शिक्षा

नोटबंदी और GST के असर से एमबीए और इंजीनियरिंग की डिग्रियां हुई रद्दी, नही मिल पा रही नौकरियां

आनंद शुक्ल
12 Dec 2017 11:57 AM GMT
नोटबंदी और GST के असर से एमबीए और इंजीनियरिंग की डिग्रियां हुई रद्दी, नही मिल पा रही नौकरियां
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एसोचैम ने कहा कि बिजनेस स्कूलों और इंजीनियरिंग कॉलेजों के स्टूडेंट्स को मिलने वाले सैलरी ऑफर में भी पिछले साल की तुलना में 40-50 फीसदी में कमी देखी गई है।

नई दिल्ली: द एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स ऑफ इंडिया ने बिजनेस स्कूलों को लेकर एक बड़ा खुलासा किया। बताया गया कि नोटबंदी और जीएसटी का असर एमबीए और इंजीनियरिंग के छात्रों पर पड़ा है। आधे से अधिक छात्रों को प्लेसमेंट नहीं मिल पा रही है। उद्योग संगठन एसोचैम ने कहा है कि बिजनेस स्कूलों को अपने स्टूडेंट्स को रोजगार दिलाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस कारण बाजार में रोजगार संकट बना हुआ है। एसोचैम के मुताबिक पिछले साल तक एमबीए पास करने वाले लगभग 30 फीसदी लोगों को नौकरी मिल जाती थी लेकिन नवंबर 2016 के बाद इसमें गिरावट आई है।

बताया कि मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग कॉलेजों के विद्यार्थियों को मिलने वाले सैलरी पैकेज में भी नोटबंदी के बाद पिछले साल की तुलना में 40 से 45 फीसदी की कमी आयी है। अखिल भारतीय तकनीकि शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के आंकड़ों के मुताबिक शैक्षणिक वर्ष 2016-17 के दौरान देश में 50 फीसदी से अधिक एमबीए डिग्रीधारियों को नौकरी नहीं मिल सकी। एमबीए डिग्रीधारियों के साथ-साथ यही हाल इंजीनियरिंग डिग्रीधारियों का भी है।यही वजह है कि अब लोग इंजीनियरिंग से भी मुंह मोड़ने लगे हैं और इंजीनियरिंग कॉलेजों में आधी से ज्यादा सीटें खाली रह रही हैं। द एसोचैम एजुकेशन काउंसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद, कोलकाता, लखनऊ जैसे शहरों में 250 से ज्यादा बी-कैटगरी के बिजनेस स्कूलों पर साल 2015 के बाद से ताला लटक चुका है।

बीते वर्ष में लगभग 30 प्रतिशत स्टूडेंट्स को जॉब का ऑफर मिला था। एसोचैम ने कहा कि बिजनेस स्कूलों और इंजीनियरिंग कॉलेजों के स्टूडेंट्स को मिलने वाले सैलरी ऑफर में भी पिछले साल की तुलना में 40-50 फीसदी में कमी देखी गई है। इनमें से अधिकतर के लिए नौकरी नही थी। बीते वर्ष देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों से निकलने वाले छात्रों का भी काम के प्रति यही हाल रहा है। इस साल इंजीनियरिंग कॉलेजों में आधी से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं।

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