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40 लाख में बनने वाला पॉली हाउस डेढ़ लाख में बनाइये, जानिए "नेचुरल ग्रीन हाउस" को क्यों कहा जा रहा है खेती का "गेम चेंजर"
इन दिनों पूरे देश में नेचुरल ग्रीन हाउस की चर्चा है। पॉलीहाउस लगाकर अपनी आमदनी बढ़ाने का सपना हर प्रगतिशील किसान देखता है। किंतु अनुदान आदि के बावजूद 'पाली हाउस' की लागत को देखकर किसानों का दिल बैठ जाता है। ऐसे में अगर मात्र एक से डेढ़ लाख रुपए में एक एकड़ के चालीस लाख रुपए के पालीहाउस का सस्ता, कारगर, नेचुरल विकल्प मिल जाए तो इसे किस्मत पलटना ही कहा जाएगा।
यह करिश्मा कर दिखाया है बस्तर कोंडागांव के प्रयोगधर्मी किसान वैज्ञानिक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने। जिन्हें हाल ही में देश के कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर जी के हाथों देश के सर्वश्रेष्ठ किसान अवार्ड दिया गया। वैसे तो उन्हें अब तक सैकड़ों राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं किंतु यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें इसी बहुचर्चित ₹ एक लाख साठ हजार में तैयार में तैयार "नेचुरल ग्रीन हाउस" में ऑस्ट्रेलियन-टीक (AT) के पेड़ों पर काली मिर्च (BP)की लताएं चढ़ाकर एक एकड़ से वर्टिकल फार्मिंग के जरिए 50 एकड़ तक का उत्पादन लेने के सफल प्रयोग हेतु प्रदान किया गया। इन दिनों हर किसान के मन में नेचुरल ग्रीन हाउस को लेकर कई सवाल घूम रहे हैं। यहां हम तत्संबंधी सभी संभव सवालों का जवाब देने का प्रयास श कर रहे हैं।
इस कड़ी में सर्वप्रथम हम AT-BP (ऑस्ट्रेलियन टीक AT व काली मिर्च BP ) के सस्ते "नेचुरल ग्रीन हाउस" और वर्तमान पोली हाउस की बिंदुवार तुलना प्रस्तुत कर रहे हैं :-
1- पराबैंगनी (ultraviolet) किरणों से बचाव :-
पाली हाउस :- यह पराबैंगनी किरणों से ऊपर लगाई गई पॉलीथिन शीट की क्षमता के अनुसार एक हद तक बचाव करता है।
नेचुरल ग्रीन हाउस : इसकी हरी छतरी ( Green Leaves Cover) भी इसमें लगी फसलों का पराबैंगनी किरणों से प्रभावी और जरूरी बचाव करने में भली-भांति सक्षम है।
2- धूप से बचाव :-
पाली हाउस:- पॉलीहाउस में लगाई गई फिल्म की क्षमता के अनुसार यह धूप से जरूरी 60 अथवा 70% तक बचाव करता है, जिससे पौधों को प्रकाश संश्लेषण (photosynthes synthesis) के लिए ज्यादा समय मिलता है, और इससे ज्यादा उत्पादन मिलता है।
नेचुरल ग्रीन हाउस : इसमें भी 60 से 70% तक वृक्षों से नैसर्गिक छाया मिलती है, यह छाया सूर्य की गति के अनुसार चलायमानरहती है जिससे प्रकाश संश्लेषण हेतु ज्यादा समय मिलता है, और उत्पादन भी ज्यादा प्राप्त होता है।
3- गर्मी तथा सर्दी, ओला, बारिश से बचाव :-
पाली हाउस: पाली हाउस में ओला बारिश से तो बचाव होता ही है, साथ ही एक सीमा तक तापक्रम को भी नियंत्रित रखा जा सकता है, पर इस कार्य में में नियमित रूप महंगी बिजली का खर्चा होता है, सोलर लगाने पर सोलर का भी एक मुश्त खर्चा भी बहुत ज्यादा बैठता है। तेज हवा तूफान में इसके पूरी तरह नष्ट होने की सदैव आशंका बनी रहती है
