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छत्तीसगढ़ में किसान और खेती ही हैं चुनाव का मुद्दा, ED और CBI के मुकदमे या बयान नहीं बदल पाएंगे माहौल
छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव होना है और पहले चरण का चुनाव मंगलवार 7 नवंबर को होना है. उससे ठीक पहले महादेव एप पर केंद्र सरकार ने रोक लगा दी है और ईडी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर भी 508 करोड़ रुपए के लेनदेन में शामिल होने के संकेत दिए हैं. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इसको मसला भी बनाया है. नक्सल प्रभावित राज्य में चुनाव एक चुनौती भी है, हालांकि कांग्रेस अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है, वहीं भाजपा भी इस बार राज्य में सत्ता के बदलने को लेकर आश्वस्त है. इस बीच ईडी के लगातार छापे और मुख्यमंत्री पर कसती नकेल कुछ और भी संकेत करते नजर आते हैं.
पुराना है महादेव एप का मामला
छत्तीसगढ़ में जो मुख्यमंत्री पर 508 करोड़ रुपए का आरोप लगा है, वह बहुत नयी बात नहीं है. यहां पर चर्चा पिछले 2 साल से चल रही है और महादेव एप की जो बात हो रही है, मैं बताऊं कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने इन्हीं मुख्यमंत्री के कार्यकाल में पहली बार एफआईआर दायर की थी और अब तक 450 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है. चूंकि भाजपा का जिस दिन घोषणापत्र आया और उसी दिन ईडी ने यह बात कही कि मुख्यमंत्री पर भी 508 करोड़ के लेनदेन का संदेह है, तो इसे बहुत कुछ बिगड़ने का मामला दिख नहीं रहा है. हां, बीजेपी की टाइमिंग और घटनाक्रम को देखकर लगता है कि यह प्लान भाजपा ने चुनाव के लिए नहीं किया है, बल्कि ये लग रहा है कि अगर कांग्रेस की सरकार बने भी तो भूपेश बघेल को फिर भी मुख्यमंत्री के तौर पर पीछे धकेलने की तैयारी है. छत्तीसगढ़ में पिछले एक साल से लगातार ईडी की छापेमारी हो रही है और मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द रहनेवाले जो 8-9 बड़े नौकरशाह, आइएएस थे, वो इस वक्त जेल में बंद हैं. मुख्यमंत्री के सलाहकार सौम्या चौरसिया भी बंद हैं. मुख्यमंत्री के राजनैतिक सलाहकार विनोद वर्मा और ओएसडी पर भी छापेमारी की गयी. दिक्कत ये है कि मुख्यमंत्री के सलाहकार और ओएसडी पर महादेव एप के सिलसिले में छापेमारी तो की गयी, लेकिन जब चार्जशीट दाखिल की गयी तो इनका कहीं भी नाम नहीं था. दूसरी चीज ये भी है कि यह बात सब कोई समझ रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में ईडी तो भाजपा की सहयोगी बनकर काम कर रही है. प्रधानमंत्री मोदी की सभा थी, उसमें भी चर्चा हुई. दरअसल, यह पूरा चुनाव भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़िया आवाज और पहचान बनाम भाजपा के राष्ट्रवाद से है.
