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छत्तीसगढ़ में मायावती की बहुजन समाज पार्टी और छत्तीसगढ़ के प्रभावी नेता अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस के गठिबंधन होने के बाद ये क़यास सियासी हलकों में गर्दिश कर रहे थे की ये गठबंधन भाजपा को फायदा पहुँचाने के लिए किया गया है और इससे सेक्युलर बताये जाने वाले वोट बंटेंगे जिसका नुकसान सीधा कांग्रेस को होगा. लेकिन राज्य की बदलती हुई तस्वीर कुछ और इशारा कर रही है. मायावती और जोगी जिस तरीके से भाजपा पर हमलावर हो रहे हैं और जिस हिसाब से मायावती और जोगी की रैलियों में भीड़ बढ़ रही है उससे सियासी जानकार अब यही मान कर चल रहे हैं इसका भरी नुक्सान भाजपा भी उठा सकती है. इसके पीछे वह तर्क दे रहे हैं की जो तब्क़ा भाजपा की सर्कार से संतुष्ट नहीं है और कांग्रेस का विरोधी रहा है और मजबूरी में भाजपा का साथ दिया करता था उसे तीसरा मज़बूत विकल्प मिला है. वही तब्क़ा अगर भाजपा से अलग हो गया तो भजपा के लिए स्थिति नाज़ुक हो सकती है.
पिछले विधानसभा चुनाव पर नज़र डालें तो छत्तीसगढ़ में भाजपा को 53.4 लाख वोट मिले, जो कुल वैध मतों का 41.4 प्रतिशत था. कांग्रेस को 40.29 प्रतिशत यानि 52.44 लाख वोट मिले. यानी दोनों पार्टियों के बीच का अंतर एक प्रतिशत से भी कम रहा. इसका मतलब ये है की कांग्रेस और भाजपा के मतों का अंतर बहुत ज़्यादा नहीं रहा है. जो वोटर कांग्रेस को वोट देना चाहता है वह उसे ही वोट देगा लेकिन जो वोट कांग्रेस के खिलाफ जाना चाहता है और भाजपा से भी बचना चाहता है उसके लिए माया जोगी गठबंधन एक मज़बूत विकल्प के तौर पर सामने मौजूद है. इसलिए वह वोट भाजपा से दूरी बनाएगा. इसका असर भाजपा के ऊपर भी अवश्य पड़ेगा.
अब सबसे बड़ा सवाल पैदा होता है की क्या दुसरे राज्यों की भांति छत्तीसगढ़ में भी क्षेत्रीय दलों का बोलबाला रहेगा या राष्ट्रीय पार्टियां अपना वजूद बचने में कामयाब हो जाएँगी.