नेचुरल ग्रीन हाउस :- इसमें भीतर के तापमान और वाह्य वातावरण से 4 डिग्री तक का अंतर रहता है। अर्थात गर्मी में ठंडा और ठंडी में उष्ण रहता है जिससे लगभग सभी सामान्य फसलें गर्मी और सर्दी, बरसात तीनों ऋतु में भली-भांति ली जा सकती है। तेज हवा तूफान में भी इनमें कभी भी 2% से ज्यादा क्षति नहीं देखी गई है।
4-हानिकारक कीट पतंगों व बीमारियों से बचाव :-
पाली हाउस :- पाली हाउस चारों ओर से बंद होने के कारण बाहर से आने वाली बीमारियों तथा कीट पतंगों से भीतर की फसल की रक्षा करता है, पर इससे पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है तथा उत्पादन की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है।
नेचुरल ग्रीन हाउस:- इसमें "नैसर्गिक समेकित रक्षा प्रणाली" (Integrated Protection System : 'IPS' ) का उपयोग होता है इससे फसलें बीमारियों तथा कीट पतंगों से अपना प्रभावी बचाव भली-भांति कर लेती है। नैसर्गिक प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है और मिलने वाले उत्पादन की गुणवत्ता की बेहतरीन होती है।
5- नमी की रक्षा :-
पाली हाउस : पाली हाउस में यांत्रिक विधि से नमी का प्रभावी नियंत्रण भली-भांति किया जा सकता है। किंतु कूलर, एग्जास्ट आदि उपकरणों में बिजली का नियमित व्यय होता है ।
नेचुरल ग्रीन हाउस: इसमें प्रति एकड़ लगे 700-800 पौधों से निकलने वाली नमी को पेड़ों की हरी दीवार के जरिए तथा ऊपर पेड़ों की पत्तियों की तनी कैनोपी के जरिए संरक्षित होती है। साथ ही पेड़ों से नियमित गिरने वाली पत्तियों की परत भी भूमि की बहुमूल्य नमी को भी तेजी से विमुक्त होने से रोकती है।
6- सिंचाई :-
पाली हाउस:-
A-पाली हाउस में 'हाईटेक इरीगेशन' पद्धतियां अपनाना अनिवार्यता होती है,जिस पर काफी खर्च आता है।
B- इनके नियमित रखरखाव पर भी नियमित रूप से खर्चा होता है।
नेचुरल ग्रीन हाउस :-
A- इसमें हम सिंचाई की परंपरागत पद्धतियां जैसे कि नाली विधि अथवा क्यारी विधि द्वारा या फिर ड्रिप सिस्टम, स्प्रिंकलर या माइक्रो स्प्रिंकलर आदि में से किसी का भी प्रयोग अपनी अंतर्वरती फसलों की आवश्यकता के आधार पर उपयोग कर सकते हैं।
B- इसमें लगने वालीपरंपरागत सिंचाई पद्धतियों को विशेष तकनीकी देखभाल की आवश्यकता नहीं होती तथा इसमें कोई विशेष नियमित खर्चा भी नहीं होता ।
"नेचुरल ग्रीनहाउस" से मिलने वाले कुछ अतिरिक्त विशिष्ट फायदे :-
1- "नेचुरल ग्रीन हाउस" में लगाए गए विशेष प्रकार के पेड़ों की जड़ों में नियमित नाइट्रोजन फिक्सेशन के द्वारा तथा पेड़ों की गिरी हुई पत्तियों कंपोस्टीकरण के द्वारा जरूरी पर्याप्त मात्रा में बेहतरीन गुणवत्ता की जैविक खाद, किसी अतिरिक्त खर्चा के हमें प्राप्त हो जाती है।
जबकि "पाली हाउस" हमें हर बार रासायनिक खाद अथवा जैविक खाद बाजार से खरीद कर डालना होता है।
