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बस्तर के लाल डॉ राजाराम त्रिपाठी बने देश के अग्रणी "विश्व-विद्यालय" के बोर्ड मेंबर
डॉ राजाराम त्रिपाठी बीएससी ,(गणित), एलएलबी, कार्पोरेट-ला एवं पांच अलग-अलग विषयों में स्नातकोत्तर की डिग्रियों तथा डॉक्टरेट की उपाधि के साथ देश के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे किसान के रूप में जाने जाते हैं।
बस्तर के प्रयोगधर्मी किसान वैज्ञानिक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने एक बार फिर बस्तर कोंडागांव ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश को गौरवान्वित किया है। हाल ही में इस बस्तरिया किसान को 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)' के 'राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) नैक के द्वारा ए-प्लस ( A+) की सर्वोच्च ग्रेडिंग प्राप्त, देश के अग्रणी शिक्षा संस्थान गलगोटिया विश्व-विद्यालय के बोर्ड का सदस्य नामित किया गया है। अपनी विशिष्ट शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए देश विदेश में ख्याति प्राप्त इस विश्वविद्यालय में आज 25000 पच्चीस हजार से भी ज्यादा छात्र शिक्षा प्राप्त करते हैं। डॉक्टर त्रिपाठी को बोर्ड में 'कृषि-विशेषज्ञ' का दर्जा देते हुए कृषि अध्ययन बोर्ड में जगह दी गई है। विश्वविद्यालय के बीएससी, एमएससी के विद्यार्थियों तथा शोधार्थियों के लिए समय-समय पर डॉ त्रिपाठी के व्याख्यान भी आयोजित किए जाएंगे। डॉक्टर त्रिपाठी यह सम्मान प्राप्त करने वाले प्रदेश के पहले किसान हैं।
बचपन में कांग्रेस नेताओं की सामूहिक नक्सल हत्या के लिए कुख्यात झीरम-घाटी वाले दरभा विकास खंड के बेहद पिछड़े गांव 'ककनार में खेती करने वाले और निकटवर्ती जंगलों में गाय,बैल,भैंस चराने वाले राजाराम की, बस्तर के जंगलों से निकलकर देश के सर्वोच्च गुणवत्ता वाले विश्वविद्यालय के बोर्ड तक की संघर्ष गाथा फिल्मी कथाओं की तरह रोमांचक और परी-कथाओं की तरह अविश्वसनीय है। इन्होंने 20 वर्षों की उम्र तक गांव में रहकर खेती करने, जंगलों में गाय-भैंस चराने के साथ ही साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। पढ़ने का वो सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। आज डॉक्टर त्रिपाठी बीएससी, एलएलबी तथा पांच अलग-अलग विषयों में स्नातकोत्तर की डिग्री के साथ ही विभिन्न विषयों में डॉक्टरेट की उपाधि के साथ देश के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे किसान के रूप में जाने जाते हैं ।
कोंडागांव बस्तर का यह प्रयोगधर्मी किसान आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसके किसान वैज्ञानिक को हाल ही में देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जी के हाथों देश के सर्वश्रेष्ठ किसान अवार्ड दिया गया। पांचवी बार देश के कृषि मंत्री के हाथों सर्वश्रेष्ठ किसान का सम्मान पाने वाले डॉ त्रिपाठी देश के पहले किसान हैं। वैसे तो उन्हें अब तक सैकड़ों राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं किंतु इस बार यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें बहुचर्चित डेढ़ लाख रुपए में तैयार एक एकड़ के "नेचुरल ग्रीन हाउस" में अस्ट्रेलियन - टीक के पेड़ों पर काली मिर्च की लताएं चढ़ाकर एक एकड़ से 'वर्टिकल फार्मिंग' के जरिए 50 एकड़ तक का उत्पादन लेने के सफल प्रयोग हेतु प्रदान किया गया । ये उनकी सतत लगन और मेहनत ही रही कि लगभग 40 लाख की कीमत वाले एक एकड़ के 'पाली-हाउस' का बेहद सस्ता, बहुउपयोगी प्राकृतिक, शत-प्रतिशत सफल विकल्प महज 'एक से डेढ़ लाख' रुपये में तैयार कर दिखा दिया ।
एक ओर जहां तमाम स्वनामधन्य कृषि विशेषज्ञों को गलत करार देते हुए केरल से भी बेहतर काली मिर्च की फसल छत्तीसगढ़ के बस्तर में अपने बूते पैदा करते हुए राजाराम त्रिपाठी ने इतिहास रचा है, वहीं किसानों के लिए उनके अविष्कार, नवाचार बस्तर के साथ ही देश भर के किसानों की दशा को सुधारने में मददगार साबित हो रहे हैं। बस्तर के कोंडागांव में उनकी कालीमिर्च की खेती देश भर में चर्चा का केंद्र है तो वहीं उनकी सफेद मूसली की उपज के किस्से छत्तीसगढ़ की विधानसभा में बयां किए जा रहे हैं।
जैविक खेती को लेकर हर समय नए नए सफल प्रयोग करने वाले डा. त्रिपाठी ने देश भर के किसानों को इसमें प्रशिक्षण दे बिनी किसी सरकारी प्रयास उनकी आमदनी को कई गुना बढ़ाने का हथियार दे दिया है। उनके प्रयासों की गूंज सरकारों के कानों तक देर से पहुंची पर दुनिया के कई देशों से लोग उनके नवाचारों, जैविक खेती के माडल औरआदिवासियों को सबल बनाने के प्रयासों को देखने बस्तर के कोंडागांव लगातार पहुंच रहे हैं। उनके द्वारा स्थापित 'मां दंतेश्वरी हर्बल समूह' के साथ अब इनके परिवार की दूसरी पीढ़ी भी कंधे से कंधा मिलाकर पसीना बहा रही है। इस नवयुवा पीढ़ी की अगुवाई कर रही उनकी बिटिया अपूर्वा त्रिपाठी द्वारा बस्तर की आदिवासी महिला समूहों के साथ मिलकर यहां उगाए गए विशुद्ध प्रमाणित जैविक जड़ी बूटियों,मसालों, तथा उत्कृष्ट खाद्य उत्पादों की श्रंखला " एमडी बोटानिकल्स" ब्रांड के जरिए एक विश्वसनीय वैश्विक ब्रांड का तमगा हासिल कर चुकी हैं । इनके बस्तरिया उत्पाद अब अमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर ट्रेंड कर रहे हैं।
खेती-किसानी से इतर आदिवासी बोली, भाषा और उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए डा राजाराम त्रिपाठी का काम देश भर में उनकी अलग पहचान बनाता है 'ककसाड़' नामक जनजातीय सरोकारों की विगत एक दशक से प्रकाशित पत्रिका के जरिए, छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की विलुप्त हो रही बोली-भाषा, संस्कृति तथा सदियों के संचित अनमोल परंपरागत ज्ञान को संजोने, व बढ़ाने के काम में अथक जुटे राजाराम त्रिपाठी को लोक संस्कृति का चलता फिरता ध्वजावाहक कहा जाना अतिशयोक्ति न होगा। डॉक्टर त्रिपाठी की इस उपलब्धि से कोंडागांव बस्तर ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के गौरव में वृद्धि हुई है।