चेन्नई

हिरासत में मौत के मामले, कार्रवाई और कानून का पालन

Shiv Kumar Mishra
28 Jun 2020 10:47 AM GMT
हिरासत में मौत के मामले, कार्रवाई और कानून का पालन
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तमिलनाडु में लॉकडाउन के दौरान तय समय के बाद भी दुकान खुली रखने के आरोप में गिरफ़्तार 58 साल के पी जयराज और 38 साल के उनके बेटे बेनिक्स को पुलिस ने पीट-पीट कर मार डाला। पीटने और पुलिस ज्यादाती का विवरण अमानवीय है। इसलिए इसपर हंगामा है लेकिन पुलिस हिरासत में मौत का सामान्य मामला भी क्यों होता है। तमाम कायदे कानूनों का उल्लंघन होने पर ही यह संभव है लेकिन कार्रवाई के नाम पर निचले स्तर के एक-आध पुलिस वाले फंसते हैं बात आई-गई हो जाती है।

दूसरी ओर, ऐसे ही मामले में नौकरी छोड़ चुके (या छुड़ाए जा चुके) आईपीएस अफसर संजीव भट्ट कोई दो साल से जेल में हैं उन्हें जमानत नहीं मिल रही है। उनपर पुलिस हिरासत में मौत का एक पुराना मामला है। जिसमें वे पहले दोषी नहीं पाए गए थे पर वर्षों बाद इसी मामले में उन्हें दोषी ठहरा दिया गया और अब जमानत नहीं मिल रही है।

पुलिस हिरासत में पिटाई और मौत का मामला पिछले साल झारखंड में भी हुआ था। सरायकेला जिले के खरसावां में मोटरसाइकिल चोरी के शक में भीड़ ने 24 साल के युवक को जमकर पीटा। पुलिस ने उसका इलाज कराने की बजाय जेल में बंद कर दिया। इसमें कई लोगों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और इसी कारण उसे बचाया नहीं जा सके। इसमें भीड़ द्वारा पिटाई एक अपराध है, पुलिस द्वारा उसका मेडिकल नहीं कराना और अदालत में पेश करने पर भी उसकी घायल स्थिति नहीं मालूम होना कई लोगों की लापरवाही की ओर इशारा करती है। उसपर मोटर साइकिल चोरी करने का भी आरोप लगा ता जिसका कुछ पता नहीं चला। कुछ दिन के हंगामे के बाद यह मामला भी दब गया।

मेरा मानना है कि ऐसे मामले अंजाम तक पहुंचते ही नहीं हैं इसलिए बंद नहीं हो रहे हैं। कानून का पालन और उपयोग पीड़ितों के लिए किया जाना चाहिए पर राजनेता उनका उपयोग अफसरों से मनमाने काम करवाने के लिए करते हैं। नहीं करने वाले सताए जाते हैं। ऐसे में भाजपा सरकार जिस धूम-धड़ाके से सत्ता में आई थी वैसा कोई काम नहीं कर पाई या किया। शौंचालय बनवाने को कुछ लोग उपलब्धि मानते हैं लेकिन प्रधानमंत्री अगर कोरोना के नाम पर 10,000 करोड़ रुपए इकट्ठा कर सकते हैं तो शौंचालयों के लिए भी कर सकते थे और एक लाख रुपए के 10 लाख शौंचालय बनवाए जा सकते थे।

इन दिनों जब सब लोग जयराज और उनके बेटे बेनिक्स के हत्यारों को सजा दिलाने के अभियान में लगे हैं मैं झारखंड के मुख्यमंत्री से मांग करता हूं कि वे तबरेज की हत्या के लिए जिम्मेदार पुलिस वालों को सजा दिलाएं और पता लगाएं कि उसपर जिस मोटरसाइकिल चोरी का इल्जाम था वह किसकी थी। अगर आरोप गलत है तो उस समय के मंत्रियों ने भी यह इलजाम लगाया था उनके खिलाफ भी कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।

सरकारें सेवा करने के लिए नहीं, काम करने के लिए होती हैं। और काम शौंचालय बनवाना तो नहीं ही है। कानून का सख्ती से पालन भले हो। सीएए या उसकी क्रोनोलॉजी समझाना भी नहीं है।

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