2- "नेचुरल ग्रीन हाउस" में पेड़ों पर बसेरा करने वाली चिड़ियों के जरिए कीट पतंगों पर सक्षम नियंत्रण तो होता ही है, साथ ही ही उनकी बीट से बहु उपयोगी माइक्रोन्यूट्रिएंट भी भूमि को नियमित रूप से प्राप्त होता है।
जबकि पाली हाउस पर हमें कीटनाशक दवाइयां एवं माइक्रोन्यूट्रिएंट्स खरीद कर डालने होते हैं।
3- "नेचुरल ग्रीन हाउस" के पेड़ों के तने के जरिए बारिश का जल धरती में धीरे-धीरे समा जाता है और इस तरह नियमित रूप से वाटर हार्वेस्टिंग होती है और धरती का जलस्तर भी ऊपर आ जाता है।
जबकि पाली हाउस में स्वत: वाटर हार्वेस्टिंग की कोई व्यवस्था नहीं होती ।
4- नेचुरल ग्रीन हाउस बहुत टिकाऊ होता है गर्मी सर्दी ओला तेज बारिश से या अपनी रक्षा तो करता ही है साथ ही फसल की भी रक्षा करता है। हर 10 साल में जरूरी कटाई छटाई के साथ 25-30 सालों तक इसका लाभ उठाया जा सकता है।
जबकि पाली हाउस की फिल्मों और फिक्सचर्स की अधिकतम आयु सात आठ साल ही होती है। कई बार तो तेज हवा तूफान में पहले साल ही इसकी पॉलिथीन फट जाती है और पूरा बहुमूल्य ढांचा तहस-नहस हो जाता है।
5- पाली हाउस साल लगभग 10 साल बाद कबाड़ में बदल जाता है जबकि "नैसर्गिक ग्रीनहाउस" 10 साल बाद करोड़ों रुपयों की बहुमूल्य लकड़ी देता है।
6- पाली हाउस में 10-12 फीट ऊंचाई तक ही वर्टिकल फार्मिंग के जरिए आमदनी बढ़ाई जा सकती है, जबकि नेचुरल ग्रीन हाउस थे ऑस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर 70-80 फीट की ऊंचाई तक काली मिर्च के गुच्छे लदे रहते हैं। इस तरह पाली हाउस की तुलना में नेचुरल ग्रीनहाउस की आमदनी काफी ज्यादा बढ़ जाती है।
7- लागत:- सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है लागत। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के सरकारी मापदंडों के अनुसार 1 एकड़ में 'पालीहाउस' बनाने का खर्चा लगभग 40-चालीस लाख रुपए होता है। जो भारत के किसानों के लिए साबित रूप से किसी भी तरह से आर्थिक व्यवहार्य नहीं है।
जबकि नेचुरल ग्रीन हाउस में कुल एकमुश्त खर्चा ज्यादा से ज्यादा "1-एक से 1.5 डेढ़ लाख रुपया" ही बैठता है।
खेती के AT-BP Model अथवा "नेचुरल ग्रीनहाउस" मॉडल को लेकर पूछे जाने वाले कुछ जरूरी सवालों के जवाब नीचे दिए जा रहे हैं:-
सवाल-1: इसे कैसी मिट्टी और कैसी जलवायु चाहिए ? देश के किन किन भागों में इसकी खेती की जा सकती है?
जवाब:
डॉ त्रिपाठी का मानना है केवल ऐसे क्षेत्र जहां काफी बर्फबारी होती हो, तथा ऐसे क्षेत्र जो पूरी तरह से रेगिस्तान हों वहां यह मॉडल सफल नहीं हो पाएगा। बाकी भारत के शेष सभी भागो में "नेचुरल ग्रीन हाउस" का यह मॉडल पाली हाउस के सफल एवं सस्ते विकल्प के रूप में काम कर सकता है। यह कंकरीली, पथरीली, बंजर भूमि में भी सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं यह बंजर भूमि को भी कुछ ही सालों में भरपूर उपजाऊ बना देता है।
यह सफल मॉडल (AT-BP) इस समय कई राज्यों के प्रगतिशील किसानों के द्वारा सफलतापूर्वक अपनाया जा चुका है ।
सवाल-2 : इसके लिए कितनी सिंचाई की जरूरत पड़ती है?
