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दिल्ली दंगों पर किताब और भगवा राजनीति का कच्चा चिट्ठा
संजय कुमार सिंह
द टेलीग्राफ में आज प्रकाशित फिरोज एल विनसेन्ट की रिपोर्ट का अनुवाद। अंग्रेजी में प्रकाशित इस रिपोर्ट का लिंक कमेंट बॉक्स में है। अखबार में इस खबर का जो शीर्षक है वह हिन्दी में कुछ इस तरह होता – (फ्लैग शीर्षक), "तब और अब, दो विवरण"। "एक पुस्तक पर बवाल, पूर्व की रोशनी में"। अखबार में यह खबर पहले पन्ने पर शुरू होकर अंदर, दो हिस्से में है। इसलिए लिंक ऑनलाइन एडिशन का। ऑनलाइन एडिशन के इस शीर्षक को हिन्दी में लिखा जाता तो होता, "दंगे पर किताब लेखक के परस्पर विरोधी रुख"।
दिल्ली दंगों पर हाल में आई और वापस ले ली गई पुस्तक, 'दिल्ली रायट्स 2020 : दि अनटोल्ड स्टोरी' के लेखकों में से (कम से कम) एक जो अभी पुस्तक वापस लेने का विरोध कर रही हैं, पूर्व में एक अन्य पुस्तक के खिलाफ मुकदमा लड़ने में सहायता कर चुकी हैं जिसके परिणामस्वरूप वह पुस्तक वापस ले ली गई थी।
दंगों पर इस पुस्तक के तीन लेखकों ने 03 सितंबर (गुरुवार) को दिल्ली के पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव से मुलाकात की और ब्रिटिश प्रकाशक ब्लूम्सबरी के खिलाफ पुस्तक वापस लेने की शिकायत दर्ज कराई। यह शिकायत कई अन्य लेखकों, प्रकाशनों और ऐक्टिविस्टों के भी खिलाफ है। इन लोगों के पुस्तक के बायकाट की अपील की थी।
ब्लूम्सबरी ने अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा और दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षिकाओं, प्रेरणा मल्होत्रा और सोनाली चैताल्कर की पुस्तक, 'दिल्ली रायट्स 2020 : दि अनटोल्ड स्टोरी' को गए महीने वापस ले लिया था। इससे पहले ये आरोप लगे थे कि पुस्तक में दंगा पीड़ितों को गलत ढंग से दंगाइयों के रूप में पेश किया गया है। इसके परिणामस्वरूप अभिव्यक्ति की आजादी पर जनता में चर्चा छिड़ गई थी। पर लेखकों में से एक, मोनिका अरोड़ा ने एक अन्य पुस्तक के मामले में अलग ढंग से तर्क किए थे।
तब अरोड़ा ने हिन्दुत्व ऐक्टिविस्ट दीनानाथ बत्रा का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने 2010 से एक कानूनी युद्ध छेड़ रखा था जो अमेरिकी विद्वान, वेन्डी डोनिगर की पुस्तक, 'द हिन्दूज : ऐन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' को वापस लिए जाने के लिए था। 2014 में प्रकाशक ने भारतीय संस्करण को वापस लेकर रद्दी करने की सहमति दे दी थी और वे भारतीय दंड विधान की धारा 295ए के तहत जोखिम लेना नहीं चाहते थे। इसके तहत धर्म के अपमान को अपराध माना जाता है।
गए महीने दंगे पर पुस्तक को वापस लिए जाने के बाद से लेखक के समर्थकों ने पुस्तक के आलोचकों पर हमला करने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल शुरू किया है। बेशक मोनिका अरोड़ा किसी भी क्लाइंट का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं और यह जरूरी नहीं है कि क्लाइंट की ओर से दिए गए तर्क से अधिवक्ता के निजी विचार का पता चले।
हालांकि, बत्रा की वकील के रूप में अरोड़ा ने 2004 में पेंग्विन इंडिया मामले के निपटारे के बाद जो बयान जारी किया था वह अब उल्लेखनीय है। बयान में कहा गया था (अनूदित), "लिन्च करने वाली यह भीड़ और असहिष्णु छद्म धर्मनिरपेक्ष अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर चीख चिल्ला रहे हैं और बदनाम करने की आजादी मांग रहे हैं .... इस असहिष्णु वर्ग का एक लक्ष्य है, असहमति दिखाने वाले हर किसी को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धिक्कारना।"
मोनिका अरोड़ा 2003 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार थीं। पुस्तकों की वापसी पर द टेलीग्राफ ने उनसे 2014 तथा 2020 के उनके तर्कों के विरोधाभास पर कुछ सवाल पूछे थे पर इतवार शाम तक उनका जवाब नहीं आया।
दिल्ली दंगों पर पुस्तक एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट है। ग्रुप ऑफ इंटेलेक्चुअल्स एंड ऐकेडमिशियंस (जीआईए) की पहल पर अरोड़ा, मल्होत्रा और चैतालकर ने इसे लिखा था जिसे गृहमंत्रालय को मार्च में सौंपा गया था। गए साल दिल्ली में नई नागरिकता व्यवस्था के खिलाफ शुरू विरोध को दिल्ली दंगों का कारण बताया गया था जिसमें 53 लोगों की जांन गई थी।
