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महाकवि विद्यापति की जन्म स्थली को राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग तेज हुई, मैथिल प्रतिनिधियों ने मंत्री से की मुलाकात
नई दिल्ली। बिहार के दरभंगा जिले में बिस्फी गांव स्थित विश्वविख्यात कवि कोकिल विद्यापति के जन्म स्थल को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित करने की मांग तेज हो गई है। मैथिल संस्थाओं और संगठनों की ओर से लंबे समय से यह मांग की जा रही है कि बिस्फी को राष्ट्रीय स्तर का स्मारक स्थल बनाया जाए और वहां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साहित्य और संस्कृति की गतिविधियां संचालित की जाए।
पिछले दिनों में मैथिली समुदाय के देश भर में सक्रिय विभिन्न संस्थाओं और संगठनों के प्रतिनिधियों ने फिर से बिहार सरकार को प्रेरित करने की कोशिश तेज़ कर दी है। इस क्रम में मैथिल प्रतिनिधि बिहार के जल संसाधन और जन संपर्क मंत्री संजय झा से मिले और उन्हें देश विदेश में रह रहे मैथिल समुदायों के लोगों की उम्मीदों और चिंताओं से अवगत कराया। मंत्री संजय झा ने प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि वे इस दिशा में यथा संभव मदद जरूर करेंगे।
प्रतिनिधि मंडल में अखिल भारतीय मिथिला संघ, दिल्ली के अध्यक्ष विजय चंद्र झा, चेतना समिति पटना के अध्यक्ष विवेकानंद झा और ग्लोबल मैथिल के संयोजक राजकिशोर झा के साथ गुजरात से राजकिशोर झा,असम से प्रेमकांत चौधरी, नेपाल से जिवनानंद झा,मधुबनी से कमलकांत झा और पटना से किशोर चौधरी व आलोक मिश्रा शामिल थे। प्रतिनिधियों ने दरभंगा हवाई अड्डे का नामकरण विद्यापति के नाम से करने के लिए सरकार के प्रति आभार जताया और साथ ही विद्यापति के जन्म स्थल को राष्ट्रीय स्तर के स्मारक केंद्र के रूप में विकसित करने की कार्रवाई जल्द से जल्द शुरू करने का आग्रह करने से भी नहीं चुके।
गौरतलब है भारत सहित विभिन्न देशों में जहां भी मैथिल समुदाय के लोग रहते हैं, वे विद्यापति को अपनी धरोहर और विरासत मान कर उनके बारे में बातें करते हैं समारोह करते हैं लेकिन बिस्फी के प्रति कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। पिछले साल जब बिस्फी में ग्लोबल मैथिल समि ट हुआ था तो उसमें भी जोर शोर से यह मांग की गई थी कि बिस्फी में विद्यापति की स्मृति में राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाए। साथ ही वहां पर्यटन को बढ़ावा देने की दृष्टि से वहां सभी सुविधाएं जुटाने की जरूरत पर जोर दिया गया था। मैथिल संस्थाओं और संगठनों को विद्यापति की उपेक्षा अब सहन नहीं हो रही है।
अखिल भारतीय मिथिला संघ के मंत्री विद्यानंद ठाकुर का कहना है को दुनिया भर में मिथिला की पहचान महाकवि विद्यापति से जुड़ी हुई है। इसलिए आए दिन देश और दुनिया से विद्यापति के जन्म स्थल पर लोग आते रहते हैं लेकिन उन्हें बिस्फी आकर बहुत निराशा हाथ लगती है। ठाकुर ने कहा कि न सिर्फ बिस्फी बल्कि मिथिला प्रदेश में सभी महत्वपूर्ण स्थल भी सरकारी उपेक्षा और स्थानीय लोगों की उदासीनता के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि वे सभी स्थल न सिर्फ हमारी पहचान हैं बल्कि हमारी उन संस्कृतियों के गवाह भी हैं जिनके बारे में अब सिर्फ किताबों तक सीमित हैं।
उन्होंने बताया कि इस समय बिस्फी में विद्यापति के नाम पर उनके महत्व के मुताबिक स्मारक नहीं है। स्मारक के नाम पर केवल एक भवन है जो अपनी दुर्दशा पर रो रहा है। भवन की दीवारें दरक गई हैं। स्मारक परिसर स्थानीय लोगों के बेजा इस्तेमाल के कारण महत्वहीन हो गया है। कोई बाहर से आए तो उनके ठहरने के लिए कोई जगह नहीं है। यह तक कि परिसर में न पानी की व्यवस्था है और ना ही शौचालय ही ठीक ठाक है। भवन के भीतर पुस्तकें रखने के लिए जो भी आलमारियां उपलब्ध हैं वे सब बेकार ही गए हैं और किताबें तो दिखती भी नहीं है। ठाकुर ने कहा कि वहां कोई संस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियां नहीं होती। साल में एक बार वहां कुछ आयोजन हो जाते हैं और उनमें स्मारक स्थल की दुर्दशा पर जम कर स्यापा किया जाता है। लेकिन सरकार की प्राथमिकता में बिस्फी नहीं अा पाता है। चुनाव के समय राजनेता आते हैं और लुभावने वादे करके चले जाते हैं और सब कुछ भूल जाते हैं।