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आतंकवाद - पुलवामा और अब सुखमा बीजापुर - विजय शंकर सिंह
विजय शंकर सिंह
छत्तीसगढ़ के सुखमा बीजापुर में सुरक्षा बलों और प्रतिबंधित नक्सल गुटों के बीच हुयी मुठभेड़ में 22 सीआरपीएफ तथा अन्य पुलिस बल के जवान, कल दिनांक 4 अप्रैल 2021 को शहीद हो गए। ऐसी ही एक बडी दुःखद घटना, 2019 में जम्मूकश्मीर के पुलवामा में घट गयी थी, जब 40 सीआरपीएफ के जवानों की जान एक विस्फोट में चली गयीं थी। उस समय सीआरपीएफ का एक कनवाय अपनी कैम्पिंग स्थल बदल कर जा रहा था कि रास्ते मे आतंकवादियों ने उन पर घात लगा कर हमला कर दिया। लेकिन छत्तीसगढ़ के सुखमा बीजापुर में, सीआरपीएफ और नक्सलियों के बीच एक मुठभेड़ हुयी है, जिंसमे 22 जवान शहीद हुए हैं।
दोनो घटनाओं में कुछ समानतायें भी है।
● दोनों ही घटनाएं आतंकवाद या उग्रवाद का परिणाम है।
● दोनों ही हमलों में सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए हैं।
● दोनो ही घटनाओं में वरिष्ठ अफसरों की प्लानिंग और उसके क्रियान्वयन में, कोई न कोई त्रुटि संभावित है।
● दोनो ही घटनाएं, चुनाव के सन्निकट और चुनाव के दौरान हुई हैं।
कुछ अंतर भी है, दोनो घटनाओं मे,
● पुलवामा, विदेशी या पाकिस्तान की साज़िश थी और यह प्रतिबंधित नक्सल संघठनो की साज़िश है या कुछ और है अभी नहीं कहा जा सकता है।
पुलवामा की घटना के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है,
● पुलवामा में आतंक प्रभावित क्षेत्र से इतना लंबा सड़क का मार्ग क्यों और किसने चुना था ?
● यह लापरवाही थी या जानबूझकर कर की गयी कार्यवाही थी?
● कार किसकी थी ?
● 300 किलो विस्फोटक कहाँ से आया था ?
● खुफिया चूक थी या नहीं?
● क्या इन सब की जांच हुयी और जिम्मेदारी तय की गयी ?
● अगर जिम्मेदारी तय की गयी तो क्या दंडात्मक कार्यवाही उन अफसरों के खिलाफ की गई, जो दोषी पाए गए ?
● कहा गया था कि यह जैश ए मोहम्मद का काम था और उसने जिम्मेदारी ली भी थी, तो फिर जैश के स्थानीय सूत्र कौन थे और एनआईए ने अब तक उस तफ्तीश में क्या हासिल किया ?
सवाल और भी हैं और यह सब सवाल किसी के भी दिमाग मे उभर सकते हैं।
एक बात साफ है, शोक परेड, लास्ट पास्ट, शोक शस्त्र, रीथ या पुष्प चक्र, धीमी चाल और नम आंखे और झुकी गर्दन, यह सब तो, शहीदो का औपचारिक रुप से, अंतिम सलाम होता है। सरकार उन्हें आर्थिक सहायता भी देगी औऱ अलग से भी धन देगी। आश्रितों को नौकरी भी देगी। यह सरकार की कृपा नही उसकी जिम्मेदारी है।
सुरक्षा बलों के सभी जवान और अधिकारी, अच्छी तरह से इस प्रोफेशनल हेजर्ड यानी यह बात जानते हुए भी, कि वे जिस नौकरी में जा रहे हैं वहां वे शहीद भी हो सकते हैं, से परिचित रहते हैं। हर ऑपरेशन के पहले हर संभावना पर सोच समझ कर कदम बढ़ाया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि हर दशा में हमारे जवान कम से कम हताहत हों या बिल्कुल भी न हों। यह प्लानिंग सिपाही नही बनाता है बल्कि बड़े अफसर बनाते हैं और वे ज़मीनी हक़ीक़त, दुश्मन की ताक़त, ज़रूरी अभिसूचना और अन्य बहुत सी बातों को ध्यान में रख कर बनाते हैं।
जब तक पिछली आतंकी घटनाओं में हुई ऐसी ऑपरेशनल असफलताओं पर व्यापक जांच कर के यदि किसी की कोई गलती है तो उस पर जिम्मेदारी तय करके, दंडात्मक कार्यवाही नहीं होगी, तब तक यह घटनाएं नहीं रुकेंगी। आज श्रद्धांजलियों का जो ताता हम देख रहे हैं, वह श्मशान वैराग्य की तरह है। कुछ ही दिन में यह सब दिमाग मे दाखिल दफ्तर हो जाएगा। यह न तो पहली घटना है और न यह अंतिम है। नक्सल ऑपरेशन पिछले चालीस साल से चल रहा है। उस पर अलग से बात होगी। अगर एक योजनाबद्ध तरह से काम नहीं हुआ तो, हम ऐसे ही अपने जवान गंवाते रहेंगे।
आतंकवाद में संयोग और प्रयोग का दर्शन नही चलता है। आतंकवाद का हल सुरक्षा बल के ही बस पर नही किया जा सकता है। यह कोई परंपरागत अपराध नही है कि गिरोह खत्म और अपराध भी खत्म। नक्सलवाद जिन कारणों की उपज है, वे कारण जब तक बरकरार रहेंगे, यह हिंसक आतंकवाद चलता रहेगा। दुनियाभर में चाहे वह सबसे घातक एलटीटीई का आतंकवाद हो या तालिबान सरीखे धार्मिक मसलों पर केंद्रित इस्लामी आतंकवाद, वे सभी राजनीतिक समाधान से ही नियंत्रित हुए हैं। यह भी अपवाद नहीं है। 1980 से 96 तक पंजाब में चला खालिस्तान आंदोलन जन्य आतंकवाद भी राजनीतिक हल से ही खत्म हुआ था। आतंकवाद का हल है, उन कारणों को ही खत्म कर देना जिनसे आतंकवाद फैलता है।
मैं जवानों की शहादत के इस गमगीन मौके पर, इस घटना की लाभ हानि किसे होगी और चुनाव के समय ही पुलवामा और छत्तीसगढ़ क्यों हुआ, इस पर कोई टिप्पणी नही कर रहा हूँ। अभी जब तक छत्तीसगढ़ की घटना के बारे में सारी डिटेल सामने न आ जाय, इस विंदु पर कुछ कहना उचित नहीं होगा।
समस्त जवानों को जिन्होंने कर्तव्य की वेदी पर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है, को वीरोचित श्रद्धांजलि।
( विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे है )