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मुस्लिम वोटों के लिए इमामों की शरण में पहुंचे केजरीवाल, वेतन बढ़ाकर मांगे वोट
यूसुफ़ अंसारी, वरिष्ठ पत्रकार
आमतौर से धार्मिक मुद्दों से दूर रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनावों में मुस्लिम वोट हासिल करने के लालच में दिल्ली की मस्जिदों के इमामों की शरण में पहुंच गए हैं। इमामोंं के साथ हुई एक अहम बैठक में अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि वो पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी को केंद्र की सत्ता से बेदख़ल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैंं। केजरीवाल ने यह भी ऐलान किया कि मोदी के अलावा किसी को भी प्रधानमंत्री बनने के लिए समर्थन दे सकते हैं।
इमामों और मुअज़्ज़िनों का वेतन बढ़ाया
दिल्ली की सभी मस्जिदों के इमामों की खासतौर तौर पर बुलाई गई इस बैठक में इमामों का वेतन बढ़ाने का ऐलान किया गया। वक्फ बोर्ड के तहत आने वाली 185 मस्जिदों के इमामों को अब रु. 18000 प्रति माह वेतन मिलेगा। अभी तक उनका वेतन रु. 10000 प्रतिमाह था। जबकि मस्जिदों के मुअज़्ज़िन को अब रु. 9000 प्रतिमाह के बजाय रु. 16000 प्रतिमाह वेतन दिया जाएगा। दिल्ली सरकार ने वक्फ बोर्ड के तहत नहीं आने वाली मस्जिदों के इमामों और मुअज़्ज़िनों को भी वक़्फ़ बोर्ड के खाते से वेतन देने का फैसला किया है। ऐसी मस्जिदों के इमा को रु. 14,000 और मुअज़्ज़िन को रु. 12000 प्रतिमाह वेतन दिया जाएगा। पिछले 5 साल से इमाम वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे थे। लेकिन वक्फ बोर्ड की आमदनी कम होने की वजह से उनका वेतन बढ़ाने में दिक्ककत आ रही थी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इमामों और मुअज़्ज़नों का वेतन बढ़ा कर केजरीवाल ने मुसलमानों को खुश करने की कोशिश की है। केजरीवाल के इस फैसले को मुस्लिम तुष्टिकरण माना जा रहा है।
इमामों से की मुसलमानों के वोट 'आप' को दिलाने की अपील
इस अहम बैठक में केजरीवाल ने कहा कि लोकसभा चुनावों में दिल्ली में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच सीधा मुकाबला होगा। लिहाज़ा बीजेपी को हराने के लिए इमामों को मुसलमानों के वोट उनकी पार्टी को दिलाने में मदद करनी चाहिए। यह बैठक दिल्ली वक्फ बोर्ड की तरफ से आयोजित की गई थी और दिल्ली की सभी मस्जिदों के इमामों और मुअज़्ज़िनों को इसमें बुलाया गया था। दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन और आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने इमामों से अपील की कि वो पार्टी को मुसलमानों के वोट दिलाने में खुलेे दिल से मदद करें। उन्होंने कहा कि सभी इमाम अपने अपने इलाकों में मुसलमानों को आने वाले लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को वोट देने के लिए राज़ी करें। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि कांग्रेस की तरफ से प्रचार किया जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनावों मेें केंद्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। जबकि सच्चाई यह है कि दिल्ली में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच सीधा मुकाबला है। उन्होंने कहा कि मुसलमान आम आदमी पार्टी को वोट दें और पार्टी के जो भी सांसद जीतेंगे पार्टी उनका समर्थन केंद्र में कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए देगी।
केजरीवाल और अमानतुल्लाह के इस तरह इमामों से मुसलमानों के वोट पार्टी के लिए डलवाने की अपील करना राजनीति में धर्म का सीधा सीधा इस्तेमाल है। इसे यह भी जाहिर होता है कि केजरीवाल को लोकसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों के खिसकने का डर है। उन्हें यह डर है कि अगर मुसलमानों को यह एहसास हो गया कि केंद्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ही बीजेपी को टक्कर दे रही है तो दिल्ली के मुसलमान भी कांग्रेस की तरफ से जा सकते हैं। लिहाज़ा केजरीवाल इमामोंं का वेतन बढ़ा कर उनके जरिए मुसलमानों के वोट हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
केजरीवाल के इस रूख पर हैरत
मुस्लिम समाज के वोट हासिल करने के लिए इमामों का वेतन बढ़ाना तो ठीक है लेकिन इसके बदले उनसे मुसलमानों के वोट हासिल करने की खुली अपील करना राजनीतिक पर्यवेक्षकों को पच नहीं रहा। केजरीवाल और उनकी पार्टी के इस रुख पर हैरत हो रही है कि ये वही केजरीवाल हैं जिन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी की तरफ से मुसलमानों से उनकी पार्टी को वोट देने की अपील का कड़ा विरोध किया था। हालांकि कहा जाता है कि उस वक्त इमाम बुखारी की तरफ से यह दिल बीजेपी के इशारे पर की गई थी ताकि चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए बीजेपी को फायदा पहुंचाया जा सके। केजरीवाल को इसकी भनक लग गई थी। इसीलिए केजरीवाल ने कड़ा विरोध करके यह चाल नाकाम कर दी थी।
साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बरेली के मौलाना तौक़ीर रजा से हुई केजरीवाल की मुलाकात पर भी सवाल उठे थे। बाद में केजरीवाल ने उनसे कन्नी काट ली थी। केजरीवाल और उनकी पार्टी के तमाम नेता कहते रहे हैं कि वह धर्म और जाति की राजनीति नहीं करते। इमामों की इस बैठक में जिस तरह सीधे-सीधे मुसलमानों के वोट देने की अपील की गई है उससे आम आदमी पार्टी के राजनीतिक चरित्र के खिलाफ़ माना जा रहा है।
गौरतलब है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने से पहले मुसलमानों का वोट एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में पड़ता रहा है। लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 28 सीटें जीतकर कांग्रेस के समर्थन चाहिए सरकार बनाई थी। केजरीवाल ने 49 दिन सरकार चला कर ही इस्तीफा दे दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सातों सीटों पर दूसरे नंबर पर आई थी। कई सीटों कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत ज़ब्त हो गई थी। उसके बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थी। इन चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था।
हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में 3 में कांग्रेस की जीत के बाद पार्टी को लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। राजस्थान मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद देशभर में मुसलमानों का रुझान कांग्रेस की तरफ देखा जा रहा है ऐसे में केजरीवाल का चिंता करना लाजमी है। हालांकि आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करने को तैयार है केजरीवाल की तरफ से कांग्रेस को इस बात के संकेत भी दिए गए हैं लेकिन दिल्ली प्रदेश कांग्रेस गठबंधन के पूरी तरह खिलाफ है। राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि वह गठबंधन को लेकर पार्टी संगठन किराए के हिसाब से फैसला करेंगे। ऐसे में केजरीवाल मुस्लिम वोट अपने पाले में रखने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं।