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Bachpan Bachao Andolan:'सुरक्षित बचपन दिवस' पर विशेष, बाल मजदूर बनने से बचा मासूम सुहेल बुन रहा भविष्य के सपने
Bachpan Bachao Andolan: साल 2023 नई उम्मीदों, सपनों और उमंगों के साथ हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। हर किसी के मन में उत्साह और उत्सव सा माहौल है। इसके कई कारण है और सबसे पहला तो यह कि कोरोना जैसी महामारी से आजादी। हालांकि खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं और सावधानी जरूरी है। नए साल के जश्न को सबने अपने-अपने अंदाज में मनाया है। कुछ नए इरादों और वादों के साथ।
ऐसे ही जश्न मनाने वालों की सूची में एक नाम 14 साल के छोटे बच्चे का भी है। दरअसल, यह बच्चा सुहेल(बदला हुआ नाम) चाइल्ड ट्रैफिकर्स के चंगुल में फंस गया था और बाल मजदूरी के दलदल में धंसने जा रहा था लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। इस मासूम को बाल मजदूरी के नर्क में जाने से पहले ही बचा लिया गया।
आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छूटी
यह दास्तां है बिहार के नालंदा जिले के बिहारशरीफ के रहने वाले सुहेल की, जो कि एक गरीब परिवार से है। आर्थिक तंगी के चलते सुहेल को पांचवीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। वह पढ़ना चाहता था लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। सुहेल के पिता टीबी की बीमारी के चलते काम करने में असमर्थ थे और मां दूसरों के घरों में काम करके किसी तरह घर का गुजारा चलाती थी। एक तरफ पढ़ाई छूटने की तकलीफ तो दूसरी तरफ यह चुनौती कि 14 साल की उम्र में कुछ पैसे कैसे कमाए जाएं? ताकि घर चलाने के लिए मां की मदद कर सके।
चाइल्ड ट्रैफिकर्स का सबसे बड़ा हथियार
गरीबी एक ऐसी मजबूरी है, जो चाइल्ड ट्रैफिकर्स का सबसे बड़ा हथियार बन जाती है। सुहेल पर भी उसके पास के गांव में रहने वाले एक चाइल्ड ट्रैफिकर की बुरी नजर पड़ गई। छोटू खान नाम का यह चाइल्ड ट्रैफिकर बच्चों को बिहार से ले जाकर राजस्थान के जयपुर में चूड़ी कारखानों में लगा देता था। बच्चे बंधुआ मजदूरों की तरह काम करने को मजबूर होते थे। खाने के नाम पर जूठन या बहुत ही घटिया स्तर का खाना मिलता था। छोटी-छोटी गलती पर बुरी तरह से मारपीट की जाती थी।
जयपुर में चूड़ी कारखाने में करना था काम
सुहेल की किस्मत में भी कुछ यही होने जा रहा था। छोटू खान अपने बुरे इरादों के साथ सुहेल के घर आता है और उसके मां-बाप को लालच देता है कि अगर वह जयपुर चलकर काम करेगा तो नौ हजार रुपए हर माह मिलेंगे और अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकेगा। यही नहीं, आरोपी ने सुहेल के घरवालों को नकद पांच हजार रुपए भी दिए। एक-एक रोटी के लिए जीतोड़ मेहनत करने को मजबूर परिवार छोटू खान के झांसे में आ गया और अपने मासूम को भेजने के लिए जारी हो गया। 14 साल का सुहेल घर की स्थिति अच्छी तरह से जानता था वह चाहकर भी मना नहीं कर सका। इस तरह एक बच्चा अपना बचपन खोने और बाल मजदूरी के दलदल में धंसने की ओर कदम बढ़ा चुका था। 16 जुलाई, 2022 को सुहेल को लेकर ट्रैफिकर छोटू खान जयपुर जाने वाली जियारत सुपरफास्ट ट्रेन में चढ़ चुका था।
'बचपन बचाओ आंदोलन' की सक्रियता से बचा
इस बीच, नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित 'बचपन बचाओ आंदोलन' की जयपुर टीम को यह सूचना मिल चुकी थी एक ट्रैफिकर बच्चे को लेकर जयपुर आ रहा है। ये सुहेल की किस्मत बदलने की दिशा में पहला कदम था। बचपन बचाओ आंदोलन(बीबीए) की टीम ने रेलवे सुरक्षा बल(आरपीएफ) और एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट(एएचटीयू) के साथ मिलकर जियारत सुपरफास्ट ट्रेन में छापेमारी की योजना तैयार की। एक-एक डिब्बे की खाक छानती इस टीम को आखिर में कामयाबी मिल गई। सुहेल अपने ट्रैफिकर के साथ एक डिब्बे में मिल गया। टीम ने सुहेल को रेस्क्यू किया और ट्रैफिकर छोटू खान को तुरंत ही गिरफ्तार कर लिया गया।
फिर पढ़ाई की ओर लौट आया सुहेल
इस तरह, एक मासूम का बचपन बर्बाद होने से बच गया। आज सुहेल अपने गांव में परिवार के साथ रह रहा है और गांव के ही प्राथमिक स्कूल में पढ़ाई कर रहा है। 'बचपन बचाओ आंदोलन' की टीम के प्रयासों से अब सुहेल और उसके परिवार को सरकार की लाभार्थी स्कीम से भी जोड़ा गया है ताकि उनकी आर्थिक दिक्कतें कम हो सकें। आज जब 11 जनवरी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के जन्मदिन को पूरे देश में 'सुरक्षित बचपन दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है तो ऐसे अनेक सुहेल की कहानी पढ़ना लाजिमी है जिनके जीवन को कैलाश सत्यार्थी के प्रयासों से एक नई जिंदगी मिली है।