छत्तीसगढ़

आंकड़ेबाजी के चलते देश की खेती-किसानी आईसीयू में - डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी

Shiv Kumar Mishra
19 Oct 2022 12:15 PM IST
आंकड़ेबाजी के चलते देश की खेती-किसानी आईसीयू में - डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी
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"खेती-किसानी अनपढ़ों का काम है" इस धारणा को तोड़ते देश के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे किसान नेता "डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी"

हमारे प्यारे देश के नीतिनिर्माता यह अच्छे से जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की बहुत बड़ी आबादी कृषि आय पर पूरी तरह से निर्भर है, लेकिन बेहद अफसोस की बात यह है कि उसके बावजूद भी आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी देश में आज भी किसानों के सामने विभिन्न प्रकार की ज्वलंत समस्याओं का अंबार लगा हुआ, आज तक भी धरातल पर किसानों की बहुत सारी समस्याओं का कोई ठोस समाधान नहीं हो पाया है। आज किसानों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर साक्षात्कार कर्ता: दीपक कुमार त्यागी वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक ने "अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)" के राष्ट्रीय संयोजक व देश के सबसे ज्यादा शिक्षित, वरिष्ठ किसान नेता डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी से विस्तार से चर्चा की, हमारे सभी सम्मानित पाठकों के लिए पेश हैं उस विस्तृत चर्चा के महत्वपूर्ण अंश -

सवाल - आपकी पारिवारिक व सामाजिक पृष्ठभूमि क्या है?

जवाब - मैं देश के सबसे पिछड़े छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर जनपद के एक बेहद ही पिछड़े आदिवासी वन ग्राम 'ककनार' में पैदा हुआ था, वहीं आदिवासी समुदाय के बीच में ही पला बढ़ा और जंगल व जड़ी बूटियों का व्यावहारिक ज्ञान मुझे मेरे इन आदिवासी गुरुओं से ही मिला था। मेरे दादाजी उन्नत खेती के जबरदस्त जानकार माने जाते थे, वह लगभग 70 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से बस्तर इसी सिलसिले में आए थे और फिर यहीं के ही होकर रह गए। खेती का ज्ञान तो हमें बचपन से ही एक तरह से घुट्टी के रूप में मिला था। वैसे तो मेरे पिता जी व चाचा जी शिक्षक थे लेकिन वह साथ में किसान भी थे। घर में मेरी अम्मा, चाची, अन्य महिलाएं व बच्चे सभी खेती में उनका पूरा हाथ बंटाते थे। आज भी हमारा 43 लोगों का संयुक्त परिवार है, जो कि मूल रूप से खेती से ही जुड़ा हुआ है। लेकिन अब हमारे "मां दंतेश्वरी हर्बल समूह" के जैविक किसानों के इस महा-परिवार में हजारों की संख्या में स्थानीय आदिवासी परिवार भी शामिल हो गए हैं, अब हमारा परिवार काफी बड़ा हो गया है। हम सभी मिल जुलकर विशुद्ध जैविक पद्धति से उच्च लाभदायक खेती के अंतर्गत स्टीविया, दालचीनी, सफेद मूसली, काली मिर्च, अश्वगंधा हल्दी, इंसुलिन पौधे, दुर्लभ व विलुप्तप्राय जड़ी बूटियों की खेती तथा बहुमूल्य इमारती लकड़ी देने वाले आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों का वृक्षारोपण कर रहे हैं। अपने से जुड़े हुए इन सभी जैविक किसानों के कृषि उत्पादों के विपणन के लिए वर्ष 2002 में हमने सहकारिता के सिद्धांत पर आधारित "सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया" (चैम्फ) नाम का एक राष्ट्रीय संगठन बनाया था। इस संगठन को वर्ष 2005 में भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के द्वारा राष्ट्रीय संगठन की मान्यता दी गयी थी। इसने लाखों किसानों की मार्केटिंग की समस्या को काफी हद तक सुलझाने का कार्य किया है। मैं वर्तमान में देश के 45 किसान संगठनों के महासंघ "अखिल भारतीय किसान महासंघ" (आईफा) का राष्ट्रीय-संयोजक हूं, सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (चैम्प) का अध्यक्ष हूं, आयुष मंत्रालय के मेडिशनल प्लांट बोर्ड का सदस्य हूं, अरोमैटिक प्लांट्स ग्रोवर एसोसिएशन ऑफ इंडिया का मेम्बर सेक्रेट्री सहित कई अन्य किसान संगठनों में अपनी भूमिका निर्वहन का ईमानदारी से प्रयास कर रहा हूं।

सवाल - एक आम धारणा बनी हुई है कि खेती-किसानी अनपढ़ों का काम है, इस पर आपके क्या विचार हैं?

जवाब - आपकी बात सही है देश में प्रायः किसानों को अनपढ़ अथवा कम पढ़ा लिखा माना जाता है, लेकिन वास्तव में धरातल पर ऐसा नहीं है, एक से एक पढ़े-लिखे विद्वान लोग खेती किसानी करते आये हैं और कर भी रहे हैं, मैंने खुद ने बीएससी (गणित) से करके, एल.एल.बी. व इंटरनेशनल कारपोरेट-ला में डिप्लोमा किया है। अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, अंग्रेजी साहित्य, हिंदी साहित्य तथा इतिहास पांच विषयों में एम ए किया व डाक्टरेट पूर्ण किया, मेरी पढ़ाई अभी भी पढाई जारी है, अब में जनजातियों के परंपरागत चिकित्सा पद्धति जैसे बेहद महत्वपूर्ण विषय पर शासकीय विश्वविद्यालय में शोधरत हूं और सरकारी बैंक की नौकरी को छोड़कर के अपने व परिवार के जीवनयापन के साथ-साथ किसानों की मदद करने के उद्देश्य से खेती-किसानी कर रहा हूं। मैंने कृषि क्षेत्र में सफलता हासिल करके देश में दशकों से बनी हुई उस धारणा को तोड़ने का कार्य किया है कि "खेती-किसानी केवल अनपढ़ों का काम है!"

सवाल - आप देश के बहुत सारे किसान संगठनों से जुड़े हुए हैं, आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी देश में आप किसानों को किस हाल में पाते हैं?

जवाब - वैसे आज हकीकत तो यहीं है कि देश में सही मायनों में कोई भी 'राष्ट्रीय किसान संगठन' नहीं हैं। तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन को छोड़ दें तो किसानों और किसान संगठनों में भी सदैव एकजुटता का अभाव ही रहता है। जो भी छिटपुट किसान संगठन सक्रिय भी रहते हैं, वह भी प्रायः स्थानीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों तक ही सीमित रहते हैं, राष्ट्रीय मुद्दों पर वह कभी भी केंद्रित नहीं रह पाते हैं। वैसे भी आज देश के सभी राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपनी वोट बैंक की राजनीति के तहत अपने-अपने अलग-अलग किसान विंग / किसान संगठन बनाकर कर देश के किसानों में गांव-गांव, मोहल्ला-मोहल्ला यहां तक कि परिवारों में भी फूट डाल दी है। इन गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए ही हमने 7-8 वर्ष पहले देश के 45 किसान संगठनों को एक साथ जोड़ते हुए राष्ट्रीय मुद्दों पर एकजुटता हेतु "अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)" का गठन किया था, जिसके अच्छे परिणाम भी आए हैं। अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर 'आईफा' ने मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में भूमि अधिग्रहण को सरल बनाने के नाम पर लाये गये नये भूमि अधिग्रहण कानून को वापस करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, बाद में कृषि कानूनों को वापस करवाने में भी अपनी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

सवाल - क्या आपको यह नहीं लगता कि देश के कुछ किसान संगठनों के नेता किसानों की समस्याओं के समाधान की आड़ में किसानों का भला करने की जगह अपना राजनीतिक हित साधने में ज्यादा व्यस्त रहते हैं?

जवाब - मैं हमेशा कहता हूं कि यह सही है कि देश के हुक्मरानों ने किसानों के साथ हमेशा दोयम दर्जे का सौतेला व्यवहार किया है, लेकिन साथ ही यह भी कटु सत्य है कि किसानों के असली दुश्मन यह हमारे मौकापरस्त किसान नेता और उनके जेबी, पिछलग्गू किसान-संगठन हैं। इन किसान संगठनों ने हमेशा किसान हितों को बेच कर अपना उल्लू साधा है। ज्यादातर किसान नेता भीतर खाने किसी न किसी राजनेता से या राजनीतिक दलों से जुड़े रहते हैं, जिसके चलते ही यह किसान नेता किसानों के आंदोलनों के समय किसानों के ज्वलंत मुद्दों के समाधान को तरजीह देने की जगह उन राजनीतिक पार्टियों की हितों की रक्षा को अपना परम धर्म व कर्तव्य मानकर कार्य करते हैं, देश की खेती तथा किसानों को ऐसे किसान नेताओं तथा इनकी गोपनीय दुरभसंधियों ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि देश के समस्त किसान अपने हितों के लिए स्वयं जागरूक बनें, आज किसानों को देश में बिके हुए किसान नेताओं और इनके बिकाऊ किसान-संगठनों को पहचान कर, इन तथाकथित किसान नेताओं की नेतागिरी चमकाने वाली खुल्ली दुकानों के चंगुल से जल्द से जल्द मुक्ति पाकर अपनी असल समस्या के निदान के लिए एकजुट होना होगा, तब ही उनकी समस्याओं का भविष्य में उचित समाधान हो पायेगा। वैसे भी देश के नीतिनिर्माताओं को किसानों की ज्वलंत समस्याओं पर राजनीतिक पैंतरेबाजी करने की जगह खुले मन से व सकारात्मक विचारों के साथ मनन करके मूल समस्या का निदान समय रहते करने की जरूरत है, तब ही देश का सर्वांगीण विकास हो पायेगा।

सवाल - आज देश में किसानों की ज्वलंत समस्याएं क्या-क्या हैं?

जवाब - भाई, आज हमारे देश में खेती-किसानी आईसीयू में पड़ी हुई है। किसानों की हालत उस मरीज की तरह से है, जिससे अगर पूछें कि भाई आपको कहां कहां दर्द है ? तो वह कराहते हुए कहता है कि जनाब शरीर में जहां भी हाथ रख दो वहां-वहां दर्द है। देश में आजादी के 75 वर्ष बीतने के बाद भी, आज भी खेती में ढांचागत निवेश आवश्यकता से बहुत ही कम हुआ है। पूर्व की सरकारों के साथ ही यह सरकार भी कृषि तथा कृषकोन्मुखी बिल्कुल भी नहीं है। केवल बड़े कारपोरेट्स, बड़े उद्योगो व चुनिंदा शीर्ष उद्योगपतियों की भलाई तथा उनकी सुरक्षा ही इनका प्रथम लक्ष्य है। आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश में हर खेत को सिंचाई, सभी को उचित मूल्य पर सही खाद, सही कीटनाशक, सही बीज की व्यवस्था, जरूरी छोटी-छोटी कृषि मशीनरी तथा नवीन तकनीकें, ग्राम पंचायत व तहसील स्तर पर समुचित भंडारण व्यवस्था तथा लघु प्रसंस्करण इकाइयों की व्यवस्था, किसान के खेतों से लेकर देश तथा विदेश के बाजार तक सशक्त लॉजिस्टिक सपोर्ट, उत्पादन का समुचित लाभकारी कारी मूल्य प्रदान करने वाली सशक्त विपणन व्यवस्था, धरातल पर हमारी फसलों को जोखिमों से वास्तविक सुरक्षा देने वाली एक सक्षम बीमा प्रणाली, पर्याप्त सरल वित्त पोषण आदि दर्जनों मुख्य समस्याएं देश का किसान लगातार झेल रहा है और वह इन छोटी-छोटी समस्याओं का निदान चाहता है, लेकिन लंबे समय से किसानों को हर सरकार में केवल और केवल झूठे आश्वासन देकर छला जाता रहा है।

सवाल - किसानों की समस्याओं का धरातल पर कारगर निदान क्या है?

जवाब - मेरा मानना है कि खेती- किसानी देश के राजनीतिज्ञों की प्राथमिकता में कभी रही ही नहीं है। सरकारी कृषि योजनाओं के निर्माण में कृषि मंत्रालयों, राज्य तथा केंद्र के सभी कृषि तथा कृषि से संबद्ध विभागों में आईएएस अधिकारियों की ही प्रमुख, अंतिम व निर्णायक भूमिका होती है। मुझे उनकी योग्यता पर कोई शक नहीं है, लेकिन यह भी तय है कि कृषि का विषय एक विशुद्ध तकनीकी तथा जमीनी प्रायोगिक विषय है और इसके लिए जमीनी तथा तकनीकी ज्ञान होना बेहद जरूरी है। यही कारण है कि पिछले 75 वर्षों में आईएएस अधिकारियों के नेतृत्व में बनाई गई राज्य तथा केंद्र की अधिकांश कृषि योजनाएं बुरी तरह से असफल हुई हैं। सरकार की इन सैकड़ों योजनाओं के बावजूद भी आज देश में खेती तथा किसानों की दशा आजादी के पहले से भी ज्यादा बदतर है। मेरी सरकार से गुजारिश है कि देश में "आईएएस" के तर्ज पर "भारतीय कृषि अधिकारी सेवा" का गठन करके कृषि विषय के वशिष्ठ जानकारों का चयन करने का कार्य तत्काल शुरू करें। वैसे भी देश में खेती तथा किसानों की दशा एवं विविध कृषि उत्पादन को लेकर फर्जी आंकड़ेबाजी पेश कर सब कुछ ठीक है, सब कुछ अच्छा हो रहा है, ऐसा झूठा माहौल तैयार करने की कोशिश लगातार की जाती है, जबकि हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। मैं कई बार कहता हूं कि मुझे लगता है कि हमारा देश विशेषकर हमारा कृषि मंत्रालय झूठे आंकड़ों के पिरामिड के शीर्ष पर विराजमान हैं, सचमुच यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है। इसके लिए जरूरी है कि आंकड़ों का शुद्धीकरण कर संशोधन किया जाए। किसानों से संबंधित समस्त योजनाएं, नियम, कानून उन्नत, अनुभवी किसानों, गैर राजनीतिक किसान संगठनों के साथ मिल बैठकर बनाई जाएं।

सवाल - "न्यूनतम समर्थन मूल्य" (एमएसपी) पर आपके क्या विचार हैं?

