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दिल्ली के अस्पताल से गायब कोरोना मरीज की मिली लाश, पति तीन दिन से तलाश रहा था अपस्ताल में
दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों में से एक पूर्वी दिल्ली या यमुना पार के गुरुतेग बहादुर अस्पताल का यदि एक चक्कर लगा लें, भरोसा रखें आप खुद चाहेंगे कि क्या करेंगे इस संसार में जी कर। कोई संवेदना नहीं, कोई दर्द नहीं, जिम्मेदारी तो है ही नहीं- निर्विकार घूमते छोटे कर्मचारी, रोते बिलखते लोग, गरीब मजलूम।
धरती पर साक्षात नरक है अस्पताल का मुर्दा घर। कई लोग सात दिन से इंतज़ार में है कि उनके घर वालों की लाश मिल जाये। अस्पताल का कहना है कि मुर्दे की जांच हो रही है। यदि कोविड हुआ तो अंतिम संस्कार हम करेंगे। सात दिनों से रिपोर्ट नहीं और घर वालों के आंसू सूख गए।
यह घटना तो कोताही और साजिश का चरम है-
झिलमिल इलाके की निवासी 53 वर्षीय सुमन वर्मा बीते 15 अप्रैल को संक्रमित होने के बाद जीटीबी अस्पताल में भर्ती हुई थीं। उनके पति कमल वर्मा ने ही बताया कि उन्होंने अंतिम बार अपनी पत्नी को शुक्रवार रात डेढ़ बजे अस्पताल में देखा था।
उस दौरान वह कोविड वार्ड में भर्ती की जा रही थीं लेकिन अगले दिन सुबह जब वे अपनी पत्नी की तबीयत के बारे में पूछने आए तो पता चला कि कागजों पर उनका नाम ही नहीं है। यह सुन वह घबरा गए। शाम तक अस्पताल में कभी इधर तो कभी उधर विभागों के चक्कर लगाने के बाद उनसे कहा गया कि शायद आपकी पत्नी अस्पताल से भाग गई हैं।
यह सुन कमल वर्मा का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने पूछा कि आखिर अस्पताल से कैसे कोई भाग सकता है और उनकी पत्नी को भागने की क्या जरूरत है? संक्रमित मरीज को कोविड वार्ड में रखा जाता है तो ऐसे कोई मरीज कैसे भाग सकता है?
बहरहाल इन सवाल के जवाब उन्हें नहीं मिले। अगले दिन रविवार को भी कमल वर्मा अस्पताल में कभी स्वास्थ्य कर्मचारी तो कभी एंबुलेंस वाले और बाकी तीमारदारों को फोटो दिखाते हुए पूछते रहे, भाई साहब, ये मेरी पत्नी हैं। क्या आपने इन्हें कहीं देखा है? यहीं अस्पताल में ही भर्ती कराया था। उसके बाद भी सुमन का कुछ पता नहीं चला।
तीसरे दिन मिला पत्नी का शव
दो दिन से अपनी पत्नी की तलाश करने वाले कमल वर्मा तीसरे दिन सोमवार को भी अस्पताल में अपनी पत्नी का फोटो दिखाते हुए पूछताछ कर रहे थे। इसी बीच उन्हें पता चला कि मोर्चरी में तीन शव हैं जिनकी पहचान नहीं हुई है। वहां एक बार देख लीजिए। कोरोना शवों को देखना भी संभव नहीं है। ऐसे में कमल वर्मा ने काफी प्रयास के बाद जब वहां जाकर देखा तो उनके होश ही उड़ गए। पत्नी सुमन वर्मा का शव पीपीई किट में लिपटा हुआ उनके सामने था।
मुर्दाघर की तरफ कई लोगों का आरोप है कि उन्हें यह कह कर भगाया जा रहा है कि कोविड से मरे को देखने नहीं देंगे, जबकि उनका मरीज कोविड के लिए आया ही नहीं था। वहां यह अफवाह है कि अस्पताल का स्टाफ किडनी और अन्य ऑर्गन की चोरी कर रहा है व बचने के लिए कोविड बता कर फूंक देते हैं।
अस्पताल से मोर्चरी तक पीपीई किट के पहाड़ हैं जो मुर्दों या तीमारदारों या अस्पताल वालों ने फैंके हैं। लावारिस कपड़े, जूते भी हैं। यह सब कोविड विस्तार के लिए पर्याप्त है।
अव्यवस्था अराजकता अमानवीयता के इस अस्पताल में जाने से बेहतर है घर पर ही गंगा जल कंठ में डाल कर मर जाएं।