जवाब: वैसे तो यह प्लांटेशन बिना पानी के सूखी जमीन में भी वर्षा ऋतु की शुरुआत में लगाया जा सकता है किंतु यदि थोड़ी सिंचाई की व्यवस्था अगर रहे तो ज्यादा उत्पादन तथा फायदा लिया जा सकता है।
सवाल-3 : यह आस्ट्रेलियन टीक (AT) क्या है, और एटीबीपी का कोंडागांव मॉडल' आखिर क्या है, और इसमें काली मिर्च का क्या रोल है ?
जवाब : मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर द्वारा विकसित Acacia की विशेष प्रजाति जिसे विपणन की भाषा में' "ऑस्ट्रेलियन-टीक'" कहा जाता है। इसके साथ ऑस्ट्रेलिया शब्द से जुड़ने का कारण संभवत यह है किऑस्ट्रेलिया में इसका प्लांटेशन बड़े मात्रा में किया जाता रहा है। दूसरा इसकी बहुमूल्य लकड़ी ऑस्ट्रेलिया से भारत आयात किए जाने के कारण भी हो सकता है।
बहरहाल बेहतरीन लकड़ी देने वाली इस विशेष प्रजाति की कई विशेषताएं हैं जैऐ कि (1) यह देश के सभी भागों में सभी तरह की जलवायु में बिना विशेष सिंचाई अथवा देखभाल के सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है।( 2) इसके बढ़ने की गति महोगनी, शीशम, टीक, मिलिया डुबिया यहां तक कि नीलगिरी को भी पीछे छोड़ देती है। और यह पेड़ लगभग 7 से 10 साल में ही काफी ऊंचा ही नहीं बल्कि काफी मोटा भी हो जाता है।
(3)यह सागौन, महोगनी, शीशम जैसी बेहतरीन मजबूत, हल्की, खूबसूरत बहुमूल्य इमारती लकड़ी देता है।
(4)इतना ही नहीं यह उचित देखभाल से या अन्य वृक्षों की तुलना में दोगुनी मात्रा में इमारती लकड़ी देता है।
(5)इसका एक बहुत ही महत्वपूर्ण फायदा यह है कि यह पेड़, वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में स्थित राइजोबियम (Rhizobium) जो की मिट्टी का जीवाणु (बैक्टिरिया) है और नाइट्रोजन का यौगीकीकरण कर मिट्टी में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करता है। इस प्रकार यह फसलों की नाइट्रोजन यानी 'यूरिया' की आवश्यकता को जैविक विधि से भली-भांति पूर्ति करता है।
(6)इसी जैविक नाइट्रोजन खाद के कारण, इन पेड़ों पर चढ़ाई गई काली मिर्च की लताओं से मिलने वाली काली-मिर्च का उत्पादन देश के अन्य भागों में लिए जा रहे उत्पादन से काफी ज्यादा हो रहा है।
इसी ऑस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च की खेती को ही 'एटीबीपी का कोंडागांव मॉडल' कहा जाता है।
सवाल-4: इसके पौधे कहां मिलते हैं तथा इसकी तकनीक कैसे मिलेगी, क्या तकनीक अथवा प्रशिक्षण का कोई चार्ज भी है ?
जवाब: इसके पौधे "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर" से प्रशिक्षित " स्थानीय आदिवासी महिलाओं के समूह" के द्वारा अग्रिम ऑर्डर देने पर ही तैयार किया जाता है। इस मॉडल को अपने खेतों में लगाने की इच्छुक किसानों को पौधे देने के पूर्व विधिवत तकनीकी जानकारी दी जाती है जो की पूरी तरह से निशुल्क होती है।
सवाल -5 क्या किसान 'नेचुरल ग्रीन हाउस' मॉडल को देखने समझने कोंडागांव आ सकते हैं और क्या इसका कोई शुल्क भी है? इसके लिए कैसे संपर्क किया जा सकता है?
