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सीएए, एनपीआर,एनआरसी कानून देश के बहुसंख्यक वर्ग को डिटेंशन सेंटर में जर्मन के यहूदियों की तरह कत्लेआम करने की साजिश
भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 CAA पास किया है. जो कि देश के लोगों पर भेदभाव पूर्ण तरीके से लागू करने की योजना है. इस प्रक्रिया में तहत राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(NPR) जो कि देश व्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(NRC) के लिए पहला कदम है, जो भारत के बहुसंख्यक वर्ग के लिए विनाशकारी साबित होगा. जहां डॉ. बाबा साहब अंबेडकर का संविधान हमें समस्त संवैधानिक अधिकार देने का गारंटी देता है वही यह कानून भेदभाव पूर्ण तरीके से हमारे अधिकार छिन्न लेगा.
जब इस कानून का इस्तेमाल असम में किया गया था तब 19 लाख में लगभग 70% महिलाएं थी जिनके पास नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं थे| इस कानून को लागू करने से चरमराई हुई अर्थव्यवस्था देश के लोगों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा. भारत सरकार ने असम में एनआरसी लागू करने के लिए पिछले 10 साल में 1200 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है | जब इसे राष्ट्रीय स्तर पर 133 करोड लोगों पर लागू किया जाएगा तो इसका खर्च 55 हजार करोड़ रुपए से अधिक भार भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा| जिन लोगों को अप्रवासी घोषित किया जाएगा उनको डिटेंशन शिविर बनाने का खर्चा लगभग 20 हजार करोड रुपए का आएगा.
भेदभाव पूर्ण तरीके से घोषित किए हुए गैर नागरिकों को डिटेंशन सेंटर में रखने का प्रतिदिन का खर्चा हजारों करोड़ रुपए होगा| जो कि भारत की डूबी हुई अर्थव्यवस्था को बर्बाद करके रख देगा. यह कानून देश के बहुसंख्यक वर्ग के लिए विनाशकारी साबित होगा. खासतौर पर वे लोग ज्यादा प्रभावित होंगे ज़िनका कभी पढ़ाई से सरोकार नहीं रहा, जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप रहा हो, घुमक्कड़ जनजातियां, वनवासी, आदिवासी तथा वे समस्त नागरिक जिनके पास पैतृक संपत्ति का कोई वास्ता नहीं रहा हो|आवश्यक दस्तावेज के अभाव में संदिग्ध नागरिक घोषित करके देश से बाहर करने की साजिस है.
भारत के लोगों को ही नागरिकता सिद्ध करने के लिए नौकरशाही व्यवस्था से गुजरना पड़ेगा. ज़िसमें आर्थिक दृष्टि से मजबूत वर्ग भ्रष्ट तरीके से नागरिकता हासिल कर लेगा एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग जिसमें अधिकांशत 23 करोड से अधिक दलित समाज, 13 करोड से अधिक भारत की जनजातियां , 55 करोड से अधिक पिछड़ा वर्ग, 21 करोड़ मुस्लिम वर्ग, खानाबदोश , आदिवासी अक्सर सरकारी कागजों से बाहर रहे हैं. यूनिसेफ के अनुसार 3.1 करोड़ ऐसे अनाथ परित्यक्त बच्चे हैं जिनके पास उनके माता-पिता के कोई आवश्यक दस्तावेज नहीं है. भारत में कुल जनसंख्या के 42% अर्थात 51.5 करोड़ लोग ज़िनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. भारत में कुल आबादी के 27 करोड से अधिक लोग ऐसे हैं जो पढ़ लिख नहीं सकते. भारतीय जनता पार्टी ने सीएए, एनपीआर, एनआरसी को खुले तौर पर मुस्लिम विरोधी दिखाने का प्रयास किया है. जो कि छुपा हुआ एजेंडा है. वास्तविकता में यह दलित आदिवासी जनजातियां पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों को को संवैधानिक अधिकारों से वंचित करके देश से बेदखल करने का एक षड्यंत्र है .
आवश्यक दस्तावेजों के अभाव में डिटेंशन शिविरों में बंद कर दिया जाएगा उन्हें कुछ समय के लिए गैर नागरिक के रूप में रहने की अनुमति दी जाएगी जिनके समस्त संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा. उदाहरण के लिए जैसे वोट देने का अधिकार राशन पाने का, मनरेगा का लाभ उठाने का, गैस कनेक्शन, फोन कनेक्शन, बैंक में खाता एवं तमाम सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं से वंचित कर दिया जाएगा. देश के बहुसंख्यक वर्ग को पूंजीपतियों के अधीन सरकारी एजेंसियों के रहमो करम पर जीना पड़ेगा. इस कानून से देश में व्यापक स्तर पर अपराध बढेगा. यह कानून जर्मनी की फासीवादी इतिहास को याद दिलाता है. जिस तरह हिटलर का न्यूरेमबर्ग कानून के तहत यहूदियों से उनकी नागरिकता छीन ली थी और उन्हें यातना शिविरों में रखकर जहरीली गैस छोड़ कर मार डाला गया था. नाजी यहूदियों के खिलाफ सामूहिक हत्याकांड को व्यापक स्तर पर अंजाम दिया गया था.
आज फिलहाल देश में भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) की विचारधारा की तर्ज पर काम कर रही है. उस समय जर्मनी में फासीवादी ताकतों द्वारा खुलेआम यहूदियों यातना शिविर बनाकर जहरीली गैस में मारने के मामले सामने आए थे तब तत्कालीन आर.एस.एस प्रमुख गोलवलकर ने इसे नस्ली गौरव का सर्वोच्च रूप बताकर यहूदियों से देश को शुद्ध करने के लिए नाजी जर्मनी की प्रशंसा की थी. उन्होंने हिटलर की नस्लवादी नीतियों न्यूरेमबर्ग कानून के लिए कहा था यह हमारे सीखने और लाभ उठाने के लिए अच्छा सबक है. गोलवलकर ने कहा था कोई भी भारतीय जो हिंदू नहीं है वह देशद्रोही है और भारत में गैर हिंदू होना देशद्रोह है | नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह दोनों ही आरएसएस की विचारधारा से ताल्लुक रखते हैं. देश पर संघ के नियमों को थोपना चाहते हैं. जिस तरह हिटलर की नीतियों के चलते नाजियों द्वारा 16 लाख से अधिक यहूदियों को सुनियोजित तरीके से न्यूरेमबर्ग कानून के तहत व्यापक स्तर पर हत्याकांड को अंजाम दिया गया था उसी तरह सीएए, एनपीआर, एवं एनआरसी नागरिकता कानून के तहत देश के बहुसंख्यक वर्ग को गैर नागरिक जिम्मेदार देकर उनको डिटेंशन सेंटर में रख कर उनको खत्म करने की साजिस है.
लेखक डॉ. अनिल कुमार मीणा प्रभारी दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस असिस्टेंट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय