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किसान नेता डॉ राजाराम त्रिपाठी का कल राजधानी में होगा नागरिक अभिनंदन और सम्मान, कोंडागांव से ही हुआ था इस 'किसान आंदोलन' का आगाज
किसान नेता डॉ. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा किसान आंदोलन में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के उपलक्ष में कल प्रदेश की राजधानी रायपुर में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में उनका नागरिक अभिनन्दन तथा सम्मान किया जायेगा। यह अभिनंदन पत्र तथा सम्मान उन्हें राजेश्री महंत राम सुंदर दास जी दूधाधारी मठ तथा डॉ केसरी लाल वर्मा, कुलपति, रविशंकर शुक्ल विद्यालय रायपुर के करकमलों से प्रदान किया जाएगा। वैसे तो इस किसान आंदोलन में मुख्य रूप से पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश सहित देश के लगभग सभी क्षेत्रों के किसानों ने सक्रिय भागीदारी की है। किंतु इस आंदोलन में छत्तीसगढ़ की महत्वपूर्ण भूमिका से भी कोई इनकार नहीं कर सकता।
हकीकत तो यहीं है की बस्तर का कोंडागांव तीन कानूनों के विरोध के आंदोलनों का न केवल उद्गम बिंदु है । वैसे तो वर्तमान किसान आंदोलन के बारे में देश को तब पता चला जब 26 नवंबर को पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली के मोर्चे बॉर्डर पर आ डटे। जबकि इन तीनों किसान कानूनो का विरोध तो इनके विधायक की शक्ल में 5 जून को जन्म के दो दिवस के भीतर ही कोंडागांव से शुरू हो गया। जबकि उस समय जानकारी के अभाव में ज्यादातर किसान संगठनों ने इन कृषि कानूनों के बारे में प्रकाशित लुभावने सरकारी विज्ञापनों से प्रभावित होकर इन कानूनों का स्वागत तक कर दिया था। किंतु 40 से अधिक किसान संगठनों की अखिल भारतीय किसान महासभा की राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी में इन कृषि बिल्स के पैदा होने की 72 घंटे के भीतर ही इनका बिंदुवार पोस्टमार्टम करके इन्हें पूरी तरह से कारपोरेट के पक्ष में गढ़ा हुआ तथा किसानों का विरोधी बताया था , इतना ही नहीं उन्होंने 16 जून 2020 को ही राकेश टिकैत जी सहित देश के प्रमुख किसान नेताओं से वर्चुअल मीटिंग करके इन कानूनों
की खामियों बारे से अवगत कराया और इनका समुचित विरोध करने को कहा था। त्रिपाठी की इस पहल तथा किसान हितों के लिए सतत संघर्ष के लिए गाजीपुर मोर्चे पर भारतीय किसान यूनियन के द्वारा उनका नागरिक अभिनंदन भी किया गया था। यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि वर्तमान किसान आंदोलन की शुरुआत के पूर्व राकेश टिकैत ,युद्धवीर सिंह जैसे प्रमुख किसान नेता कोंडागांव बस्तर आकर डॉ त्रिपाठी से गुफ्तगू कर चुके हैं।
यह देश के किसानों का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि किसान आंदोलन के पहले हफ्ते में दिल्ली से शिरकत कर कोंडागांव आते वक्त उनका भी सरकार दुर्घटना हुई जिसके कारण मजबूरी में उन्हें मोर्चे की अगुवाई से हटकर कई महीने बिस्तर पर गुजारने पड़े। बिस्तर पर से भी उन्होंने किसान आंदोलन के पक्ष में अपनी कलम से तथा वर्चुअल उपस्थिति के जरिए अपनी लड़ाई जारी रखी। गंभीर शारीरिक चोट के बावजूद छत्तीसगढ़ में 70 हजार से ज्यादा किसानों की ऐतिहासिक सफल महापंचायत के आयोजन के एक प्रमुख सूत्रधार और रणनीतिकार के रूप में भी डॉ राजाराम त्रिपाठी की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
पिछले भुमिअधिग्रहण किसान आंदोलन में डॉक्टर त्रिपाठी की निर्णायक भूमिका को जानने समझने वाले विश्लेषक आज भी यह दावा करते हैं कि अगर डॉक्टर त्रिपाठी किसान तथा सरकार की वार्ताओं में शामिल होते तो संभवत अब तक यह आंदोलन बहुत पहले ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर चुका होता और लाखों किसानों की खुली सड़क पर भीषण सर्दी, गर्मी और बरसात की मार झेलते हुए की गई साल भर तक की कठिनतम घोर तपस्या और सैकड़ों किसान भाइयों की शहादत के कलंक से सरकार और देश बच जाता।