जवाब : किसानों के लिए "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर" भ्रमण पूरी तरह से *निशुल्क है। डॉ त्रिपाठी अपने सफलता के गुर को अन्य किसानों के साथ बांटने को सदैव तत्पर रहते हैं तथा उनके फार्म पर प्रतिदिन देश के विभिन्न भागों से तथा विदेशों से भी किसानों आना लगा रहता है।
इसलिए कृपया फोन क्रमांक 0771-2263433 (सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे के बीच) अथवा +91-9525265105 पर संपर्क कर आप फार्म भ्रमण आने के कार्यक्रम की तिथि व निर्धारित समय के संबंध में अग्रिम चर्चा अवश्य कर लेवें । ताकि भ्रमण कार्यक्रम का समुचित समन्वय और आपके लिए जरूरी मार्गदर्शन की अग्रिम व्यवस्था की जा सके। किसान निशुल्क जानकारी हेतु website www.mdhherbals.com तथा ईमेल [email protected] के जरिए भी इनसे संपर्क कर सकते हैं।
सवाल -6 इसे कम से कम कितने एरिया से शुरू किया जाना चाहिए?
जवाब : इस मॉडल की खासियत यह है कि यह जितने बड़े क्षेत्रफल पर किया जाएगा, लागत उतनी ही कम होगी तथालाभ अपेक्षाकृत ज्यादा होगा। क्योंकि एरिया बढ़ने से पेड़ों की संख्या भी बढ़ती है, और ज्यादा पेड़ों से और बेहतर माइक्रोक्लाइमेट तैयार होता है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है । किंतु यदि जमीन अथवा लागत की कोई समस्या हो तो न्यूनतम 1 एकड़ पर भी किया जा सकता है।
सवाल -7: इस एटी-बीपी मॉडल अथवा "नेचुरल ग्रीन हाउस" की प्रति एकड़ लागत कितनी है? और इससे सालाना आमदनी कितनी हो रही है? एक बार लगाने पर यह माडल कितने सालों तक लाभ देगा?
जवाब: दरअसल "मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म कथा रिसर्च सेन्टर" कोंडागांव द्वारा विकसित विशेष तकनीक से ऑस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च का प्लांटेशन ही 'नेचुरल ग्रीनहाउस' की तरह कार्य करता है। वर्तमान तकनीक के पोलीथीन से कवर्ड तथा लोहे के फ्रेम वाले पालीहाउस बनाने में 1 एकड़ में लगभग 40 लाख का खर्च आता है, वहीं इस "प्राकृतिक ग्रीन हाउस" के निर्माण में कुल मिलाकर प्रति एकड़ केवल " एक से डेढ़ लाख" रुपए का ही खर्च आता है। यानी कि डेढ़ लाख रुपए में पालीहाउस से हर मायनों में बेहतर ,ज्यादा टिकाऊ और शत-प्रतिशत सफल ग्रीनहाउस तैयार हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस 40 लाख रुपए प्रति एकड़ में लोहे और प्लास्टिक से बनने वाले पालीहाउस की आयु ज्यादा से ज्यादा 7 से 10 साल की होती है और फिर तो यह कबाड़ के भाव बिकता है। जबकि कोंडागांव माडल के "नेचुरल ग्रीन हाउस" बिना किसी अतिरिक्त लागत की 10 साल में 2 करोड़ तक की बहुमूल्य इमारती लकड़ी भी प्रदान करता है, इसके साथ ही प्रति एकड़ रुपए 5 लाख रुपए तक काली मिर्च से सालाना नियमित आमदनी भी मिलने लगती है। यह माडल लगभग 25-30 सालों तक बड़े आराम से लाभ देता है
इस मॉडल से प्रतिवर्ष प्रति एकड़ लाखों की आमदनी के साथ ही अन्य महत्वपूर्ण फायदों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यही कारण है कि भारत जैसे देश के किसानों के लिए और देश के लिए भी एटी-बीपी का यह 'नेचुरल ग्रीन हाउस' मॉडल आज "गेम-चेंजर" माना जा रहा है ।