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ऑक्सीजन को लेकर SC की ऑडिट टीम की रिपोर्ट में किया बड़ा दावा, केजरीवाल सरकार पर उठाये गंभीर सवाल
दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर भले ही रफ्तार कम कर ली है लेकिन अभी भी लापरवाही करने पर अपने गिरफ्त में ले सकती है वही कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यों में कहर बहुत कहर ढाया और ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों का मौत का सामना करना पड़ा है। दिल्ली में कोरोना वायरस की दूसरी लहर चरम पर थी तो दिल्ली सरकार ने केन्द्र सरकार से ज्यादा मात्रा में आक्सीजन कि डिमांड की थी। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आक्सीजन की कमी को देखते हुए खुद ही इस मामले को संज्ञा में ले किया और एक ऑक्सीजन ऑडिट टीम तैयार कि।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित ऑक्सीजन ऑडिट टीम की रिपोर्ट से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार पर गंभीर सवाल उठे हैं. ऑडिट टीम की रिपोर्ट ने ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर दिल्ली सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. दरअसल, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 25 अप्रैल से 10 मई के बीच कोरोना वायरस की दूसरी लहर चरम पर थी उस दौरान दिल्ली सरकार ने जरूरत से चार गुना ज्यादा ऑक्सीजन की डिमांड की थी
पैनल की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली को उस वक्त करीब 300 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत थी, मगर दिल्ली सरकार ने मांग बढ़ाकर 1200 मीट्रिक टन कर दी थी। ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दिल्ली की अत्यधिक मांग के कारण 12 अन्य राज्यों को ऑक्सीजन की भारी कमी का सामना करना पड़ा क्योंकि अन्य राज्यों की आपूर्ति दिल्ली की ओर मोड़ दी गई थी।
टास्क फोर्स ने कहा है कि 29 अप्रैल से 10 मई के बीच दिल्ली में ऑक्सीजन की खपत को लेकर कुछ अस्पतालों द्वारा रिपोर्टिंग में बड़ी गलतियां की गई थीं जिसे सही करना पड़ा। दिल्ली सरकार ने दिखाया कि अस्पतालों द्वारा वास्तविक मांग 1140 मीट्रिक टन की थी। जब इस रिपोर्ट में सुधार किया गया तो यह जरूरत घटकर 209 मीट्रिक टन पर आ पहुंची।
हालांकि, दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह ने 12 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया था और ऑक्सीजन वितरण प्रणाली पर पैनल से ऑडिट रिपोर्ट मांगी थी। ऑडिट के दौरान ऑक्सीजन टास्क फोर्स ने पाया कि 13 मई को दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में ऑक्सीजन टैंकरों को नहीं उतारा जा सका, क्योंकि उनके टैंक पहले से ही 75% से अधिक क्षमता पर थे। यहां तक कि एलएनजेपी और एम्स जैसे सरकारी अस्पतालों में भी ऑक्सीजन टैंक भरे पड़े थे।