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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में बुजुर्ग मां के पक्ष में न्याय का फैसला सुनाया है| हाई कोर्ट ने एक बेटे को अपनी मां का मकान खाली करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। बता दें कि हाईकोर्ट ने यह आदेश बेटे और बहू की ओर से मकान खाली करने के जिलाधिकारी के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जस्टिस वी. कामेश्वर राव ने 73 वर्षीय महिला के बेटे और बहू को 15 फरवरी या उससे पहले तीन सप्ताह के भीतर मकान खाली करने का निर्देश देने वाली याचिका खारिज कर दी। उन्हें यह राहत केवल इसलिए दी गई है क्योंकि उनके बच्चों की परीक्षा है।
बता दें कि इससे पहले उच्च हाईकोर्ट ने 25 जनवरी को याचिका खारिज कर दी, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 2 अगस्त, 2021 के आदेश और 10 जनवरी, 2022 के कब्जे के वारंट को चुनौती दी गई थी।
बेंच ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी 2 अगस्त 2021 के आदेश के खिलाफ संभागीय आयुक्त, अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर रहे हैं। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि संभागीय आयुक्त ने 28 अक्टूबर, 2021 को जिला मजिस्ट्रेट के अगस्त 2021 के आदेश के खिलाफ स्थगन देने की प्रार्थना को खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना है कि बहू ने एक सिविल कोर्ट के समक्ष घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक मुकदमा दायर किया है, क्योंकि उसका संपत्ति पर दावा है। साथ ही वकील ने यह भी कहा कि जिला मजिस्ट्रेट ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन में आदेश पारित किया है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं को रिकॉर्ड पर दस्तावेज दाखिल करने का कोई अवसर नहीं दिया गया था।
अपना फैसला सुनाते हुए बेंच ने जिला मजिस्ट्रेट के आदेश का जिक्र किया और कहा कि मैंने पाया कि प्रतिवादी, मां का मामला यह है कि उसकी उम्र 73 साल है और वह उस मकान (सूट की संपत्ति) की पूर्ण मालिक है। उसका एक बेटा और एक बेटी है। कोर्ट ने आगे कहा कि शादी के बाद याचिकाकर्ताओं ने उसके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। उन्होंने हर मौके पर मकान हड़पने का दबाव भी बनाया। उन्होंने तीनों संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लिया, उसे उस मकान से बाहर कर दिया।
मीडिया में छपी खबरों के अनुसार बेंच ने जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने याचिकाकर्ता के मामले को भी नोट किया कि सूट की संपत्ति वर्ष 1998 में उनके पिता जय राम सिंह और मां अंगूरी देवी ने एक साथ खरीदी थी। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि अंगूरी देवी ने याचिकाकर्ता की पत्नी गीता सिंह के पक्ष में अपनी बेटी की सहमति से मकान को 2,50,000 रुपये में बेच दिया था।
बेंच ने आदेश में उल्लेख किया कि अपीलीय प्राधिकारी प्रथम दृष्टया जिलाधिकारी के इस निष्कर्ष के आधार पर पहुंचा है कि याचिकाकर्ताओं ने अंगूरी देवी के साथ बुरा व्यवहार किया था।
अपीलीय प्राधिकारी द्वारा यह भी नोट किया गया कि याचिकाकर्ताओं के कब्जे में दो अन्य संपत्तियां हैं और इस परिस्थिति में अपील के निपटारे तक अन्य संपत्ति में स्थानांतरित होने पर उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। याचिकाकर्ताओं के पास दो संपत्तियां होने का तथ्य उनके वकील द्वारा विवादित नहीं है। उनके द्वारा किया गया एकमात्र निवेदन यह है कि याचिकाकर्ताओं के बच्चों की परीक्षा हो रही है और ऐसे में उनके लिए संपत्ति को खाली करना संभव नहीं होगा।