकने वाले नेताओं को नियंत्रित नहीं करेगी तो फिर कैसे 400 लोकसभा सीटों का लक्ष्य हासिल कर पाएगी। हो सकता है भाजपा इसमें अपना फायदा देख रही हो लेकिन लोगों का मानना है कि ईडी बिल्कुल निष्क्रिय विपक्ष को सक्रिय करने में मददगार जरूर साबित होगी। अगर ईडी की कार्यवाईयों की प्रतिक्रिया उलट हुए जैसे भाजपा सोच रही थी तो फिर लोकसभा चुनाव इतने आसान नहीं होंगे जैसे अभी सोचे जा रहे हैं। अब समय ही बता सकता है कि ईडी कार्रवाइयों के परिणाम क्या होंगे।