जवाब - एमएसपी यानि कि "न्यूनतम समर्थन मूल्य" दरअसल किसानों के लिए यह प्राण-वायु यानि कि आक्सीजन की तरह है, इसके अभाव में देश का किसान घुट-घुट कर मर रहा है। सरकार को इसके लिए एक सक्षम "एमएसपी गारंटी कानून" लाना ही होगा। आईफा पिछले कई वर्षों से इसके लिए संघर्षरत है। हमारा मानना है कि इस कानून के लागू होने से देश के खजाने पर 1 रूपए का भी बोझ नहीं पड़ेगा, बस व्यापारियों को किसान भाइयों को उनके खून पसीने की मेहनत का उचित मूल्य देना होगा, बस इतनी सी बात है। आईफा यह बिल्कुल नहीं कहती कि पूरे देश के किसानों का पूरा उत्पादन सरकार खरीदे, हम तो कहते हैं कि सरकार चाहे तो किसानों से 1 ग्राम भी अनाज ना खरीदे, आप तो बस कानून द्वारा यह सुनिश्चित कर दीजिए कि सरकार द्वारा निर्धारित "न्यूनतम समर्थन मूल्य" से कम पर कोई भी, कहीं भी न खरीदें। वैसे आज भी सरकार किसानों से जितना भी खाद्यान्न खरीदती है, वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीद करती है, यानी कि सरकार पर इस कानून को लाने से कोई बोझ नहीं पड़ने वाला। आप मेरी बात लिखकर रख लें, यह सरकार हो अथवा कोई और सरकार, सरकार को सभी किसानों को उनके समस्त कृषि उत्पादों का लाभकारी "न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून" जल्द से जल्द देना ही होगा।

सवाल - देश में किस तरह की फसलों के "एमएसपी" जरूर तय होने चाहिए?

जवाब - देश के प्रत्येक किसान द्वारा उत्पादित हर फसल का एक लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होना चाहिए। इसमें खाद्यान्न, दलहन, तिलहन ,गन्ना, कंद, मूल, फल, सब्जी, पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मसाले , नारियल, केला, औषधीय व सुगंधीय पौधे, नर्सरी सहित खेती के सभी उत्पाद शामिल होनी चाहिए।

सवाल - किसानों के हित के लिए सरकार से आपकी क्या मांग है और क्या सुझाव हैं?

जवाब - सरकार गैर राजनीतिक किसान संगठनों के साथ मिल बैठकर बात करें और किसानों के समस्त उत्पादों के लिए "न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून" का बिल शीघ्र अति शीघ्र ले आएं। देश के चुनिंदा उन्नत, अनुभवी किसानों तथा गैर राजनीतिक किसान संगठनों के साथ मिल बैठकर देश में चल रही सभी कृषि योजनाओं के वर्तमान स्वरूप , क्रियान्वयन विधि की पुनर्समीक्षा करें और इन सभी योजनाओं को धरातल पर किसानों के हित में युक्ति-युक्त, कारगर, व्यावहारिक एवं परिणाम मूलक बनाया जाए।

सवाल - आपका देश के किसानों के लिए क्या संदेश है?

जवाब - आज देश में किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बन गई है, इसके अलावा भी खेती में बहुत सारी परेशानियां हैं। इन कठिन परिस्थितियों को देखते हुए वर्तमान में देश की नई पीढ़ी खेती से दूर भाग रही है। पिछले कुछ महीनों में ही करीब 3 करोड़ लोगों ने खेती को छोड़ा है। यह स्थिति देश की खेती तथा देश दोनों के लिए बेहद चिंताजनक है।सरको योजनाओं से अगर किसानों का सचमुच में भला हो सकता था तो इन 75 सालों में हो चुका होता। इसलिए सरकार का मुंह ताकने के बजाय किसानों को अपना भला करने के लिए खुद आगे आना होगा यानी कि"अप्प दीपो भव"। कृषि में नवाचारों को अपनाना होगा। सफल किसानों से सफलता के गुर सीखने होंगे। मेरा स्पष्ट मानना है कि देश तथा पूरे विश्व में आने वाला वक्त अब खेती तथा किसानों का ही होगा। अब हमारे देश के अन्नदाता किसानों के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और हमें अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागना है। हम सब मिलजुल कर थोड़े से अतिरिक्त साहस, उद्यम, नई तकनीकों तथा कारगर सफल नवाचारों के जरिए और एक नए नजरिए से हम खेती की हारी बाजी को पलट सकते हैं।

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