छत्तीसगढ़ के चुनाव हैं अलग
छत्तीसगढ़ के चुनाव की अन्य राज्यों से तुलना करके नहीं देख सकते हैं. यहां पर धर्म का या हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा नहीं है, तो भाजपा की मुश्किल यही है कि वह कोई नया मुद्दा लेकर आए. एबीपी समेत जितने भी सर्वे हो रहे हैं, उसमें कांग्रेस आगे निकलते दिख रही है, तो जिस अस्त्र-शस्त्र का इस्तेमाल भाजपा कर रहे हैं, वो बदनाम हो चुके हैं. जिस तरह महाराष्ट्र में सरकार गिरी, बंगाल में छापेमारी हो रही है, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ हो रहा है, झारखंड में हेमंत सोरेन के साथ जो हो रहा है, भूपेश बघेल के साथ भी वही हो रहा है और यह बात जनता को लगभग समझ में आ चुकी है कि यह राजनीतिक साजिश का मामला लग रहा है और केंद्रीय एजेंसियां भाजपा की मददगार के तौर पर काम कर रही हैं. जहां तक इंडिया गठबंधन का सवाल है तो एक बात ध्यान देने की है कि बिहार में इंडिया गठबंधन के मुख्य घटक जेडीयू-आरजेडी ने जब जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए, तो कांग्रेस के राहुल गांधी उसी को मुद्दा बना रहे हैं. छत्तीसगढ़ चुनाव के दौरान वह लगातार इसको उठा रहे हैं, तो अगर कोई दिक्कत होती तो वह इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाते ही नहीं. जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है तो वह कोई आक्रामक तरीके से छग चुनाव नहीं लड़ रही है. पड़ोसी मध्यप्रदेश में भी वह सिंगरौली में गए हैं, क्योंकि वह मेयर का चुनाव जीते थे. छग में भी वह कांग्रेस का माहौल खराब नहीं कर रहे हैं. 17 नवंबर को जब चुनाव खत्म हो जाएगा, तो इंडिया गठबंधन अपनी तैयारियों में फिर भिड़ेगा.
नक्सली समस्या कम, लेकिन पूर्णतः खत्म नहीं
अभी दो दिनों पहले नारायणपुर में भाजपा के जिला उपाध्यक्ष रतन दुबे की हत्या नक्सलियों ने कर दी. यह जाहिर तौर पर खुशी की बात है कि पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या बेहद कम हुई है. भले ही इसका श्रेय कभी केंद्र तो कभी राज्य सरकार लेती है. यह निश्चित तौर पर लेकिन हमारे देश के लोकतंत्र के लिए यह अच्छे संकेत हैं कि उन जगहों पर भी बूथ बने हैं, वहां भी चुनाव हो रहा है, जहां आजादी के बाद से अब तक वोट ही नहीं पड़े थे. हालांकि, मामला तो संवेदनशील रहेगा. नक्सलियों ने चुनाव का बहिष्कार कर रखा है. पहले चरण के चुनाव में कई बूथ बेहद संवेदशील हैं और नक्सलियों ने गांववालों के साथ सुरक्षा बलों को भी धमकी दी हुई है. पहले चरण का चुनाव हो जाए सकुशल तो उसकी सच्चाई का पता भी चल जाएगा कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जिस तरह नक्सल-समस्या के खात्मे का दावा कर रहे हैं, उसकी परीक्षा हो जाएगी.
कांग्रेस के भीतर भी बघेल के दुश्मन
दरअसल, न केवल कांग्रेस के बाहर, बल्कि कांग्रेस के भीतर भी एक बड़ी लॉबी है जो नहीं चाहती है कि भूपेश बघेल दुबारा मुख्यमंत्री बनें. उनके मुख्यमंत्री बनने से एक चीज होती है, जो भाजपा की सरकार ने 15 साल तक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति कर सरकार चलाई, भूपेश बघेल ने 5 साल बहुत संघर्ष कर छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की राजनीति की. वे इसमें कितना सफल हुए, कितने असफल हुए, इसकी परीक्षा इसी चुनाव में होगी. वे अगर मुख्यमंत्री नहीं रहते हैं, तो भाजपा के लिए 2024 और 2029 की लड़ाई आसान रहेगी. छत्तीसगढ़ में तो मतदान धान के दाम और किसानों के ऊपर होता है. 80 फीसदी आबादी किसानों की है. उनको बोनस चुनावी मुद्दा है, कर्ज माफी मुद्दा है और आदिवासियों-किसानों के प्रदेश में ईडी-सीबीआई की चर्चा से कितना असर पड़ेगा. प्रदेश की बड़ी आबादी को तो पता तक नहीं है कि ईडी क्या चीज होती है. दरअसल, भूपेश बघेल को खतरा बाहर से भी है और पार्टी के अंदर से भी है. वह कांग्रेस में पिछड़ों और किसानों का बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं. चुनाव के बाद निश्चित तौर पर उनको चुनौती देने खड़े हो सकते हैं और भाजपा तो हर संभव कोशिश करेगी ही.