जीआईए ने पूर्व में एक विवादास्पद रिपोर्ट तैयार की थी जो 2018 में जम्मू के कठुआ में आठ साल की एक लड़की के गैंग रेप और हत्या से संबंधित थी। इस मामले में आरोपी हिन्दू और पीडिता मुसलमान थी। रिपोर्टर लिखने वालों में अरोड़ा और चैतालकर शामिल हैं। इन लोगों ने दावा किया था कि मामला गैंग रेप का नहीं है और अभियुक्तों को पुलिस ने यातना दी थी तथा परेशान किया था।
पुलिस ने इन आरोपों का खंडन किया था और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का उल्लेख किया था जिसमें गैंग रेप की पुष्टि हुई थी। 2019 में आरोपियों में तीन को गैंग रेप और हत्या की सजा हुई और तीन अन्य को सबूत मिटाने की।
इस पृष्ठभूमि में दंगे पर पुस्तक के लोकार्पण की खबर आई तो ब्लूम्सबरी के कई पूर्व लेखकों ने विरोध किया और खुद को प्रकाशक से अलग करने की घोषणा की। बाद में ब्लूम्सबरी ने पुस्तक वापस लेने की घोषणा की। आधार यह था कि लेखकों ने ऑनलाइन लोकार्पण का आयोजन उसे सूचित किए बगैर किया था।
और इसमें ऐसे लोगों की भागीदारी होनी थी जिन्हें प्रकाशक ने स्वीकार नहीं किया होता। वर्चुअल लांच में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्य सभा सदस्य भूपेन्द्र यादव ने पुस्तक जारी की थी और इस मौके पर पार्टी नेता कपिल मिश्रा भी मौजूद थे। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने उन्हें दंगा उकसाने वाला खास व्यक्ति कहा है। लेखकों ने लोकार्पण आयोजन के संबंध में ब्लूम्सबरी के दावे को नहीं माना है।
एक असामान्य कदम के तहत पुलिस आयुक्त द्वारा प्राप्त की गई शिकायत में लेखकों ने कहा है, सोशल मीडिया, खासकर ट्वीटर पर एक जहरीला अभियान चला जिसमें अर्बन नक्सल गैंग के रूप में ज्ञात व्यक्तियों / प्रचारकों के इस समूह ने साजिश कर पुस्तक को नष्ट करने का अभियान चलाया और दबाव डालकर, डरा कर तथा ब्लैकमेल कर प्रकाशक को प्रभाव में लिया। आगे आरोप लगाया गया है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की सोशियोलॉजी की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने चोरी की चीज अवैध ढंग से प्राप्त की और अपने पास रखा। इसके जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि नंदिनी ने पुस्तक पढ़ ली थी और उन्हीं ने दोष निकाला था।
नंदिनी ने पूर्व में लेखकों को नोटिस भेज कर उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया था। इसके बाद से अनजान सूत्रों ने इस पुस्तक की पांडुलिपि को शिक्षण समुदाय में खूब आराम से बांटा और प्रसारित किया। अपने नोटिस में नंदिनी ने पुस्तक द्वारा कथित झूठ का प्रचार किए जाने के संबंध में निम्नलिखिल वाक्य का उल्लेख किया था, भारत तोड़ने के जाने-माने प्रचारकों में एक प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने अब बंद हो चुके तिरंगा टीवी चैनल पर एक इंटरव्यू में करण थापर से कहा था कि वे नस्ल/जाति और धर्म के आधार पर भारत को छोटे स्वतंत्र राज्यों में तोड़ने के पक्ष में हैं।
नंदिनी ने फेसबुक पर लिखा था, मैंने करण थापर को तिरंगा पर या कहीं और कभी कोई इंटरव्यू नहीं दिया है कि मैं भारत को नस्ल/जाति और धर्म के आधार पर छोटे स्वतंत्र राज्यों में तोड़ने के पक्ष में हैं। गुरुवार को पुलिस से की गई लेखकों की शिकायत में उनपर लगाए गए इस आरोप का उल्लेख करते हुए नंदिनी ने फेसबुक पर लिखा, पुस्तक की सामग्री के संबंध में ट्वीट और न्यूज रिपोर्ट 22 अगस्त से आते रहे हैं जब समारोह के मुख्यअतिथि ने खुद ट्वीट किया था, यह पुस्तक अब सार्वजनिक है। ये रिपोर्ट चोरी की सामग्री पर आधारित हैं कि नहीं इसका फैसला करने के लिए मोनिका अरोड़ा सबसे उपयुक्त थीं। पर खबर लिखने तक उन्होंने शांत रहने का चुनाव कर रखा है।
नंदिनी ने आगे लिखा है, अगर अरोड़ा या ब्लूम्सबरी ने (गुरुवार तक) किसी चोरी की शिकायत नहीं की है तो इसे अधिकारियों की जानकारी में लाने के लिए मैं उपयुक्त कानूनी कार्रवाई करूं इससे मेरा क्या मतलब है? पुलिस को दी गई शिकायत को लेखकों ने ट्वीट किया है। उसमें कहा गया है कि नंदिनी को चोरी की सामग्री की जानकारी अधिकारियों की देनी चाहिए थी। गुरुवार की पोस्ट में नंदिनी ने इस बात को रेखांकित किया था कि मोनिका अरोड़ा ने उस समय तक उनके नोटिस का जवाब नहीं दिया था और ना ही उनकी बातों से इंकार किया था।
नंदिनी ने लिखा है, खास बात यह है कि सुश्री अरोड़ा इस बात से इनकार नहीं करती हैं कि चोरी की पुस्तक में मेरे बारे में गलत बयानी है जो कानून का उल्लंघन है। इसके बावजूद, एक संयमित तरीके से मैंने उनकी जानकारी में ला दिया था। उसपर यह प्रतिक्रिया (पुलिस में शिकायत) हंसने लायक है।