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महाकाल लोक कॉरीडोर और हिन्दी में एमबीबीएस कोर्स का विमोचन कार्यक्रम.... दोनों कार्यक्रमों में 10 दिन के भीतर 200 करोड़ खर्च!
विजया पाठक
प्रदेश में पिछले कुछ समय से भाजपा सरकार ने कार्यक्रमों की श्रृंखला चला रखी है। उससे एक बात तो साफ है कि हर कार्यक्रम का उद्देश्य पैसों की बर्बादी है। पहले महाकाल लोक परिसर के उद्घाटन के मौके पर 80 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च कर दी गई। उसके बाद मेडिकल की हिंदी में तैयार की गई पुस्तकों के लोकार्पण कार्यक्रम में 50 करोड़ से अधिक राशि खर्च की गई। कुल मिलाकर 10 दिन के भीतर शिवराज सरकार ने 200 करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर दी। मेडिकल की पढ़ाई को हिंदी भाषा में शुरु करने के बाद अपनी सफलता का डंका मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने देशभर में पीटा है। प्रदेश के मुखिया और उसके मंत्री शायद हिंदी भाषा में मेडिकल की पढ़ाई शुरू कर शायद इस बात से आश्वस्त हो गये हैं कि अब पूरे देश में उनकी वाहवाही होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने उनके नंबर बढ़ गये हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में प्रदेश की कमान शिवराज सिंह चौहान को ही सौंप दी जायेगी। हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई कितनी कारगर है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन अगर हम मध्यप्रदेश के इतिहास पर नजर डाले तो इससे पहले भी शिवराज सरकार ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिये तमाम तरह के कोर्स, विश्वविद्यालय आदि की शुरुआत की, लेकिन इसका परिणाम जीरो ही निकला। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर शुरू किये गये हिंदी विश्वविद्यालय की भी हालात बदतर हो चली है। स्थिति इतनी गंभीर है कि न तो शासन का और न ही सरकार का इस ओर कोई ध्यान है। अगर सरकार सच में हिंदी के लिये कोई कार्य करना चाहती थी तो सरकार को इतना भव्य आयोजन करने के बजाय एक साधारण कार्यक्रम में पुस्तकों का लोकार्पण कर देना चाहिए था, ताकि जनता की गाढ़ी कमाई से एकत्रित हुआ टैक्स का पैसा फालतू बर्बाद न होता। एक तरफ सरकार दिखावे के लिये आरबीआई से 02 हजार करोड़ का लोन लेने का आवेदन कर रखे हुए हैं, दूसरी तरफ प्रदेश के खर्चे में कोई कटौती दिखाई नहीं दे रही। आखिर पैसों की यह बर्बादी कब तक जारी रहेगी।
रोजगार कैसे होगा उपलब्ध
आज के समय में जब पूरा देश अंग्रेजी भाषा के भरोसे संचालित हो रहा है। ऐसे में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में कैसे संभव है। मान लीजिए अगर किसी तरह से बच्चा हिंदी में किताबों को रट कर डॉक्टर बन भी जाये तो दवाईयां हिंदी में होगी यह संभव नहीं है। जबकि सरकार को यह व्यवस्था बनानी चाहिए कि एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद छात्र रोजगार के लिये परेशान न हो। शासकीय भर्तियों और निजी कंपनियों, अस्पतालों में हिंदी से पढ़े छात्रों को 25 प्रतिशत आरक्षण दिलवाये, तब सही मायने में मेडिकल की हिंदी में पढ़ाई संभव है। वर्ना यह भी हिंदी विश्वविद्यालय की तरह एकमात्र दिखावा बनकर रह जायेगा।
हिंदी विश्वविद्यालय के नाम पर किया था हल्ला
वर्ष 2014 में भोपाल में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन के समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में हिंदी विश्वविद्यालय शुरू करने की घोषणा की थी। उनकी घोषणानुसार प्रदेश में विश्वविद्यालय तो स्थापित हुआ लेकिन अपनी स्थापना से पांच वर्ष तक लगातार दो कमरों में विद्यालय का संचालन हुआ। कभी किराये के कमरे में तो कभी किराये की बिल्डिंग में विश्वविद्यालय का संचालन होता रहा। यही नहीं विश्वविद्यालय ने इंजीनियरिंग, लॉ सहित कई प्रमुख विषयों की पढ़ाई हिंदी में शुरू की, जिन्हें न तो अब तक स्टूडेंट्स मिले और न ही विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिये परमानेंट प्रोफेसर हैं। आज भी विश्वविद्यालय की कक्षाएं अतिथि शिक्षकों से भरोसे संचालित हो रही हैं।
महाकाल लोक कॉरिडोर की लोकायुक्त जांच शुरू
उज्जैन के महाकाल लोक कॉरिडोर के प्रथम चरण के कामों में भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद लोकायुक्त संगठन ने जांच शुरू कर दी है। लोकायुक्त ने तीन आईएएस अफसरों के अलावा 15 अफसरों को नोटिस देकर 28 अक्टूबर तक जवाब मांगा है। शिकायत में ठेकेदार को करोड़ों का लाभ पहुंचाने के लिए एसओआर की दरें और आइटम को बदलने का आरोप लगाया गया है। महाकाल लोक कॉरिडोर बनकर तैयार ही हुआ है कि लोकायुक्त जांच प्रारंभ हो गई है। लोकायुक्त ने तीन आईएएस समेत 15 अफसरों को नोटिस दिया है। ठेकेदार को आइटम बदलकर करोड़ों का फायदा पहुंचाया है। लोकायुक्त संगठन में कांग्रेस विधायक महेश परमार ने शिकायत की है कि अफसरों ने पद का दुरुपयोग कर ठेकेदार मनोज भाई पुरुषोत्तम भाई बाबरिया को आर्थिक लाभ पहुंचाया है, जिससे शासन को राजस्व की हानि हुई। नोटिस में कहा गया है कि लोकायुक्त संगठन की जांच में प्रथम दृष्टया आरोप प्रमाणित पाए गए हैं। लोकायुक्त के नोटिस में तीन आईएएस उज्जैन कलेक्टर और स्मार्ट सिटी लिमिटेड के अध्यक्ष आशीष सिंह, उज्जैन स्मार्ट सिटी के तत्कालीन कार्यपालक निदेशक क्षितिज सिंघल और तत्कालीन नगर निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता शामिल हैं। दरअसल महाकाल लोक कॉरिडोर का काम उज्जैन स्मार्ट सिटी के द्वारा कराया जा रहा है। इसलिए उज्जैन स्मार्ट सिटी से जुड़े अफसरों को लोकायुक्त ने नोटिस थमाए हैं।